चॉकलेट, ज्वालामुखी और डार्क फैंटेसी
चॉकलेट तेजी से पांव पसार रहा है. अब तो डार्क फैंटेसी में इसे कुछ यूं भरते हैं कि पहले ही बाइट में धच्च से मुंह सन जाए. यहाँ तक कि चॉकलेट केक भी अब चोको लावा केक बन विकसित हो चुका है. केक के अंदर गर्म चॉकलेट का पिघलता ज्वालामुखी, अहा!
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चॉकलेट का प्रादुर्भाव कब और कहां हुआ और कैसे ये हमारे देश में घुसपैठ कर हर उम्र के लोगों की चहेती बन गई, इसे बताने में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं, वरना 'गूगल' फिर क्या करेगा! पर यह अकेली ऐसी चीज है जिसे बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक बिना टेंशन लिए खाया जा सकता है. बल्कि शोधकर्ताओं के अनुसार तो यह हमें तनावमुक्त करने में भी सहायता करती है. अब उन वैज्ञानिकों को कौन यह बताए कि भइया जी, यही काम हमारे देसी गोलगप्पे तो सदियों से करते आ रहे हैं. ख़ैर, आज तो हम बस चॉकलेटमय चर्चा ही करने के इच्छुक हैं.
अब जब चॉकलेट की बात हो और बच्चों का ज़िक्र न हो तो इसे बनाने वाली कंपनियों पर लानत (धिक्कार का प्रभावी रूप) है! उन्हें पता है कि सबके घरों में प्रवेश करने के लिए बच्चों के दिलों तक पहुंचना जरूरी है और हमारे पूर्वजों की उत्तम वाणी के अनुसार 'दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है' तो कुल मिलाकर उत्पाद के बाज़ार में उतर आने से पहले ही मामला सलमान, आमिर की ब्लॉकबस्टर मूवी की तरह सेट ही था.
याद है आपको सत्तर-अस्सी के दशक में चॉकलेट और हमारे बीच का रिश्ता, कैडबरी 5 स्टार या मिल्क चॉकलेट तक ही था और ऑरेंज गोली, पॉपिन्स खाने वाले हम आम बच्चों के लिए यह बहुत बड़ी ट्रीट हुआ करती थी. चॉकलेट देने वाले इंसान को हम बहुत ऊंचा स्थान दिया करते थे और उसे देखते ही हमारी बांछें खिल उठतीं थीं. फिर परिवार के लोग प्रवचन देते थे और बना-बनाकर झूठी कहानियां सुनाते थे कि कैसे फ़लाने-ढिमके के बच्चे का इसी चक्कर में अपहरण हो गया! बड़ा दुःख होता था भई! अपहरण का सुनकर नहीं, बल्कि यह देखकर कि हमारे माता-पिता की नज़रों में हमारी इमेज 'लालची बच्चे' की है. ही ही ही.
लेकिन हाँ, कुछ दुष्ट लोग सचमुच इसे रिश्वत की तरह प्रयोग में लाकर बच्चों से काम निकलवा लेते हैं प्लीज, ऐसा न करो! उन्हें चॉकलेट कभी भी दो, पर भ्रष्टाचार मत फैलाओ यारा! उन मासूमों का मन भी इसी की तरह झट से पिघल जाता है.
5 स्टार या डेयरी मिल्क चॉकलेट, मंच, किटकैट और ऐसे तमाम चॉकलेटी स्वाद के अलावा अब यह गृहलक्ष्मी बन किचन में पूरी तरह पांव फैला इत्मीनान से बैठ चुकी है. पहले कुकीज़ में इसे दानेदार रूप में धंसाया गया, तत्पश्चात दो बिस्कुटों के बीच में गोलमटोल टिक्की-सी रखने लगे. बच्चे बिस्कुट खोल चॉकलेट वाले गोले को खा लेते फिर बिस्कुट को जीभ निकाल लपर-लपर पूरा यूं चाट लेते जैसे हेल्पर पोंछा लगाती है. कुछ शैतान तो उन बिस्कुटों को वापिस रखने का पुण्य भी कमाते और बाद में धकाधक कुटने का! इसके बाद उन्हें चॉकलेट ड्रिंक की लत लगी.
कॉर्न-फ्लेक्स का स्थान भी चोकोस ने ले लिया. चॉकलेट ने पौष्टिकता के नाम पर स्वयं को ड्राई फ्रूट्स से लबालब कर लिया. अब तो डार्क फैंटेसी (बिस्कुट है, भई) में इसे कुछ यूं भरते हैं कि पहले ही बाइट में धच्च से मुंह सन जाए. यहाँ तक कि चॉकलेट केक भी अब चोको लावा केक बन विकसित हो चुका है. केक के अंदर गर्म चॉकलेट का पिघलता ज्वालामुखी, अहा! कैसे अलौकिक सुख की अनुभूति होती है एवं 'हॉट चॉकलेट' सुनते ही अतुलनीय ग्लैमर की ज्वाला प्रज्ज्वलित होती है और एक कमनीय काया का आकर्षक चित्र, सटाक से चित्त में खिंच जाता है.
इधर ब्रेड में भी अब नटेला नामक नट ने सफलतापूर्वक स्थान ग्रहण किया है. आइसक्रीम के फ्लेवर में तो चॉकलेट आई ही पर हद तो तब हो गई जब ये आइसक्रीम-ब्राउनी को साथ बिठा पवित्र चॉकलेट सिरप से स्नान भी करने लगी. इसी की देखा-देखी अब मुलायम त्वचा के लिए इसका मास्क भी बनने लगा.
एक जमाना था जब ब्याह, उत्सव, जन्मदिन में मिठाई ले जाते थे पर अपुन के लम्बू जी ने 'कुछ मीठा हो जाए' नारे के साथ कब इसे चॉकलेट के डिब्बे से स्थानांतरित कर दिया. जनता को पता भी न चला! वो तो मंत्रमुग्ध हो, भोली आंखों में नेह भर बच्चन को निहारती रही इधर कंपनी अपना काम कर गई. वो सिल्क जिसका केवल साड़ियों से ही रिश्ता था अब पिघल-पिघल होठों पर लगने लगा. दरअसल यही एक ऐसा खाद्य-पदार्थ है जिसके विज्ञापन में आप इसे खाते हुए पूरा मुँह सानकर भी बड़े क्यूट लगते हो!
इस आकस्मिक प्रहार से घबराकर मिठाई वालों ने, चॉकलेट बर्फी की परिकल्पना कर इसका मुंहतोड़ जवाब दिया. पर मैं इससे ख़ुश नहीं, बल्कि मुझे भय है कि कहीं इस होड़ में ये मेरी प्यारी जलेबी को चॉकलेट में डुबोकर न देने लगें. क़सम से मेरी जलेबी और रसमलाई को जरा-सा भी छेड़ा तो मैं वहीं धरने पर बैठ, अपनी स्वाद कलिकाओं की संतृप्ति हेतु पछाड़े खा-खा आह्वान करुंगी और इसे अपने देश से बाहर वैसे ही भगा दूंगी जैसे कि हमने अंग्रेज़ों को भगाया था. पर मैं जानती हूं इस क्रांति की मैं एकमात्र स्वतंत्रता सेनानी रहूंगी. क्या पता, मेरे बच्चे ही इस बार मेरे खिलाफ फ़तवा जारी कर दें! पर आप फिर भी न घबराना, क्योंकि भगाने के बाद भी चॉकलेट यहां वैसी ही बसी रहेगी जैसी कि अंग्रेज़ों के बाद, अंग्रेजियत बसी रह गई है.
कुल मिलाकर चॉकलेट और बच्चे एक-दूसरे के पूरक हैं और यह सह-अस्तित्व के सिद्धांत का जीता-जागता उदाहरण बन प्रस्तुत होती है. तात्पर्य यह है कि चॉकलेट मात्र स्त्री-पुरुष के प्रेम सप्ताह में उपहारस्वरूप दिया जाने वाला या साथ-साथ खाया जाने वाला खाद्य-पदार्थ ही नहीं, इसकी अपनी एक विशाल दुनिया है और करोड़ों ग्राहक! हम जैसे अजूबे कम ही हैं जो चॉकलेट पर फ़िदा हो पाने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं.
जय चॉकलेट, जय बच्चा पार्टी और जय तुम प्रेमियों की भी! खाओ और यूं ही प्रेमभाव से रहो!
प्यार/प्रेम/इश्क़/मोहब्बत का तीसरा पवित्र दिवस मुबारक़!
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