हिंदुस्तान के 'टॉयलेट मैन बिंदेश्वर पाठक' छोड़ गए संसार
पाठक का स्वच्छता आंदोलन स्वच्छता सुनिश्चित करता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकता है. ग्रामीण समुदायों तक इन सुविधाओं को पहुंचाने के लिए इस तकनीक को अब दक्षिण अफ्रीका की ओर भी बढ़ा दिया है. ऐसे व्यक्ति का यूं चले जाना, निश्चित रूप से बड़ा अघात है. उनके न रहने की क्षति को कोई पूरा नहीं कर सकता.
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कुछ नामचीन इंसान समाज में ऐसी अमिट छाप छोड़कर जाते हैं, जिन्हें संसार कभी नहीं भूलता. बल्कि सदियों अपने भीतर उनकी यादों को धरोहर समान संजोकर रखता है. कुछ ऐसा ही औरों से अलहदा जनहित और सार्वजनिक क्षेत्र में कार्य करके गए हैं भारत में टॉयलेट मैन के नाम से पहचाने जाने वाले बिंदेश्वर पाठक. सामाजिक क्षेत्र में उन्होंने जो कारनाम करके दिखाया, उसे लोग करने से भी कतराते हैं. टॉयलेट साफ करने की बात मात्र से लोग मुंह चिड़ाने लगते हैं बावजूद इसके उन्होंने देशभर के टॉयलेट को साफ-सुथरा रखने और नए टॉयलेट को बनाने का संकल्प लिया. उस संकल्प को पूरा करके भी दिखाया. अपने मिशन में जब पाठक जुटे तो उनकी हंसी भी लोगों ने खूब उड़ाई जिसमें उनके परिजन भी थे. इतना ही नहीं, एक मर्तबा उनके ससुर ने ये तब बोल दिया था कि अपनी बेटी का ब्याह उन्होंने गलत आदमी से कर दिया. ससुर ने पाठक से कहा आपको शर्म नहीं आती, पंडित होकर भी टॉयलेट साफ करते फिरते हो. लेकिन बिंदेश्वर पाठक ठान बैठे थे कि उन्हें ऐसा कुछ करना है जिससे सबकी सोच बदली थी. कमोबेश, कुछ ही वर्षों में हुआ भी वैसा ही. जो लोग हंसी मनाते थे, बाद में उनकी प्रशंसा करने लगे.
समाज के लिए जैसा योगदान दिया इस बात में कोई शक नहीं है कि देश हमेशा बिंदेश्वर पाठक क एहसानमंद रहेगा
बिंदेश्वर पाठक का टॉयलेट मिशन कुछ ही सालों में देखते ही देखते जन आंदोलन में तब्दील हो गया. उनके जैसे इंसानों की आज बहुत कमी है. इसलिए उनके न रहने की खबर पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा. लेकिन नियति को शायद यही मंजूर था, उसके आगे भला किसका जोर? परसों यानी पंद्रह अगस्त को जब समूचा देश आजादी के पर्व में मग्न था, तब िंबंदेश्वर पाठक अपने अंतिम सफर को निकलने की तैयार कर रहे थे. सुबह तड़के दिल्ली स्थिति अपने कार्यालय पर उन्होंने स्वतंत्रा दिवस का जैसे ही झंड़ा फैराया और उसके तुरंत बाद जमीन पर बेहोश होकर गिर पड़े.
ऐसा उनके साथ एकाध दफे पहले भी हुआ, तब परिजन उन्हें अस्पताल लेकर गए और ठीक हो गए? लेकिन शायद 15 अगस्त 2023 का दिन ईश्वर ने उन्हें अपने पास बुलाने के लिए मुकर्रर किया हुआ था. इस बार वो ऐसे गिरे कि फिर उठ ना पाए. बिंदेश्वर पाठक हिंदुस्तान में सार्वजनिक शौचालयों के प्रणेता थे. देशभर में सार्वजनिक स्थानों पर उन्होंने सुलभ शौचालयों का निर्माण करवाया.
विशेषकर, बस अड्डे, बाजारों, मॉल्स, पुलिस थानों आदि जगहों पर उन्होंने टॉयलेट स्थापित कर लोगों को सुविधाएं प्रदान की. हाईवे पर बने सुलभ शौचालय भी उनके मिशन का हिस्सा हैं. पाठक समाज के सच्चे प्रहरी थे, वह हमेशा औरों के लिए जीते थे. काम करने की उनकी उर्जा दूसरों को प्रेरणा देती थी. कोई काम छोटा नहीं होता, बस करने के लिए मन बड़ा होना चाहिए, इस युक्ति के साथ वो हमेशा आगे बढ़ते गए.
बिंदेश्वर पाठक के अलहदा मानवीय कार्यों की छाप ऐसी थी कि उन्हें कई बड़े पुरस्कारों और सम्मान से नवाजा गया. केंद्र सरकार ने उनको पद्म भूषण पुरस्कार दिया. इसके अलावा कई अंतराष्टीय सम्मान भी उन्हें मिले, एनर्जी ग्लोब अवार्ड, बेस्ट प्रैक्टिस के लिए दुबई इंटरनेशनल अवार्ड, स्टॉकहोम वाटर प्राइज, पेरिस में फ्रांसीसी सीनेट से लीजेंड ऑफ प्लैनेट अवार्ड मिले.
पाठक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर ‘द मेकिंग ऑफ ए लीजेंड’ पुस्तक भी लिखी थी जिसकी प्रधानमंत्री ने खुद सराहना की थी. पाठक को पुरस्कार देते हुए पोप जॉन पॉल द्वितीय ने कहा था कि वो पर्यावरण के सच्चे प्रेमी हैं उनसे हम सभी को सीख लेनी चाहिए. मेरी खुद व्यक्तिगत रूप से उनसे कई मुलाकातें हुई, नाम से जानते थे, उनके काम करने के अंदाज़ को सालों से करीब से देखा-जाना.
लगता नहीं है कि भविष्य में टॉयलेट जैसे कार्य में शायद कभी कोई दूसरा बंदा फिर अपना सहयोग देगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन से पहले से वो इस मिशन में लगे थे. कहना गलत नहीं होगा कि केंद्र सरकार ने अपने साफ-सफाई वाले अभियान का श्रीगणेश पाठक के मिशन को देखकर ही किया.
इसके लिए बाकायदा एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिंदेश्वर पाठक को अपने कार्यालय में बुलाकर मिशन की सफलता के संबंध में गहनता से जाना. उनसे सरकार ने सहयोग भी लिया. भले ही उनके इस अनोखे कार्य को देखकर सभी ने शुरूआती दिनों में मजाक उड़ाया हो. पर, बाद में सबने सराहना करी.
बिंदेश्वर पाठक सुलभ इंटरनेशनल से न सिर्फ भारत में, बल्कि समूची दुनिया में अपनी छाप छोड़ी.उन्होंने आधुनिक तकनीकों और नवीनतम मानवीय सिद्धांतों के साथ कदमताल मिलाकर 1970 में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन का श्रीगणेश किया था. सुलभ शौचालय की शुरुआत कम संसाधन और सीमित आय से हुई.
बहुत ही चंद पूंजी के साथ और अकेले के दम पर इतने बड़े मिशन की उन्होंने नींव रखी? उनके इस मिशन का मकसद था साफ-सफाई, मानव अधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देना. उनकी पहल अब दुनिया भर के विकासशील देशों में स्वच्छता का पर्याय बन चुकी है.
पाठक का स्वच्छता आंदोलन स्वच्छता सुनिश्चित करता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकता है. ग्रामीण समुदायों तक इन सुविधाओं को पहुंचाने के लिए इस तकनीक को अब दक्षिण अफ्रीका की ओर भी बढ़ा दिया है. ऐसे व्यक्ति का यूं चले जाना, निश्चित रूप से बड़ा अघात है. उनके न रहने की क्षति को कोई पूरा नहीं कर सकता.
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