अब इंसानियत नहीं, सरकारी इनाम के लिए बचा लो घायल को
इंसान ही इंसान के काम आता है. लेकिन दिल्ली में ऐसा नहीं क्योंकि देश का दिल दिल्ली है और दिल्ली के पास दिल नहीं. कम से कम इस एक्सीडेंट को देखकर तो सिर्फ यही कहा जा सकता है.
-
Total Shares
इंसान ही इंसान के काम आता है. यह कोई कहावत भर है. देश का दिल है दिल्ली और दिल्ली के पास दिल नहीं. यह सिर्फ एक सड़क हादसा नहीं कह रहा जहां मरते हुए शख्स की मदद करने की जगह एक दूसरा शख्स उसका मोबाइल चुरा लेने में अपनी इंसानियत को समेट लेता है. बल्कि खुद हमारी सरकार कहती है कि वह जल्द कानून बनाकर प्रावधान ले आएगी जिससे रोड एक्सीडेंट में घायल आदमी को अस्पताल पहुंचाने वाले को इनाम देने का प्रावधान होगा. तो सवाल है कि क्या हमारी कोशिश अब इंसानियत को इनाम का मोहताज बनाने की है?
यहां सड़क पर कोई इंसान हादसे का शिकार होता है. तमाशबीनों की भीड़ लग जाती है. घायल आदमी की अंतिम सांसें चलने लगती है लेकिन मौत का लाइव ईवेंट देख रहे तमाशबीनों पर फर्क नहीं पड़ता. आसपास से गुजरने वाले सैकड़ों वाहन जो अगले कुछ मिनटों में उसे अस्पताल पहुंचा सकते हैं- उनका रुख एकदम साफ रहता है – कौन पड़े इस लफड़े में. किसी को पुलिस का डर सताता है तो किसी को अपनी गाड़ी की सीट पर घायल के खून का धब्बा पड़ने का डर लग जाता है. किसी न किसी कारण से मदद करने कोई नहीं आगे आता.
ये नजारा सिर्फ दिल्ली की सड़क पर ही नहीं दिखाई देता. देश के किसी कोने में जाएं, रोड एक्सीडेंट में तमाशबीन ही दिखते हैं. इसे अपना राष्ट्रीय चरित्र कहें तो गलत न होगा. और राष्ट्रीय चरित्र कहने पर आपत्ति क्यों- आइना देखिए- आप भी यही कहेंगे.
घायल पड़े इंसान का मोबाइल चोरी करता रिक्शावाला |
क्या देश की जनसंख्या सवा सौ करोड़ से ज्यादा हो गई है इसलिए इंसान की जिंदगी और इंसानियत के लिए हमारे पास समय नहीं रह गया गया? क्या हम यह भी मान बैठे हैं कि इतनी बड़ी जनसंख्या में कुछ मौते यूं भी हो जाएं तो कोई फर्क नहीं पड़ता. सोचिए, दिल्ली में इस सड़क हादसे में घायल हुआ यह 35 वर्षीय शख्स तीन बेटियों का बाप था और घर चलाने के लिए दिन में रिक्शा और रात में कोठियों की चौकीदारी करता था.
आज अगर तमाशबीन बने लोग एक जिंदगी की जरा सी परवाह करते तो शायद उस परिवार के मुखिया को बचाया जा सकता था. लेकिन हद तो तब है कि तमाशबीन न सिर्फ मोत का तमाशा देखते हैं. उन्हें तो सड़क पर कैसा भी तमाशा दिखे वह देखने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. हां, तमाशे से आगे कुछ करने पर उनका अप्रोच वही रहता है- कौन इस लफड़े में पड़े. और तमाशा तो मुफ्त का है. इसीलिए, एक तमाशबीन आगे बढ़ता है और घायल पड़े आदमी के बगल से उसका मोबाइल उठाकर भाग जाता है.
उससे उम्मीद थी कि कम से कम मोबाइल से 100 नंबर डायल कर दुर्घटना की सूचना पीसीआर वैन को दे देता. ऐसा करता तो खून में लथपथ बेहोश पड़े उस शख्स को बचाने की कोशिश की जा सकती थी. लेकिन तमाशबीन 90 मिनट तक जिंदगी और मौत के बीच का यह तमाशा देखते रहे और जब मौके पर पुलिस पहुंची तो उसे सिर्फ लाश मिली जिसे सीधे पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाया गया.
अब इसे क्या कहा जाएगा? कभी तो खबर दिखती है कि सड़क हादसों में घायल हुए कुत्ते या गाय को लोग अस्पताल पहुंचाने की जुगत में लगे हैं. खबर ये भी दिख जाती है कि किसी पालतू जानवर ने अपने मालिक की जिंदगी बचाने के लिए इंसानों जैसा कोई हैरतअंगेज कारनामा कर दिखाया. लेकिन क्या अब इंसान को इंसान की ममद करने के लिए सिर्फ एक रास्ता बचा है और वह है इनाम या पारितोषिक.
घटना के बाद एक बार फिर दिल्ली की सरकार को अपना एक प्रस्तावित कानून याद आ गया. माने न माने अपनी सफाई में वह उस प्रस्तावित कानून का राग अलाप रही है. दिल्ली सरकार के मुताबिक उसने प्रस्ताव दिया है कि सड़क दुर्घटना में घायल की मदद करने के लिए टैक्सी चालक, निजी वाहन चालक और ऑटो ड्राइवरों को प्रोत्साहित करगी. इसके लिए वह उन्हें मदद के एवज में इनाम राशी देने की बात कह रही है. लेकिन सरकार इस कानून को लागू करने के लिए अभी इस जैसे और कितने हादसों का इंतजार कर रही है.
रास्ते पर आते-जाते लोगों को पुलिस और एफआईआर का भी कोई डर न रहे इसलिए पुलिस और प्रशाषन ऐसी सूचना देने पर इनाम तक देने की बात कर रहे हैं. लेकिन कहीं इस कानून का मकसद कहीं इसलिए विफल न हो जाए. क्योंकि दिल्ली के इस सड़क हादसे में भी तो रिक्शेवाले को घायल पड़े शख्स के मोबाइल में अपना फायदा दिखा. सो उसने अपना इनाम खुद-ब-खुद आगे बढ़कर ले लिया.
आपकी राय