लोगों ने जब मूर्ति को नहीं छोड़ा, इंसान की क्या बिसात!
पुर्तगाल के म्यूजियम में फुटबॉलर क्रिस्टिएनो रोनाल्डो की मूर्ति के साथ टूरिस्ट ने कुछ ऐसा किया कि उसका रंग ही उड़ गया. यौन शोषण की शिकार हुई ये मूर्ति कुछ कह रही है.
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अगर बात यौन शोषण की आए तो अक्सर ऐसे किस्से सुनने को मिल जाते हैं जहां इंसान बेहद अमानवीय हरकतें करता है और कई बार ऐसे किस्से सुनने मिलते हैं जो ये सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि क्या वाकई हम इंसान कहलाने लायक हैं? अक्सर यौन शोषण को मौज-मस्ती का नाम दिया जाता है और इस मौज-मस्ती में सब कुछ जायज है. चाहें शोषण लड़की का कर रहे हों, लड़के का, बच्चे का, जानवर का या फिर किसी मूर्ति का.
यहां बात हो रही है दुनिया के महानतम फुटबॉलर्स में से एक क्रिस्टियानो रोनाल्डो की मूर्ति की. 2014 में पुर्तगाल के फुंचाल Juventus player’s museum में क्रिस्टियानो रोनाल्डो की 11 फिट की मूर्ति बनाई गई थी. ये ब्रॉन्ज स्टैचू रोनाल्डो को समर्पित की गई थी और टूरिस्ट के लिए आकर्षण का केंद्र रहती है, लेकिन अब ये किसी और चीज़ के लिए भी चर्चा में आ गई है.
रोनाल्डो की मूर्ति में उनके गुप्तांग की जगह का रंग उड़ गया है. कारण मूर्ति की खराब क्वालिटी नहीं बल्कि टूरिस्ट का खराब दिमाग है. रोनाल्डो की मूर्ति असल में उनकी फ्री-किक मुद्रा में बनाई गई है जिसमें उनके पैर थोड़े फैले हुए हैं. इसका फायदा टूरिस्ट ने ऐसे उठाया कि वो मूर्ति के गुप्तांग को छूने लगे. 4 साल में मूर्ति को इतना प्रताड़ित किया गया कि उस जगह का रंग ही उड़ गया.
This is really funny. Female tourists can't get their hands off Cristiano Ronaldo's golden bulge bronze statue at Funchal, Portugal. For some, that will be a perfect gift for the New year. Lol! pic.twitter.com/Kbx6INxZaF
— Emmanuel Chibuzo (@emmafeast5) January 5, 2019
कुछ दिन पहले की ही बात है फुटबॉलर Cristiano Ronaldo की एक मूर्ति चर्चा का विषय बनी थी जब पुर्तगाल के मेजेरिया आइलैंड (Madeira Islands) पर बनी उनकी बेडौल मूर्ति को लेकर चर्चा की जा रही थी.
You vs. the guy she told you not to worry about#RonaldoBust pic.twitter.com/ZTuyH2Y666
— Franklin (@FranklinGGMU) March 30, 2017
लेकिन इस बार कुछ अलग ही मामला है. इस बार रोनाल्डो के बेडौल होने पर नहीं बल्कि उनकी मूर्ति के साथ किए गए शोषण का है. जरा सोचिए एक मूर्ति जो ब्रॉन्ज (पीतल) की बनी हुई है उसपर रंग किया गया है और लोगों ने एक ही जगह हाथ लगा लगाकर उसका रंग ही निकाल दिया है.
सोशल मीडिया पर ऐसे न जाने कितने टूरिस्ट मिल जाएंगे जो उस मूर्ति के साथ वही हरकत करते हैं और सोशल मीडिया पर इसकी फोटो भी पोस्ट करते हैं.
ये सभी तस्वीरें इंस्टाग्राम से ली गई हैं जहां टूरिस्ट रोनाल्डो की मूर्ति के साथ ये हरकत करते नजर आ रहे हैं.
मूर्तियों के साथ मजाक-मजाक में खिलवाड़ करना भले ही लोगों को आम लग रहा हो पर उसका कितना असर हुआ है ये उस मूर्ति से पूछिए जिसका रंग ही उड़ा दिया गया है. 4 साल में न जाने कितना शोषण झेला होगा उस मूर्ति ने.
ये कोई पहला वाक्या नहीं है. एक छोटी सी गूगल सर्च आपको ये बता सकती है कि लोग क्या, क्या करते हैं.
गूगल सर्च से आए रिजल्ट
अगर किसी को लग रहा है कि मैं क्यों मूर्तियों के प्रति इतनी संवेदनशील हो रही हूं तो मैं उन्हें बता दूं कि ये बात सिर्फ मूर्तियों की नहीं बल्कि संकीर्ण मानसिकता की है. जरा दिमाग पर जोर डालिए और खुद से पूछिए कि क्या ऐसा कोई भी दिन बीता है जब न ही किसी रेप, शोषण या किसी तरह की अभद्रता की खबर नहीं मिली हो? न्यूजपेपर, टीवी, सोशल मीडिया, वेबसाइट्स हर जगह कोई न कोई ऐसी खबर सुनने मिल ही जाती है. ये सोच का ही फेर है कि एक तरफ हम इसे मजाक समझते हैं और दूसरी तरफ अगर कोई हमारे साथ ये करे तो वो शोषण हो जाता है.
मुद्दा ये नहीं कि मूर्ति के साथ मस्ती की गई, मुद्दा तो ये है कि आखिर ऐसा क्यों? क्या इसे दीवानगी कहेंगे या फिर सोशलमीडियाई युग का एक फितूर जहां अडल्ट जोक बहुत मायने रखते हैं. मूर्ति के शोषण को कम नहीं समझा जा सकता है. किसी के गुप्तांग को इस तरह से हाथ लगाना सिर्फ इसलिए क्योंकि वो दुनिया का सबसे मश्हूर फुटबॉलर है. गुप्तांग को छूकर क्या साबित करना चाहते हैं लोग कि वो बड़ी ही बहादुरी का काम कर रहे हैं या फिर इसे रोनाल्डो और मर्दानगी से जोड़कर देखा जाए. ये सिर्फ यौन शोषण का मामला नहीं बल्कि एक टूरिस्ट स्पॉट को खराब करने का मामला भी है. खैर, ये तो विदेश की बात है, लेकिन अगर बात भारत की करें तो न जाने कितने ही लोग हर रोज़ ऐसी हरकतें करते रहते हैं. भारत में तो दीवारें तक सुरक्षित नहीं है. भारत में पब्लिक प्रॉपर्टी का क्या हाल होता है ये तो किसी को बताने की जरूरत नहीं बल्कि लोग खुद ही समझदार हैं.
सोचने वाली बात है कि जहां एक ओर हर देश में शोषण के खिलाफ लड़ाई चल रही है, जहां आए दिन नए-नए कानून बनाए जाते हैं वहां लोग ये सोचने में गड़बड़ कर देते हैं कि समस्या आखिर कितनी बड़ी है और किस लेवल पर उसे सुधारने की जरूरत है.
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