Walk in Vaccination: 'पहले आओ-पहले पाओ' की स्कीम हास्यास्पद है!
वैक्सीन की कमी की वजह से 18+ उम्र के लोगों का टीकाकरण रोक दिया गया है. वैक्सीन की कमी की वजह से ही कई राज्यों में टीकाकरण की गति कमजोर भी पड़ी है. इन सबके बीच केंद्र सरकार ने 18+ उम्र के लोगों के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की बाध्यता को खत्म कर दिया है.
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देश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जितनी तेजी से संक्रमण के मामले बढ़े थे, उतनी ही टीकाकरण की रफ्तार सुस्त पड़ गई थी. दिल्ली, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में वैक्सीन की कमी की वजह से 18+ उम्र के लोगों का टीकाकरण रोक दिया गया है. वैक्सीन की कमी की वजह से ही कई राज्यों में टीकाकरण की गति कमजोर भी पड़ी है. इन सबके बीच केंद्र सरकार ने 18+ उम्र के लोगों के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की बाध्यता को खत्म कर दिया है. नए फैसले के अनुसार, 18+ उम्र के लोग अब सीधे सरकारी वैक्सीनेशन सेंटर्स पर पहुंच कर वैक्सीन लगवा सकेंगे. केंद्र सरकार के Walk In Vaccination की ये 'पहले आओ-पहले पाओ' की स्कीम हास्यास्पद है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों में हो रही वैक्सीन वेस्टेज को कम करने के लिए यह फैसला लिया है.
'कुछ डोज' के लिए स्लॉट क्यों नहीं उपलब्ध हो सकता?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों में हो रही वैक्सीन वेस्टेज को कम करने के लिए यह फैसला लिया है. केंद्र सरकार का मानना है कि कई लोग वैक्सीनेशन के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने के बावजूद भी वैक्सीन लेने नही आते हैं. इस वजह से होने वाली वैक्सीन वेस्टेज को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने ये फैसला लिया है. वैसे, इस फैसले को देखकर एक सामान्य सा शख्स भी अपना सिर पकड़ लेगा. राज्यों को पहले से ही सीमित संख्या में वैक्सीन की डोज मिल रही हैं. लोगों के Cowin.gov.in पर वैक्सीन लगवाने के लिए स्लॉट बुक करने में ही पसीने छूट जाते हैं. इस स्थिति में केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद वैक्सीन के लिए टीकाकरण केंद्रों पर बड़ी संख्या में भीड़ जुटने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है. हर व्यक्ति जिसका टीकाकरण नहीं हुआ है, वह इन वैक्सीनेशन सेंटर्स पर पहुंचने लगेंगे. जिससे टीकाकरण केंद्रों पर भारी दबाव आ सकता है. वैसे भी शहरों में किसी वजह से वैक्सीन लगवाने नहीं आ पाने वाले लोगों की संख्या आखिर कितनी हो सकती है? वो भी तब जब लोग लाइन लगाकर टीकाकरण के लिए अपने कई घंटे दे रहे हैं.
ताली-थाली के बाद लोगों के लिए एक नया टास्क
माना जा सकता है कि वैक्सीन की 'कुछ डोज' बच गईं, लेकिन इसकी जानकारी लोगों को कैसे मिलेगी? इस फैसले से ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार चाहती है कि 'कुछ डोज' के चक्कर में लोग टीकाकरण केंद्रों के चक्कर लगाते रहें. लोग अभी भी अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन के लिए संघर्ष करते देखे जा सकते हैं और अब वैक्सीन के लिए भी वही आपाधापी देखने को मिल सकती है. बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों ताली और थाली बजाने का टास्क दिया था. केंद्र सरकार का यह फैसला भी कुछ उसी तरह का लगता है. 'कुछ डोज' के लिए लोगों को भागादौड़ी में व्यस्त कर दिया जाए. लोग एक वैक्सीन सेंटर से दूसरे और दूसरे से तीसरे और शहरों के लगभग हर वैक्सीनेशन सेंटर पर भटकते रहें, जब तक लोगों को वैक्सीन न मिल जाए. वैक्सीनेशन कार्यक्रम की देखरेख कर रही टीम में निश्चित तौर पर बड़ी डिग्रियों वाले लोग होंगे, लेकिन ऐसा लगता है कि इन लोगों में शायद 'कॉमन सेंस' नाम की चीज बहुत ज्यादा कॉमन नही है. यह फैसला कहीं से भी तार्किक नजर नहीं आता है.
गांवों में अभी भी एंटी कोविड वैक्सीन को लेकर ग्रामीणों में जागरूकता की कमी है.
गांवों में टीकाकरण का बुरा हाल
वहीं, गांवों में अभी भी एंटी कोविड वैक्सीन को लेकर ग्रामीणों में जागरूकता की कमी है. दो दिन पहले ही उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में टीकाकरण के डर से ग्रामीणों ने नदी में छलांग लगा दी थी. गांव-देहात में लोग टीकाकरण कराने में हिचक रहे हैं. मध्य प्रदेश के एक गांव मालीखेड़ी में तो लोगों को टीकाकरण के लिए समझाने गए एक व्यक्ति का सिर फोड़ दिया गया. केंद्र सरकार के सामने टीकाकरण अभियान में कई जटिलताएं हैं. सरकार को चाहिए कि वह इन्हें खत्म करे. नाकि लोगों को वैक्सीनेशन सेंटर्स के चक्कर लगवाए. केंद्र सरकार ने अगस्त से दिसंबर के बीच 216 करोड़ वैक्सीन डोज उपलब्ध कराने की बात कही है. इसके लिए रोडमैप भी जारी किया है. अगर सरकार की ओर से लोगों को इसकी जानकारी उपलब्ध कराने की कोई व्यवस्था की जाती, तो कहा जा सकता था कि ये एक अच्छा फैसला है. लेकिन, वैक्सीन की 'कुछ डोज' के लिए लोगों को टीकाकरण केंद्रों के बीच दौड़ाना कही से भी सही फैसला नहीं कहा जा सकता है.
केरल का वैक्सीनेशन मॉडल लागू करने में क्या दिक्कत है?
केंद्र सरकार को वैक्सीन की वेस्टेज रोकनी ही है, तो केरल का वैक्सीनेशन मॉडल पूरे देश में लागू क्यों नहीं किया जा रहा है? केरल के नर्सिंग स्टाफ की तरह ही अन्य राज्यों के स्वास्थ्यकर्मियों को भी यह तरीका अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है. नर्सिंग स्टाफ अच्छी तरह से प्रशिक्षित होता है, तो वह ये काम आसानी से कर सकते हैं. लेकिन, वैक्सीन की वेस्टेज को रोकने के लिए सरकार इस पर विचार नहीं कर रही है. मई महीने में अब तक प्रति दिन करीब 17.5 लाख के औसत से टीकाकरण किया गया है. इस हिसाब से करीब 3 करोड़ एंटी कोविड वैक्सीन की डोज सरकार के पास होनी चाहिए. ये वैक्सीन उन राज्यों को क्यों नहीं भेजी जा रही है, जहां टीकाकरण वैक्सीन की कमी की वजह से रुका हुआ है. केंद्र सरकार की ओर से पहले ही राज्यों को 10 फीसदी तक एंटी कोविड वैक्सीन के वेस्टेज पर छूट मिली हुई है. सरकार को इस छूट को खत्म करना चाहिए और राज्य सरकारों को ज्यादा से ज्यादा लोगों का टीकाकरण करने को प्रेरित करना चाहिए.
हाल ही में कोविशील्ड के इस्तेमाल से लोगों में खून के थक्के जमने की शिकायत को लेकर भी स्वास्थ्य मंत्रालय ने रिपोर्ट जारी की थी. अब तक करीब 20 करोड़ लोगों का टीकाकरण हो चुका है और खून के थक्के जमने की समस्या केवल 26 लोगों में सामने आई थी. सरकार की ऐसी गाइडलाइंस के जरिये लोगों में टीकाकरण को लेकर डर बन रहा है. सरकार लोगों का डर और वैक्सीन की कमी को दूर करे. वैक्सीन की वेस्टेज को रोकने के लिए लोगों को एक वैक्सीनेशन सेंटर से दूसरे तक भटकाने से कोई लाभ नहीं होने वाला है.
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