वैसे तो हनीप्रीत को भी पकड़ना मुश्किल नहीं नामुमकिन था!
हनीप्रीत को तब तक उम्मीद बनी हुई थी जब तक कि हाईकोर्ट से उसकी अग्रिम जमानत नामंजूर नहीं हो गयी. हनीप्रीत की गिरफ्तारी में यही बात सबसे अहम रही और निर्णायक साबित हुई.
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हनीप्रीत भी कोर्ट में वैसे ही हाथ जोड़े खड़ी रही जैसे गुरमीत राम रहीम. फर्क बस इतना था कि गुरमीत ने ऐसा तब किया था जब उसे सजा सुनायी जा रही थी और हनीप्रीत ने तब जब उसकी पुलिस रिमांड पर फैसला होना था. बाद में कोर्ट ने हनीप्रीत को छह दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया.
क्या हाईकोर्ट से हनीप्रीत को झटका न मिला होता तो वो पुलिस के हाथ लग पाती? हनीप्रीत ने अपनी हरकतों से पुलिस को ये अहसास तो दिला ही दिया था कि उसके लिए उसे पकड़ना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है!
हनीप्रीत की हनक
हनीप्रीत की हनक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इतना सबकुछ होने के बावजूद उसे वर्ल्ड टॉयलेट डे पर सयुंक्त राष्ट्र की ओर से न्योता मिला.
सयुंक्त राष्ट्र के साफ पानी और शौचालय के लिए काम करने वाले संगठन ने एक ट्वीट कर हनीप्रीत और गुरमीत राम रहीम से कहा - हमें उम्मीद है कि आप वर्ल्ड टॉयलेट को सपोर्ट करनेंगे और अपनी बात रखेंगे. इस ट्वीट में हनीप्रीत के साथ साथ गुरमीत को भी टैग किया गया था.
ये ट्वीट अब वहां नहीं है...
दिलचस्प बात ये है कि गुरमीत को ये न्योता तब मिला है जब वो बलात्कार के जुर्म में जेल में 20 साल की सजा काट रहा है और हनीप्रीत पुलिस की गिरफ्त में है. वर्ल्ड टॉयलेट डे 19 नवंबर को मनाया जाता है और दोनों को उसी मौके के लिए ये न्योता मिला था. ट्वीट की खबर मीडिया में आने के बाद सयुंक्त राष्ट्र के उस हैंडल से ट्वीट डिलीट कर दिया गया.
जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हनीप्रीत का इतना असर है फिर तो देश में उसके प्रभाव के बारे में अंदाजा भर लगाया जा सकता है. ये वही हनीप्रीत है जो कोर्ट से सजा के बाद गुरमीत रामरहीम के साथ हेलीकॉप्टर में जेल छोड़ने गयी थी - खट्टर सरकार का मुलाजिम सूटकेस पहुंचा रहा था. कार्रवाई भी उसके खिलाफ तब हुई जब वो कैमरे के नजर से न बच सका.
कानून के हाथ
कानून के हाथ बड़े लंबे होते हैं. इतने लंबे कि जिस किसी भी डॉन को न पकड़े जाने का गुमान हो जाता है वो भी बच नहीं पाता. लेकिन कानून के ये हाथ लंबे तभी नजर आते हैं जब उसे सख्ती से लागू किया जाये. गुरमीत रामरहीम केस में तो ये बार बार देखने को मिल रहा है कि कानून तभी काम करता है या उसका असर दिखता है जब कोर्ट खुद एक्शन में आता है.
पुलिस से पहले हनीप्रीत ने आज तक को इंटरव्यू दिया, फिर गिरफ्तारी हुई
गुरमीत की ही तरह हनीप्रीत ने भी बचने के वो सारे उपाय किये जो संभव हो सके. उसने कोर्ट में गुहार लगायी और जब अर्जी नामंजूर हो गयी तो उसने सरेंडर से पहले मीडिया को साधने की कोशिश की. जी भर कर साधा भी. 'आज तक' को इंटरव्यू देने के बाद और पुलिस के पहुंचने से पहले जिस किसी को भी अपनी कहानी सुना सकी दलील के साथ तफसील से अपना पक्ष रखा.
हनीप्रीत पुलिस और मीडिया दोनों को बराबर छकाया. कभी उसे नेपाल में देखे जाने की बात होती तो कभी राजस्थान के डेरे की शाखा में. कैमरे और पुलिसवाले इधर से उधर भागते रहते और वो उनके पहुंचने के पहले ही फुर्र हो जाती.
ये सब हनीप्रीत के लिए भला मुमकिन कैसे हो पा रहा था और उस तक पहुंचना पुलिस के लिए मुश्किल क्यों था? खुद हरियाणा पुलिस को ही लगता है कि उसे दूसरे राज्यों के पुलिसवालों की पूरी मदद मिलती रही.
पुलिस की शिकायत
हरियाणा पुलिस का आरोप है कि पंजाब पुलिस ने सहयोग नहीं किया. असल में तो उसके कहने का मतलब ये है कि पंजाब पुलिस ने हरियाणा पुलिस की मदद की जगह हनीप्रीत की ही मदद करती रही. हरियाणा पुलिस को लगता है कि जब भी और जहां कहीं भी उसने दबिश दिये, हनीप्रीत को पहले ही खबर लग जाती और वो वहां से गायब हो जाती. ऐसा ही आरोप हरियाणा पुलिस ने राजस्थान पुलिस पर भी लगाया था. एक दिन तो खबरें ऐसे आ रही थीं जैसे राजस्थान से ही हनीप्रीत को पकड़ लिया जाएगा. बाद में पता चला वो किसी पीछे के दरवाजे से पहले ही निकल चुकी थी. मानना पड़ेगा हनीप्रीत का नेटवर्क पुलिस से कहीं आगे बढ़ कर था. तकनीका का भी उसने पूरा इस्तेमाल किया. कहते हैं उसे जिस किसी से भी बात करनी होती इंटरनेशनल नंबर से व्हास्टऐप कॉलिंग करती रही.
पुलिस से पहले कैमरे पर...
हनीप्रीत को लगता होगा कि उसके खिलाफ पुलिस का केस कमजोर है, इसलिए उसे कुछ नहीं होगा. ठीक वैसे ही जैसे गुरमीत रामरहीम को भी जरा भी अहसास नहीं था कि कोर्ट में कोई ऐसा भी जज बैठा होगा जो उसे जेल भेज देगा. हनीप्रीत के वकील की दलील है कि चूंकि वो दिन भर कोर्ट में रही और सुरक्षा कारणों से उसका मोबाइल ले लिया गया था - इसलिए उस पर कोई केस बनता ही नहीं. कानून का ये पेंच हनीप्रीत भी काफी आसान लगा होगा, लेकिन वो तो और भी टेढ़ा निकला.
जब कोर्ट से मिला झटका
अपने खिलाफ केस के कमजोर होने की समझ के कारण ही हनीप्रीत को हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत की भी उम्मीद रही होगी. हनीप्रीत तब तक भागती रही जब तक हाईकोर्ट ने उसकी जमानत अर्जी नामंजूर करते हुए सरेंडर करने को नहीं कह दिया. ऐसा होते ही उसके घरवाले भी मीडिया के जरिये उसे सरेंडर की सलाह देने लगे.
बावजूद इसके वो आखिरी बॉल तक बचाव की पिच पर जमी रही. संभव है उसके वकील ने ही सलाह दी हो कि कोई रास्ता नहीं बचा है तब जाकर उसने हथियार डाल देने का फैसला किया हो. लेकिन ये भी उसने अपने ही हिसाब से किया. हनीप्रीत को ये जरूर मालूम होगा कि एक बार पुलिस के हत्थे चढ़ गयी तो समाज के सामने वही कहानी आएगी जो पुलिस सुनाएगी. वैसे भी कहानी गढ़ने में पुलिस का कोई सानी नहीं. यही वजह रही होगी कि पुलिस से पहले मीडिया के कैमरे पर आकर अपनी दलील पेश की और पूरा पक्ष रखा. हनीप्रीत ने इस मौके का भी पूरा फायदा उठाया.
हनीप्रीत आखिर तभी पुलिस के हत्थे चढ़ी जब उसने खुद ऐसा होने दिया. निश्चित तौर पर अगर कोर्ट से झटका न लगा होता, हरियाणा पुलिस को भी ये अहसास तो हो ही चुका था कि हनीप्रीत को पकड़ना मुश्किल नहीं नामुमकिन था.
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