पहलवानों का commando 3 के सीन पर नाराज होना जायज तो है लेकिन...
Vidyut Jammwal की फिल्म Commando-3 के एक सीन को लेकर अब भारत के स्टार रेसलर्स सुशील कुमार, बजरंग पूनिया और योगेश्वर दत्त ने भी आपत्ति दर्ज कराई है. इन पहलवानों का आरोप है कि ये फिल्म पहलवानों की छवि खराब करती है.
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विद्युत जामवाल (Vidyut Jammwal) की फिल्म कमांडो 3 (Commando-3) रिलीज होने से पहले ही एक सीन की वजह से विवादों में घिर गई थी. रिलीज के दो दिन पहले फिल्म के प्रोमोशन के लिए 5 मिनट का एक introductory scene रिलीज किया गया था. जिसपर कई लोगों ने आपत्ति दर्ज कराई थी. लेकिन फिल्म उस सीन के साथ आराम से रिलीज हुई. और चल भी खूब रही है. लेकिन अब भारत के स्टार रेसलर्स सुशील कुमार, बजरंग पूनिया और योगेश्वर दत्त भी इस सीन से नाराज हो गए हैं. देश के नामी गिरामी पहलवानों का आरोप है कि ये फिल्म पहलवानों की छवि खराब करती है. इन्होंने इस सीन को फिल्म से तुरंत हटाने की मांग की है.
फिल्म के एक सीन पर पहलवानों को आपत्ति
आखिर क्यों पहलवानों का बर्दाश्त नहीं कमांडो-3 का वो सीन
फिल्म कमांडो-3 के एक सीन में दिखाया गया है कि स्कूल जाने वाली लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की जा रही है और छेड़छाड़ करने वाले हैं पहलवान. एक पहलवान लड़की की स्कर्ट उठाता हुआ दिखाया गया है. लेकिन तभी हीरो की एंट्री होती है और पहलवानों की धुलाई. पर इस सीन पर पहलवानों को ऐतराज है. उनका कहना है कि अखाड़े के पहलवानों की छवि ऐसी नहीं होती.
देखिए वो सीन जिसपर आपत्ति है-
फिल्म के इस सीन पर सुशील कुमार का कहना है कि- 'एक पहलवान होने के नाते मैं इस सीन की कड़ी निंदा करता हूं. पहलवान समाज के सभ्य लोग होते हैं और बजरंग बलि के भक्त होते हैं. वो महिलाओं की इज्जत करते हैं.'
बजरंग पूनिया का कहना है कि इस फिल्म में अखाड़े को गुंडों का अड्डा और पहलवानों को criminal के रूप में पेश किया है.
मैं डायरेक्टर आदित्य दत्त के फिल्म कमांडो-3 के ट्रैलर में पहलवानों की गलत छवी दिखाएं जाने की निंदा करता हूँ। आप ने अखाड़े को गुंडों का अड्डा और पहलवानों को कृमीनलो के रूप में पेश किया है। अखाड़ा एक पवित्र स्थान और पहलवान बजरंगबली के भक्त होते हैं।आप इस गलती मे सुधार करे।#commando pic.twitter.com/25DVugrTCG
— Bajrang Punia ???????? (@BajrangPunia) November 30, 2019
वहीं योगेश्वर दत्त ने भी ट्विटर पर कहा कि फिल्मों में तड़का लगाने के लिए किसी की भी गरिमा से खेलने का हक किसी को नहीं है.
Dear @adidatt ji , I saw trailer of your movie. You're a director so I'm not anyone to tell you about directory of any kind but everything is not about box office collection n spicy tarka and right to denigrate anyone isn't being given to you... pic.twitter.com/IgAlCR4l9c
— Yogeshwar Dutt (@DuttYogi) November 29, 2019
पहलवानों का ऐतराज क्यों जायज है
सुशील कुमार, बजरंग पूनिया और योगेश्वर दत्त की बात एक दम सही है. पहलवान बजरंगबली के भक्त होते हैं. इस सीन में तो बजरंगबली की मूर्ति अखाड़े में लगी दिख भी रही है. बजरंगबली को बल का देवता कहा जाता है. पहलवानों की शक्ति का स्रोत बजरंगबली ही माने जाते हैं तो वहीं, पहलवानों द्वारा पहनी जाने वाली लंगोट को आत्म नियंत्रण और बह्मचर्य की प्रतीक माना जाता है. अखाड़े के अपने कायदे और संस्कार होते हैं जिसे हर पहलवान निभाता है.
कई पहलवान तो ऐसे भी हैं जो मुस्लिम होते हुए भी अखाड़े के सभी नियमों और परंपराओं को निभाते हैं और हनुमान चालिसा का पाठ भी करते हैं. यानी अखाड़े और इससे जुड़े संस्कार पहलवानों के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं ये आप समझ सकते हैं. गुरू जो सिखाते हैं वो पहलवानों के लिए सबसे ऊपर होता है. जब अखाड़े में पहलवान इतने गंभीर और अनुशासित होते हैं तो वही अनुशासन वो अपने जीवन में भी उतारते हैं. इसलिए कोई भी सच्चा पहलवान किसी बच्ची या महिला के साथ छेड़खानी या फिर यौन शोषण नहीं कर सकता. और इसीलिए कमांडो वाले दृश्य पहलवानों को चुभ रहा है. पहलवानों का ऐतराज इसीलिए जायज भी है.
लेकिन इस सीन को लेकर क्या इतना भावुक हुआ जा सकता है
माना कि भारत के इन पहलवानों की बात एकदम सही है. ऐतराज भी जायज है लेकिन क्या ऐसी कल्पना नहीं की जा सकती. फिल्मों में कोरी कल्पनाओं को पर्दे पर उतारा जाता है. ये भी ये काल्पना ही है. लेकिन सवाल ये है कि क्या एक पहलवान के भ्रष्ट होने की कल्पना नहीं की जा सकती? नीचता की कोई निचली सीमा नहीं है और न ही नीचता दिखाने वाले का कोई धर्म-ईमान होता है. हम उस देश में रहते हैं जिसे संस्कारों और परंपराओं के कारण ही पूरे विश्व में जाना जाता है. लेकिन हमारे देश ने ही हमें बहुत से कड़वे अनुभव भी दिए हैं जिन्होंने हमें न सिर्फ आश्चर्य दिया बल्कि आहत भी किया है. अगर पहलवान किसी का शोषण नहीं कर सकते तो मंदिर के पुजारी के संस्कार भी उसे किसी लड़की का शोषण करने की इजाजत नहीं देते. लेकिन वो करता है. चर्च के पादरी पर भी यही जिम्मेदारी होती है, लेकिन वो भी यौन शोषण में लिप्त पाया जाता है. गुरु शिष्य का रिश्ता जो सभी रिश्तों में सबसे अहम माना जाता है, जिसमें गुरू को ईश्वर तुल्य माना जाता है, वहां भी धक्का लगता है जब कोई शिक्षक या गुरू अपनी मर्यादा लांघते हुए अपनी छोटी-छोटी शिष्याओं का यौन शोषण करता है. ये तो वो रिश्ते हैं जो इंसान ने बनाए हैं. खून के रिश्तों के बारे में क्या कहेंगे जहां एक पिता ही अपनी बेटी का बलात्कार करता है. फिल्म का वो सीन तो कल्पना था लेकिन ये उदाहरण कल्पनाएं नहीं हकीकत हैं जिन्हें हम आए दिन अखबारों में पढ़ते हैं.
इसलिए ये तो नहीं ही कहा जा सकता कि वो एक पहलवान है तो वो कुछ गलत नहीं कर सकता. लेकिन किसी फिल्म में ऐसे सीन दिखाए जाने पर लोगों की भावनाएं आहत हो जाती हैं. जब असल जिंदगी में बच्चियों के साथ यौन शोषण किया जाता है तब न तो कोई पादरी समाज से कोई खड़ा होता है, न धर्म गुरुओं की भावनाएं आहत होती हैं. और न ही शिक्षा जगत की. यहां तक कि कोई पिता भी आपत्ति दर्ज नहीं करवाता, कि पिता अपनी बेटी का रेप नहीं करते. सारा गुस्सा सिर्फ फिल्मों के काल्पनिक दृश्यों पर ही??
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