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Updated: 10 फरवरी, 2019 11:34 AM
महेंद्र गुप्ता
महेंद्र गुप्ता
  @mahendra.manas2100
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एकदम तड़के 10 बजे नींद खुली बीवी की आवाज से. उसने नीचे से ही चिल्लाकर मकान मालकिन से पूछा, ''आंटी, आज वेलेंटाइन डे की चौथ का कौन सा व्रत पड़ेगा? आंटी ने बताया 'टैडी डे है.'' पत्नी ने मुहूर्त भी पूछ लिया.

आंटी ने विस्तार से बताया, "शाम को पति से टैडी ग्रहण करके डूबते सूरज को प्रणाम करना और 6.15 पर व्रत खोल लेना. टैडी को सात दिन कांसे की प्लेट में रखना, फिर पूजा के कमरे में रख देना. कांसे की प्लेट न हो तो मुझसे ले जाना.''

''थैंक्यू, आपने विधि विधान से वेलेंटाइन वीक मनवा दिया. अभी ये बिस्तर से उठते हैं तो टैडी मंगवाती हूं'' 

जब मैं थोड़ा चैतन्य हुआ तो बिस्तर पर मेरे सामने 'पकौड़े' और चाय रखी थी. पकौड़े देखकर मेरा माथा घूम गया. मैंने कहा, ''मैं कोई बेरोजगार फेरोजगार हूं क्या? जो तूने मेरे आगे पकौड़े रख दिये. अब रख दिए तो खा लेता हूं. अन्न का अपमान न करना चाहिये.''

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पत्नी अथाह प्रेम से बोली, ''सुनो न''

''सुनाओ न''

''आज टैडी डे है.''

''वो तो अभी सुन लिया उसके आगे''

''अच्छा बड़ा सा टैडी बीयर लाओ न''

''बियर तो समझ आ गई, लेकिन ये टैडी क्या होता है?''

''टैडी नहीं जानते, हाय रे?''

''अरे! मैंने का ये पूछ लिया कि मोदी जी कौन हैं?''

''अरे, टैडी मतलब एक तरह का पुतला''

''पुतला, तो ढेर सारे ला दूंगा, बता किसका चाहिये? भंसाली का, केजरीवाल का, राहुल का? मैं जानता हूं रीजनेबल दाम पुतला बनाने वालों को''

"अरे, तुम बुद्धू ही रहोगे, वो जो छोटा सा, कपड़े का, मॉल में मिल जाएगा."

"मॉल में महंगा मिलेगा, जलाना ही तो है"

"ये तुम्हारा जलाने वाला नहीं है, आज टैडी डे है, टैडी गिफ्ट किया जाता है''

"पागल हो गई का, तेरे टैडी के चक्कर में अपना वीकेंड खराब करूंगा. रामप्रकाश दर्जी जो बाहर बैठता है, उससे पुरानी साड़ी में कतरन भरवा ले.''

''अरे पगला गए हो का? सौ- डेढ़ सौ रुपये का टैडी नहीं ला सकते?"

"देख, ये पुतले-फुतले खुलेआम लाना ठीक नहीं है, पुलिसवाले छीनकर जनसेवा कर देंगे मेरी.''

''अरे, ये वो पुतला नहीं है, कितनी बार समझाऊं''

''पुतला तो पुतला होबे है, वेलेंटाइन डे का हो या नेताजी का''

''छोड़ो, तुमसे न हो पायेगा''

''ले बुरा मान गई''

''अरे ये पियार का पुतला होता है, पुलिस वाले क्यों छीनेंगे.''

''अरे मैं भी समझ गया, लेकिन मैं वो संस्कृति वाले पुलिसवालों की बात कर रहा हूं, आजकल वही पावर में हैं. मेरी हड्डी पसली एक कर देंगे.''

''तो रहने दो, पुरानी साड़ी का पुतला ही कांसे की थाली में बिठा दूंगी. और सुनो व्रत काहे से खोलूं?"

"पकौड़े को छोड़कर किसी से भी खोल ले." 

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लेखक

महेंद्र गुप्ता महेंद्र गुप्ता @mahendra.manas2100

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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