'मरना नहीं चाहते पर शोषण से अच्छी हमारी मौत है', तीन बहनों की सिसकियां हमने न सुनीं...
ससुराल में 90 बीघा जमीन थी. तीनों के पति पढे-लिखे नहीं थे. वे 8वीं के बाद ही पढ़ाई छोड़ चुके थे. तीनों बाई जेसीबी चलाते हैं और खेती करते हैं. जबकि तीनों बहनें होनहार थीं. वे पढ़ाई में तेज थीं और आगे नौकरी करना चाहती थीं. जबकि पति उन्हें खेतों में काम करते देखना चाहते थे. वे आए दिन शराब पीकर पत्नियों से मारपीट करते थे.
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राजस्थान में तीन बहनों ने एक साथ सुसाइड (sisters committed suicide case) किया. तीनों पढ़ने में होनहार थीं और जिंदगी में कुछ अच्छा करके आगे बढ़ना चाहती थीं. यह महज देहज का मामला नहीं हो सकता है. आखिर उन्हें किस हद तक प्रताड़ित किया गया होगा कि उन्होंने बच्चों के साथ जान दे दी. बच्चों को पता भी नहीं होगा कि मां हमें कहां लेकर जा रही हैं. उनकी दुनिया तो बचपन में ही खत्म हो गई.
जयपुर के दूदू में 3 बहनें मरना नहीं चाहती थीं. ना ही उनकी मौत सिर्फ दहेज के खातिर हुई. जो तकलीफ इन बहनों ने सही है वह दहेज उत्पीड़न से कहीं आगे बढ़कर है-
असल में इनकी मौत के पीछे वे सारी बातें हैं जिन्हें छोटा समझकर बेटियों को अनदेखा करने की सलाह दी जाती है. अक्सर बेटी से पति की गलती को मांफ करने के लिए कहा जाता है. बेटियों को ससुराल में एडजेस्ट करने की सीख दी जाती है. बेटियों को यह समझाइस दी जाती है कि अपनी तकलीफ को अपने तक ही रहना. शादी हो गई है, अब ससुराल ही तुम्हारा घर है. जब बेटियों से यह कहा जाता है कि डोली मायके और अर्थी ससुराल से उठती है तो वे ऐसे ही सहते-सहते एक दिन दम तोड़ देती हैं. इसके बाद हमारी नींद खुलती है और हम दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज करा देते हैं. जबकि बात दहेज से कहीं अधिक बढ़कर होती है.
कौन ख़ुशी से मरता है मर जाना पड़ता है!
इन तीन बहनों का नाम कालू देवी (27), ममता देवी (23) और कमलेश देवी (20) है. तीनों की शादी एक ही घर में तीन भाइयों से हुई थी. सुसाइड करने से कमलेश ने व्हाट्सएप पर 4 स्टेटस लगाए थे जिसमें उसने लिखा था कि 'मरना नहीं चाहते पर इनके शोषण से अच्छी हमारी मौत है. हमारे मरने का कारण हमारे ससुराल वाले हैं. हमारी मां और पापा की कोई गलती नहीं है. हम जा रहे हैं अब खुश रहना. रोज मरने से अच्छा है कि हम सब मिलकर मर रहे हैं. हे, भगवान अगले जन्म में हम बहनों को एक साथ ही जन्म देना. मेरे परिवार वालों से निवेदन है कि हमारी चिंता न करें.'
तीनों बहनें होनहार थीं, वे आगे नौकरी करना चाहती थीं जबकि पति उन्हें खेतों में काम करते देखना चाहते थे
बहनों ने मरने से पहले जमाने से गुहार लगाई थी. क्या किसी ने उनका स्टेट्स समय रहते नहीं देखा. वे तो आवाज लगा रहीं थीं, हम नहीं नहीं सुन सके. बहनों की बातों से समझ आता है कि वे जीना चाहती थीं लेकिन ससुराल वालों ने उनकी जिंदगी इतनी नर्क बना दी कि उन्होंने 2 बच्चों के साथ सुसाइड कर लिया. इतना ही नहीं ममता 8 महीने की जबकि कमलेश 9 महीने की गर्भवती थी. डॉक्टर ने दो दिन बाद ही बच्चे के जन्म की तारीख दी थी.
अब तक मिली जानकारी के अनुसार, ससुराल में 90 बिगहा जमीन थी. तीनों के पति पढें-लिखे नहीं थे. वे 8वीं के बाद ही पढ़ाई छोड़ चुके थे. तीनों बाई जेसीबी चलाते हैं और खेती करते हैं. जबकि तीनों बहनें होनहार थीं. वे पढ़ाई में तेज थीं और आगे नौकरी करना चाहती थीं. जबकि पति उन्हें खेतों में काम करते देखना चाहते थे. वे आए दिन शराब पीकर पत्नियों से मारपीट करते थे.
एक आंख रोए तो दूसरी कैसे हंसती?
तीनों बहनों का बाल विवाह हुआ था. बड़ी बहन कालू 12वीं तक पढ़ी थी. ससुराल के दबाव में उसे पढ़ाई छोड़ दी थी. कालू ने एक बार दहेज उत्पीड़न का पुलिस केस भी किया था लेकिन इसके बाद उसे समझाइस दे दी गई. ममता ने एंट्रेस एग्जाम पास करके एमए हिंदी में एडमिशन लिया था. उसने पुलिस भर्ती की परीक्षा भी दी थी. वहीं कमलेश बीए की पढ़ाई पूरी करना चाहती थीं. इसके लिए उन्हें मारा-पीटा जाता. पढ़ाई के नाम पर उनका मानसिक शोषण किया जाता और ताने कसे जाते. तीनों एक दूसरे की आंख थीं. एक साथ हंसती, एक साथ रोतीं, उनका दुख-सुख सब एक ही तो था. तो फिर कैसे एक जीती और दूसरी मरतीं? वे हमेशा एक-दूसरे का साथ देंती तो इस बार भी दे दिया...
उनके पतियों की शायद यही मानसिकता ऐसी ही होगी कि हम घर में रहेंगे और बाहर जाकर काम करेंगी. हम अनपढ़ हैं और ये पढ़कर मैडम बनेंगी. औरत घर में ही शोभा देती है. हम खेती में काम करें और ये शहर जाएंगी. पति अक्सर अपनी पत्नियों पर शक करते थे. पति नहीं चाहते थे कि वे जिंदगी में आगे बढ़ें. उन्होंने तीनों बहनों का जीना इस कदर मुश्किल कर दिया कि उन्हें जीने से बहेतर मरना लगा. वे अपने सपनों की सिसकियां लिए दुनिया छोड़ गईं. अपने साथ वे अपने 4 साल और 20 दिन के बच्चों को भी ले गईं. वे कितनी मजबूर होंगी जो बच्चों के साथ मर गईं.
मरने से पहले वे कितना तड़पी होगीं. कितनी रोई होंगी? उन्हें जानने वाले, उनके अड़ोसी-पड़ोसी, आस-पास के लोगों ने क्या उन्हें दर्द में रहते नहीं देखा होगा? जब किसी ने उनकी सहायता नहीं की होगी तब लाचार होकर मजबूरी से उन्होंने मौत चुना होगा.
कांग्रेस सरकार ने राजस्थान में महिलाओं और बेटियों के लिए स्किम चलाईं है. ऐसी स्किम की क्या फायदा जो महिलाएं ऐसे मर रही हैं. इनकी जवाबदेही देने वाला कोई नहीं है. कहीं महिलाएं सुसाइड कर रही हैं किसी का रेप हो रहा है तो कहीं कोई लड़की कुकड़ी प्रथा का शिकार हो रही है. लड़कियों के नाम पर सरकारें राजनीति चमकाती रहें और बेटियां मरती रहें...
कुएं में पहले तीन बहनों और 2 बच्चों का शव मिला था. वहीं उसी कुएं में अब एक नवजात बच्ची का भी शव मिला है. माना जा रहा है कि जिस बहन की डिलीवरी डेट 2 दिन बाद की थी. यह बच्ची उसी की है. तीनों बहनों के तन-मन को इतना कुचला गया कि उनकी जीने की हिम्मत टूट गई. वे घर में पैदा हुईं, एक साथ बचपन जिया, एक घर में शादी की और अंत में एक साथ मौत को गले लगा लिया...उनके सपने किसी घर के कोने में दबे रह गए...
जब तक किसी महिला के शरीर पर चोट के निशान न दिखे, जब तक उसके सिर से खून न निकल रहा हो, कोई उसे प्रताड़ित मानता कहां है? मानसिक प्रताड़ना तो वैसे भी पति-पत्नी के बीच की छोटी-मोटी नोंक-झोंक ही मानी जाती है. पति ने गुस्से में चिल्ला दिया तो घरवाले कहेंगे अरे उसका ऑफिस में मूड खराब होगा...धोखा दे दिया तो तुम खुद पर ध्यान नहीं दोगी तो वह भटकेगा ही, शराबी बन गया तो कहेंगे दोस्तों के साथ एंजॉय भा ना करें, पति का मूड ऑफ है तो जरूर तुमने ही कोई टेंशन दी होगी. मान अधिकतर गलती पत्नी की ही होती है.
जिस तरह हर रोज इस केस में नई बातें सामने आ रही हैं. इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि बहनों की हत्या भी की जा सकती है. जब पतियों को उनसे इतनी दिक्कत थी तो फिर होने को कुछ भी हो सकता है. मायके वालों क्या बेटियों की तकलीफ के बारे में पता नहीं थी. उन्होंने पहले कोई एक्शन क्यों नहीं लिया?
अगर मरना ही था तो वे पुलिस भर्ती की परीक्षा देने और सेंट्रेल यूनिवर्सिटी का एंट्रेस एग्जाम पास क्यों करतीं? दूसरी बात जब वे घर से बाहर निकली तो कुआं पूजन था दो दिन में कमलेश मां बनने वाली थी. खैर, पुलिस मामले की जांच कर रही है. वजह जो भी हो सामने तो आ ही जाएगी लेकिन जो मर जाता है वह नहीं लौटता...यह बात दिमाग को कचोट रहा है और मन को भारी लग रहा है...काश कोई तो होता जो उन्हें हिम्मत देता कि वे हार न मानें, सब ठीक हो जाएगा...
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