सास बहू शो से भी बुरे क्यों हैं हमारे न्यूज चैनल
एंकरों की सेना चुनौतियों और आलोचनाओं के वार करती हैं, और सामने होते हैं कुछ ढीले पड़ते रिटायर्ड अफसर. उनके जहरीले जुमले और भड़काऊ गुस्सा ऐसा माहौल बना देता है, जो शायद लड़ाई के मैदान में तोप भी न बना पाए.
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राष्ट्रीय सुरक्षा एक गंभीर विषय है. दुर्भाग्य से ज्यादातर टीवी चैनलों के लिए "राष्ट्रीय" शब्द के मायने अच्छा "कारोबार" करने की चकाचौंध में खो गए हैं. बजाय इसके कि "राष्ट्र" क्या जानना चाहता है, कुछ एंकर कुछ और ही समझाना चाहते हैं. और लोग ये समझ चुके हैं.
संक्षेप में मतलब ये है- न्यूज अब नया हिट साहस बहू फॉर्मूला है, जिसने बुद्धू बक्से पर दस्तक दी है. सीमा पार पाकिस्तान में खलनायकों की कोई कमी नहीं है. वैसे ही जैसे कि हमारे धारावाहिकों का अंत नहीं है. साजिशें और फिर उनसे इनकार के जाहिर से नाटक पर हम एक दर्शक के रूप में अपने मतभेदों को भूलाकर एक हो जाते हैं. चमकदार कवच में शूरवीरों की तरह नजर आने वाले एंकर हमेशा की तरह रक्षात्मक रहते हुए कमजोर जगह एक जैसा निशाना साधा करते हैं.
एंकरों की सेना चुनौतियों और आलोचनाओं के वार करती हैं, और सामने होते हैं कुछ ढीले पड़ते रिटायर्ड अफसर. उनके जहरीले जुमले और भड़काऊ गुस्सा ऐसा माहौल बना देता है, जो शायद लड़ाई के मैदान में तोप भी न बना पाए. ओह! काश कि मैं जान पाता कि इन सेनाओं ने ये टैलेंट कैसे ढूंढे. देश के दुर्लभ संसाधनों को बेहद महंगी मिसाइलों और बमों पर खर्च करने की कोई जरूरत नहीं है. हाल ही की बात है, मैं बहुत खुश था. भारत ने एक दूसरा कसाब पकड़ लिया था! वाह. इसका मतलब उपलब्धि नहीं था. पर रुकिए क्या मैंने सुना कि पहले और दूसरे कसाब के बीच 50 से अधिक विदेशी आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया और वे जेल में हैं! नहीं, लेकिन स्टोरी और टीआरपी का क्या होता? वास्तविकता पर धिक्कार है.
आम लोग कैसे जानते? वे अब हर दिन की प्राइम टाइम न्यूज़ में आधुनिक युग के महाभारत के अंतहीन एपिसोड देखने के आदी हो गए हैं.
टीवी समाचार भी अब नए संयुक्त पूछताछ सेल (JIC) हो गए हैं! आखिरकार अगर किसी को सभी लड़ाइयां जीतनी हों तो उसके लिए प्राइम टाइम न्यूज़ से बेहतर जगह और क्या हो सकती है. तो पत्रकारों और रुचि लेने वाले समूह को दुनिया की पहली लाइव पूछताछ की रिपोर्ट के लिए इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग शुरू करनी चाहिए. जाहिर है टीवी पर और कहां. तीखे सवाल और सही वक्त में जवाब ने शंकर महादेवन के मशहूर गीत 'ब्रेथलेस" को एक नया अर्थ दे दिया है. हर कोई "एक्सक्लूसिव" रिपोर्टिंग की लहर पर सवार होना चाहता है. कुछ और "टेलीविजन पर पहली बार" के लिए काम करना चाहते हैं. खैर, जहां तक मैं चिंतित था कि टीवी पर एक आतंकवादी से पूछताछ खुफिया एजेंसियों की प्रक्रिया से काफी पहले शुरू हो सकती है, निश्चित रूप से पहली बार!
तो आगे क्या? एकंर खुद ही ऑपरेशंस का नेतृत्व कर रहे हैं! अब इससे ज्यादा कुछ भी एक्सक्लूसिव नहीं हो सकता. वैसे भी इनका कुछ क्षेत्रों तक पहुंचने का दावा है क्योंकि सुरक्षा बल ऐसा कभी नहीं कर सकते. इस तरह से यह आगे के लिए सबसे अच्छा तरीका हो सकता है. उन्हें पहले से प्रतीत होने लगता है कि खुफिया विभाग की विफलताएं कब, कहां और कैसे होंगी. जैसा कि वे सामरिक और रणनीतिक आपरेशनों की जटिलताओं को समझते हैं. यह बात है. यह एंकरमैन शीर्षक से एक नया हस्ताक्षर अभियान शुरू करने का समय है! हो सकता है कि मार्वल इसे अपना ले और भारत को स्वदेशी पात्रों के बहुत वांछित एक्सक्लूसिव क्लब में शामिल कर दे.
दिलचस्प है कि गुरदासपुर आतंकी हमला अलग नहीं था. वहां एक महिला आतंकवादी, एक सिख आतंकवादी और जीवित पकड़े गए आतंकवादी समेत बहुत कुछ था. हो सकता है कि आतंकवादी जिंदा पकड़ा गया था. यह सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि वह गुरदासपुर से उधमपुर में घुस गया था और आखिरकार वह पकड़ा गया! आखिरकार, यह चमकदार कवच में हमारे लोगों की अखंडता का सवाल है. क्या आपने कभी भी लोगों को गुमराह करने के लिए किसी चैनल के माफी मांगने के बारे में सुना है. बेशक नहीं. यह कलात्मक स्वतंत्रता के अधिकार क्षेत्र में आता है! आखिरकार यह भी तो एक सास बहू सीरियल है.
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