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Updated: 27 अप्रिल, 2020 08:59 PM
प्रीति 'अज्ञात'
प्रीति 'अज्ञात'
  @preetiagyaatj
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लॉकडाउन (Lockdown) के इस लम्बे समय में लोग घर पर हैं. टाइमपास और एंटरटेनमेंट के लिए नए-नए आइडियाज निकाले जा रहे हैं. लेकिन हाल ही में गुजरात (Gujarat) के बडौदा (Vadodara) शहर से जो ख़बर सुनने को मिली, उसने सकते में डाल दिया है. यहां ऑनलाइन लूडो (Online Ludo) खेल में एक पति, जब अपनी पत्नी से चार राउंड लगातार हार गया तो इस हार को बर्दाश्त न कर सकने के कारण उसने लड़ाई शुरू कर दी. बात इतनी आगे बढ़ गई कि उसने गुस्से में पीट-पीटकर कर, पत्नी की रीढ़ की हड्डी (Vertebral column) ही तोड़ दी. शीघ्र ही उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और वह तुरंत उसे लेकर अस्पताल पहुंचा. पहले तो पत्नी ने उसके साथ घर लौटने से इनकार कर दिया लेकिन उसके माफ़ी मांगने के बाद वह मान गई. पति को भी भविष्य में ऐसा दुर्व्यवहार न करने एवं हाथ उठाने पर कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दे दी गई है. इस घटना ने बचपन के तमाम ज़ख्म ताजा कर दिए. याद कीजिये जब लूडो में हार सामने आती दिखाई देती है तो हालत कैसे 'जल बिन मछली, नृत्य बिन बिजली' की तरह हो जाती थी. उस भीषण तड़पन का भी सोचिये जब एन घर के अन्दर पहुंचने से ठीक पहले अचानक ही अपनी गोटी काल कवलित हो जाये तो दिल कैसा हाहाकार कर उठता था.

ये दुःख बस बार-बार हारने वाले इंसान ही बयां कर सकता है कि उस समय ऐसा क्यों लगता है कि ईश्वर ने पीड़ा की बहती गंगा में हमें ही नाक पकडकर अठारह बार डुबकी लगवा दी हो. वो हर इक बच्चा जो अब बड़ा होकर ज्ञान बांटने लगा है और इस मुद्दे पर भी जमकर बोलेगा एक बार उसको भी हौले से विद्या क़सम खिला तनिक पूछियेगा कि बेटा, जब बचपन में लूडो या सांप-सीढ़ी में हारते थे तो कैसा लगता था आपको? यकीन मानिये वो वहीं उठकर तांडव नृत्य करने लगेगा. 

हम कह तो रहे हैं... भिया, ये गेम ही ऐसा है जिसने हम सबके पूरे बचपन के लड़ाई के इतिहास में मुख्य भूमिका निभाई है. हमें तो ख़ूब याद है कि गेम की शुरुआत तो 'हरी हरावे, लाल जितावे, पीली चोट उड़ावे' के मंत्रोच्चार के साथ शुरू कर हम लाल गोटी चुन लेते थे. और फिर पता चलता कि पासा फेंकते ही भैया के तो छह दो बार आ गए, फिर एक भी आ गया, तीन गोटी निकल लीं.

पड़ोसी का बिट्टू जिसे हमने इस मन्त्र में भी स्थान न दिया था, वो भी अपने नीले वाले घर से निकलकर जब हमरी लाल खिड़की से आगे बढ़ जाता था तो क़सम से ऐसा मुंह दबा के रोना आता था कि का कहें. कई बार सब ठीक होता तो सेंटर में फिनिश वाले चौकोर स्वर्ग के दरवाज़े पर अपन एंट्री की राह में पासे में 1 नंबर का यूं इंतज़ार करते जैसे देवदास ने पारो का भी न किया होगा कभी.

Ludo, Lockdown, Coronavirus, Vadodara, Violence लूडो में मिली यार के बाद बड़ौदा के पति ने जो पत्नी के साथ किया किसी को भी हैरत में दाल देगा

तो कुल मिलाकर तात्पर्य यह है कि साहब ये खेल ही पनौती है जिसने हर घर में महाभारत के सौ- सौ धुआंधार एपिसोड चलवाए हैं. कभी तूने पासा गलत फेंका तो कभी 'देख छह है, न-न तीन है' में ही बाल-फुटौवल हो जाती थी. ये बाल-फुटौवल शब्द तो हम थोडा सही एवं मर्यादित लगे इसलिए ही कह रहे वरना एक्चुअली में तो परखच्चे उड़ते थे और होता तो असुर युद्ध ही था.

अजी, बाल खींचे जाते, टांग पकड़ घसीटा जाता, लात घूंसे सबका पिरसाद बंटता और अंत में लूडो अंकल को बीच से चीरकर दो भागों में विभाजित करने के बाद ही प्यासी-खूनी आत्मा को शान्ति मिलती लेकिन अगले ही दिन 'खीखीखी. भैया लूडो खेलोगे?' की मनुहार के साथ उसे पुराने गत्ते के टुकड़े पर चिपका, अगले महाभारत की मधुर नींव रखी जाती.

इसलिए अपना तो ये मानना है कि ये जो घटना है वो घरेलू हिंसा का मामला बिल्कुल नहीं है बल्कि सब इस नामुराद लूडो का किया धरा है. पत्नी हारती तो पति की भी यही दुर्गति होनी थी! लेकिन हां, हमें यह बात किसी भी स्थिति में नहीं भूलनी चाहिए कि बचपन में खेल के दौरान हुई लड़ाई बचपना होती है और बड़े होकर यही अपराध बन जाती है. इसलिए लॉक डाउन में सब कुछ करें पर संयम भी धरें.

हो सके तो लूडो, सांप सीढ़ी जैसे हिंसक खेलों से स्वयं को आइसोलेट कर लें क्योंकि इनसे बड़ी पनौती मैंने आज तक नहीं देखी. इस दुनिया में ऐसा कोई भी घर नहीं, जहां इस गेम की समाप्ति पर एक तरफ उत्साह में भरा और दूसरी तरफ पछाड़ें खाकर सर फोड़ता चेहरा न नज़र आया हो. सार यह कि जहां लूडो है, वहां सौहार्द्र की सोच भी लेना इस सदी का सबसे बड़ा जोक और इस खेल की मूल भावना की सरासर तौहीन है.

भूलिए मत कि पासे का खेल, औरत की पनौती ही साबित होता आया है. हम जानते ही हैं कि इस खेल का उद्गम शकुनि मामा से हुआ है जिसने अपनी गोटियों से महाभारत रच डाली. साथ ही यह संदेसा भी दिया कि शुरू में गोटियां जीतने वाला अंत में जरुर कुटता है. यह दुनिया का अकेला ऐसा गेम है जिसमें जीतने वाले को स्वयं पर हिंसक प्रहार एवं अभद्र भाषा के हमले का अत्यधिक भय रहता है.

मैं चाहती हूं कि यदि देश में प्रेम और भाईचारे का वातावरण पुनर्स्थापित करना है तो तत्काल प्रभाव के साथ सबसे पहले इस लूडो को आग लगाइए. साथ ही इस देश के मनोवैज्ञानिकों एवं जांच आयोगों से भी विनम्र अनुरोध है कि वे भी इस बात पर शोध करें कि इंसान बड़ा हो या छोटा पर 'यार, लूडो की हार पचती क्यों नहीं?'

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लेखक

प्रीति 'अज्ञात' प्रीति 'अज्ञात' @preetiagyaatj

लेखिका समसामयिक विषयों पर टिप्‍पणी करती हैं. उनकी दो किताबें 'मध्यांतर' और 'दोपहर की धूप में' प्रकाशित हो चुकी हैं.

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