हाय बेचारी कमला, पति के लिए खाना बनाती है. ये क्या उप-राष्ट्रपति बनेगी!
फ़ेक-फेमिनिस्टों (Fake Feminist) का भी एक अलग ही नाटक है. अब इनके निशाने पर अमेरिका (America) में उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ रही कमला हैरिस (Kamala Harris) हैं. इन लोगों को लग रहा है कि कमला पर भी जुल्म हो रहा है ऐसा इसलिए क्योंकि वो अपने पति के लिए खाना बनाती और उनसे प्रेम करती हैं.
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“He is funny. He is kind. He is patient. He loves my cooking. He's just a really great guy." अब भारत के सभी फ़ेक-फेमिनिस्टों ने Kamala Harris के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. उनके लिए भी बैनर ले कर निकल जाइए सड़कों पर. आपके हिसाब से तो कमला पर भी ज़ुल्म हो रहा, वो अपने पति के लिए खाना बना रही और साथ ही साथ ये लिख रही कि पति उनके बनाए खाने को पसंद करता है. आप इस सेंटेन्स का बॉटम लाइन पकड़िए कि कमला पितृसत्ता को पोषित कर रही है क्योंकि एक तो वो खाना बना रही दूसरी पति के तारीफ़ को एहसान समझ रही.
हाय! बेचारी कमला...
वैसे जिनको अब तक नहीं पता उन्हें बता दूं कि Kamala Harris आने वाले अमेरिकी-राष्ट्रपति के चुनाव में डेमक्रैटिकपार्टी की तरफ़ से उप-राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार चुनी गयीं हैं. वो पहली अश्वेत और भारतीय मूल की अमेरिकी स्त्री हैं. पेशे से वो वक़ील हैं और महिला एवं बालअधिकारों के लिए लड़ती आयीं हैं. ट्रम्प सरकार की हर ग़लत नीति का करारा जवाब देती हैं. वो डरती नहीं हैं,स्टैंड लेने से. उन्हें अपने भारतीय मूल्यों से प्यार है. वो अमेरिका में रह कर भी वो सारे त्योहार मनाती हैं जिनसे उन्हें प्यार है. और मेरे लिए वो फ़ेमिनिस्ट हैं सही मायने में.
कमला और उनके पति की एक बेहद खूबसूरत तस्वीर
हां , भारत की सूडो-फ़ेमिनिस्ट की नज़र में कमला, एक अबला ज़रूर होंगी क्योंकि वो पति के लिए खाना बनाती हैं लेकिन मेरे लिए वो आत्मविश्वासी स्त्री हैं. जिनको सुन कर ही कितना कुछ सीखा जा सकता है. हां, तो मैं कह रही थी कि कमला अपनी सफलता का क्रेडिट अपने पति ‘डग़’ को देती हैं. वो बताती हैं कि कैसे उनके सबसे कमजोर पलों में डग उन्हें सम्भालते हैं. 2013 में एक ब्लाइंड-डेट पर मिले और तब से हर कदम एक-दूसरे को थामें साथ चल रहें हैं. उन दोनों के बीच में न कोई कम है और कोई ज़्यादा. लेकिन ये तो कमला को लग रहा है न, भारत की फ़ेमिनिस्ट दीदियों को थोड़े लगेगा.
ख़ैर, कमला के उप-राष्ट्रपति पद के लिए दिए गए ऐक्सेप्टेंस भाषण को सुनिए, और समझिए स्ट्रॉंग-फ़ेमिनिस्ट महिलाएं कैसी होती हैं? लाइफ़ को ले कर उनका अप्रोच कैसा होता है? अपने को ऊंचा और महान साबित करना और दूसरे को ग़लत और कमज़ोर प्रूव करना फ़ेमिनिज़म नहीं है. बस. नारीवाद हमें बराबरी सीखाता है न कि पुरुषों से नफ़रत करना. नारीवाद शिक्षा, नौकरी, ज़िंदगी के हर क्षेत्र में समानता की बात कहता है. लेकिन भारत में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ही फ़ेमनिज़्म मान कर बैठ गयीं हैं सब दीदियां. क्या कीजिएगा.
और अंत में बस इतना ही कि ऊपर जो तस्वीर है मेरे लिए ये तस्वीर मुहब्बत है. लेकिन फ़ेमिनिस्ट दीदी कहेंगी कि एक कमजोर महिला को पुरुष ने दबोच कर रखा है. ये क्या करेगी? इसे तो खुद एक सपोर्ट की दरकार है.
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