शशि अपने खानदान के मुकम्मल कपूर थे !
अभिनेता शशि कपूर का शुमार बॉलीवुड के उन अभिनेताओं में है जिन्हें पता होता है कि सिनेमा में प्रयोग कैसे और किन परिस्थितियों में किये जाते हैं. वे कपूर खानदान के अंतिम सदस्य थे, जिनका सिनेमा और थिएटर से बराबर का नाता रहा.
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फिल्म दीवार के ईमानदार, सच्चे और क़ानून पर पूरा विश्वास रखने वाला इंस्पेक्टर रवि वर्मा को भला कौन भूल सकता है. यह वही फिल्म है जो दो भाइयों के बीच अच्छे और बुरे का भेद सिखाती है. एक भाई सत्ता के खिलाफ तो दूसरा सत्ता और कानून सम्मत चलने वाला होता है. कानून और सच के साथ चलने के कारण भले ही उसके पास बड़ी बिल्डिंगे, बैंक बैलेंस, पावर, बंगला-गाड़ी, न रहीं हो पर दुनिया की बेशुमार खुशियों के बागीचे के रूप में मां हमेशा उसके साथ रही. यह फिल्म व्यावसायिक सिनेमा दौर की महत्वपूर्ण और सुपरहिट फिल्म मानी जाती है. रवि वर्मा के किरदार को जीवंत करने वाले 79 वर्षीय अभिनेता शशि कपूर की एक्टिंग का लोहा दुनिया मानती है. लंबे समय से बीमार चल रहे शशि ने आज मुंबई में आखिरी सांसे ली. पूरे फिल्म उद्योग में शोक की लहर दौड़ना स्वाभाविक है. 'सत्य शिवम सुंदरम', वक्त, अभिनेत्री, त्रिशूल, 'नमक हलाल', 'जब-जब फूल खिले' और 'कभी-कभी' जैसी सुपरहिट फिल्मों के अभिनेता शशि कपूर के हिन्दी सिनेमा में दिये योगदान को भुलाया नहीं जा सकेगा.
शशि कपूर ने बॉलीवुड को ऐसा बहुत कुछ दिया है जिसे वो कभी भुला नहीं पाएगा
पिता पृथ्वीराज कपूर और भाई राज कपूर की राह पर सन 1938 में मुंबई में जन्मे शशि ने बतौर चाइल्ड एक्टर पहली बार फिल्मी दुनिया में कदम रखा. हम 13 वर्षीय शशि कपूर उर्फ को आवारा में देख सकते हैं. बाद में अपनी अभिनय क्षमता के बल पर ही उन्होने 'हाउसहोल्डर' और 'शेक्सपियर वाला' 'ए मैटर ऑफ इनोसेन्स' 'हीट एंड डस्त', 'इन कस्टडी' जैसी अंग्रेजी फिल्मो में मुख्य भूमिकाएं भी निभाईं थी. हिन्दी सिनेमा में बतौर युवा अभिनेता उन्होंने 60 के दशक में डेब्यू किया. 116 फिल्मों में काम कर चुके शशि कपूर द्वारा 61 में सोलो अभिनेता वाली फिल्मों का आंकड़ा उनकी लोकप्रियता और निर्माता की पसंद दर्शाता है.
शशि के इस डायलॉग को भुलाना मुश्किल है
यह उनकी सफलता का ही पर्याय है कि 60 के दशक में सबसे व्यस्त अभिनेता की श्रेणी में शशि का शुमार किया जाता था. शशि कपूर उस दौर में एक साथ 6-7 फिल्मों में एक साथ काम किया करते थे. जिसके लिए उन्हे 5 से छह शिफ्ट में काम करना पड़ता था. उनके इसी रूप को देखकर उनके बड़े भाई राज कपूर ने कभी चुटकी लेते हुए कहा था कि शशि तो टैक्सी है, उसे जब चाहे कोई भी किराए पर ले जा सकता है.
सफलता के शीर्ष पायदान में चढ़े शशि के जीवन का एक समय ऐसा भी था जब उनके पास काम की कमी हो गयी थी. काम न मिलने से उन्हें मायूसी का सामना भी करना पड़ा. बक़ौल शशि कपूर के पुत्र कुणाल अपनी फेवरेट स्पोर्ट-कार तक उन्हे बेचनी पड़ी. हालांकि व्यवसायिक दौर की शुरुआत और अमिताभ बच्चन के साथ ने उन्हें एक बार फिर खड़ा किया. शशि कपूर इस दौर में ऐसे सितारे बनकर उभरे कि उनके आगे कई अभिनेता फीके लगने लगे.
उनकी इस सफलता का अंदाजा उन दिनों की मशहूर अभिनेत्रियों राखी, जीनत अमान, शर्मिला टैगोर, नंदा, परवीन बाबी और हेमा मालिनी के साथ उनके काम को देखकर लगाया जा सकता है. एक अभिनेता से इतर वह फिल्म जुनून (1978), कलियुग (1980), 36 चौरंगी लेन (1981), विजेता (1982), उत्सव (1984) जैसी फिल्मों के निर्माता के रूप में भी याद किए जाते हैं.
शशि का शुमार उन अभिनेताओं में हैं जिन्होंने अपनी एक्टिंग से अलग छाप छोड़ी
यह भी सत्य है कि समय का पहिया निरंतर घूमता रहता है. उनके जीवन में असफलता ने पीछा करना नहीं छोड़ा.फिल्म 'धर्मपुत्र' 'चारदीवारी' और 'प्रेमपत्र' 'मेहंदी लगी मेरे हाथ', 'मोहब्बत इसको कहते हैं', 'नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे', 'जुआरी', 'कन्यादान', 'हसीना मान जाएगी' जैसी असफल फिल्में उनके साथ जुड़ती चली गयी. अपने कैरियर के आखिरी दिनों में वें फिल्म डिसाइवर्स में पियर्स ब्रोसन के किरदार, तथा मुहम्मद अली जिन्ना के जीवन संस्मरण पर बन रही फिल्म जिन्ना में बतौर नरेटर की भूमिका में रहे.
शशि के जीवन संघर्ष में उनका पारिवारिक संघर्ष गौरतलब है. शशि कपूर को 20 साल की उम्र में ही प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक गोफरे केंडल की बेटी जेनिफर केंडल से प्यार हुआ. यह प्यार उन दिनों का है जब शशि अपने पिता के पृथ्वी थियेटर ग्रुप में एक्टर और स्टेज मैनेजर थे, वहीं जेनिफर भी अपने पिता के ग्रुप शेक्सपियरन में सक्रिय भागीदारी निभाती थी. कपूर और केंडल परिवार को दोनों का प्यार बर्दाश्त नहीं हुआ. नतीजतन जेनिफर ने अपने पिता का ग्रुप छोड़ा. हालांकि इधर शशि को भाभी गीता बाली का सपोर्ट मिलने से उनकी शादी की राह आसान हो गयी और 1958 दोनों ने शादी रचाई.
एक्टिंग के अलावा शशि अपनी लव लाइफ के लिए भी जाने जाते हैं
कपूर खानदान के लिए लव अफेयर के बाद शादी का यह पहला मौका था. 1984 के कैंसर से लड़ने हुए जेनिफर की मौत ने शशि को फिर से तोड़ दिया. जेनिफर शशि की सिने यात्रा के सफल और असफल दोनों ही दौर की साक्षी रहीं. बुरे दौर में परिवार की ज़िम्मेदारी को समझते हुए उन्होने घर का सामान तक बेचा. वहीं शशि कपूर के बड़े भाई राज कपूर ने भी दोनों की हर संभव मदद की. मलेशिया में शशि और जेनिफर के पास भारत लौटने तक के पैसे नहीं थे ऐसे में राज कपूर ने उन्हे टिकट करा भारत वापस बुलाया था.
राष्ट्रीय और अंतरर्ष्ट्रीय सिनेमा में लंबे समय सक्रिय रहते हुए उन्होंने हिन्दी सिनेमा को अपना जीवन समर्पित किया है. साल 2011 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार, वर्ष 2014 के दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया. जीवन के कई उतार चढ़ाव के बावजूद उनका सिने कैरियर गौर से देखने पर हमें उनकी ईमानदारी पर कोई शक नहीं होता. दीवार का वह ईमानदार इंस्पेक्टर शशि के जीवन में हमेशा रहा. जिसकी झलक हमें उनके कामों में देखने को मिलती है. अब हम आपकी याद में सिर्फ ख़त ही लिख सकते हैं पता नहीं वो भी आप तक पहुंच पाएंगे या नहीं... सच्ची श्रद्धांजलि.
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