क्या हिंदू धर्म में Inter Caste शादी की मनाही है ? खुद कृष्ण ने दिया था ये ज्ञान
अंतरजातीय शादियों को लेकर जो विवाद भारत में होता है वो शायद ही और किसी देश में होता हो (कट्टर देशों को छोड़ दीजिए वहां मार दिए जाएंगे), पर हमेशा धर्म और शास्त्रों की बात करने वाले इस देश में आखिर शास्त्रों में क्या लिखा है शादी के बारे में ?
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हिंदुस्तान में inter caste शादियों को लेकर क्या विचार हैं वो तो सभी को पता हैं, इसी के साथ अगर कहीं inter religion शादियों की बात करें तब तो तलवारें खिंच जाती हैं, ऑनर किलिंग हो जाती है और कई बार तो मामला कोर्ट कचहरी तक भी पहुंच जाता है. खैर, हिंदू धर्म में अंतरजातीय शादियों को लेकर अक्सर यही कहा जाता है कि पाप लगेगा. तो इसे सिर्फ समाज की पुरानी और दकियानूसी सोच कहेंगे या फिर शास्त्रों में भी कुछ लिखा गया है इसके बारे में?
गीता में क्या लिखा है?
गीता को एक सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ माना जाता है. कहा गया है कि गीता में दिए गए उपदेश सीधे श्रीकृष्ण की वाणी होते हैं. तो यकीनन इतने जरूरी ग्रंथ में कुछ तो लिखा ही होगा. धर्म और शादी के बारे में भी..
अगर कोई ऐसा सोच रहा है तो उसे बता दूं कि गीता में अंतरजातीय शादियों के बारे में कुछ नहीं लिखा. हां गीता के अध्याय 1 के श्लोक 41 से अर्जुन कुल की बात जरूर कर रहे हैं..
गीता का श्लोक--
अध्याय 1 का श्लोक 41
अधर्माभिभवात्, कृष्ण, प्रदुष्यन्ति, कुलस्त्रिायः,
स्त्रीषु, दुष्टासु, वाष्र्णेय, जायते, वर्णसंकरः।।
अनुवाद: हे कृष्ण! पाप के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रिायाँ अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और हे वाष्र्णेंय! स्त्रियों के दूषित चरित्र वाली हो जाने पर वर्णशंकर संतान उत्पन्न होती है.
अध्याय 1 का श्लोक 42
संकरः, नरकाय, एव, कुलघ्नानाम्, कुलस्य, च,
पतन्ति, पितरः, हि, एषाम्, लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।।
अनुवाद: वर्णसंकर कुलघातियों को और कुलको नरक में ले जाने के लिये ही होता है. गुप्त शारीरिक विलास जो नर-मादा के बीज और रज रूप जल की क्रिया से इनके वंश भी अधोगति को प्राप्त होते हैं.
अध्याय 1 का श्लोक 43
दोषैः, एतैः, कुलघ्नानाम्, वर्णसंकरकारकैः,
उत्साद्यन्ते, जातिधर्माः, कुलधर्माः, च, शाश्वताः।।43।।
अनुवाद: इन वर्णसंकर कारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल-धर्म और जाति- धर्म नष्ट हो जाते हैं.
यहां पर कुल यानि परिवार की बात हो रही है और स्त्रियों के दूषित होने से तात्पर्य किसी अन्य कुल में विवाह करना, प्रेम करना या किसी भी तरह से एक कुल की स्त्री का किसी और कुल में जाना निकाला जा सकता है.
इसका जवाब मिलता है गीता के अध्याय 2 के श्लोक 3 में.. जहां कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि..
क्लैब्यम्, मा, स्म, गमः, पार्थ, न, एतत्, त्वयि, उपपद्यते,
क्षुद्रम् हृदयदौर्बल्यम्, त्यक्त्वा, उत्तिष्ठ, परन्तप।।
अनुवाद: हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती. हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिये खड़ा हो जा.
सिर्फ इसी श्लोक को कृष्ण का जवाब माना जा सकता है. इसके अलावा, श्री कृष्ण ने गीता में ये भी कहा है कि उन्होंने चार वर्ण इंसान के कर्म के हिसाब से बनाए हैं और न की उसके जन्म के हिसाब से...
वर्णों के लिए गीता का श्लोक.. (अध्याय 4 श्लोक 13)
चातुर्वण्र्यम्, मया, सृष्टम्, गुणकर्मविभागशः,
तस्य, कर्तारम्, अपि, माम्, विद्धि, अकर्तारम्, अव्ययम्।।
अनुवाद: (चातुर्वण्र्यम्) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्णों का समूह गुण और कर्मों के विभाग पूर्वक मेरे द्वारा रचा गया है. इस प्रकार उस कर्म का कर्ता भी मुझ काल को ही जान तथा वह अविनाशी परमेश्वर अकत्र्ता है. (भावार्थ- गीता अध्याय 3 श्लोक 14-15 में गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि कर्मों को ब्रह्मोद्धवम अर्थात् ब्रह्म से उत्पन्न जान. यही प्रमाण इस अध्याय 4 श्लोक 13 में है. गीता ज्ञान दाता काल ब्रह्म कह रहा है कि चार वर्णों की व्यवस्था मैंने की है. इनके कर्मों का विभाजन भी मैंने किया है. वह अविनाशी पूर्ण परमात्मा इन कर्मों का अकर्ता है, ब्रह्मा रजगुण, विष्णु सतगुण तथा शिव तमगुण के विभाग भी काल ब्रह्म ने बनाए हैं सृष्टि, स्थिती, संहार. इनका करने वाला अविनाशी परमात्मा नहीं है.)
तो इसे क्या माना जाए? जब गीता में ही लिखा है कि इंसान के कर्म के हिसाब से उसका वर्ण निर्धारित होता है तो यकीनन अंतरजातीय शादी जैसी छोटी बात आखिर कैसे पूरी हो सकती है.
जहां तक घर वालों की मर्जी के खिलाफ शादी करने की बात है तो. खुद कृष्ण-रुकमणी, अर्जुन-सुभद्रा का विवाह बिना परिवार की मर्जी के हुआ था.
हिंदू धर्म के 8 विवाह...
वेद और शास्त्रों की बात करें तो हिंदू धर्म के अनेको शास्त्रों में से एक में से एक सिर्फ मनुस्मृति में ही 8 अलग-अलग तरह की शादियों का वर्णन है जिसमें से 4 धर्म के हिसाब से ठीक और 4 धर्म के विरुद्ध मानी गई हैं.
1. ब्रह्म विवाह..
सबसे अच्छा विवाह जहां शादी में दहेज नहीं लिया जाता. दोनों परिवारों की मर्जी से कुल के अनुसार शादी होती है और कन्यादान भी होता है.
2. प्रजापत्य विवाह..
इस विवाह में लड़की और लड़का दोनों बच्चे होते हैं और कन्यादान की जगह पाणिग्रहण संस्कार होता है. शादी तब तक पूरी नहीं होती जब तक बच्चे बड़े न हो जाएं. यहां कन्या की मर्जी नहीं पूछी जाती. वर ऊंचे कुल का हो सकता है.
3. दिव्य विवाह..
ऐसा विवाह जिसमें लड़की के माता-पिता किसी वजह से उसका विवाह करवाने में असमर्थ रहते हैं और इसलिए किसी ऐसे इंसान के पास जाते हैं जो उनकी कन्या से शादी करने की इच्छा रखता है और किसी राजा या धनी व्यक्ति के पास जाकर उससे ये निवेदन किया जाता है कि वो गरीब की बेटी की शादी करवा दे.
4. अर्श विवाह..
कन्या-पक्ष वालों को कन्या का मूल्य दे कर (सामान्यतः गौदान करके) कन्या से विवाह कर लेना अर्श विवाह कहलाता है.
5. गंधर्व विवाह..
परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना 'गंधर्व विवाह' कहलाता है.
6. असुर विवाह..
कन्या को खरीद कर (आर्थिक रूप से) विवाह कर लेना 'असुर विवाह' कहलाता है. यहां वर किसी भी तरह से कन्या की टक्कर का नहीं होता, लेकिन धन देकर कन्या को खरीदा जाता है.
7. राक्षस विवाह..
अब इसे असली लव मैरिज कहेंगे. ये वो विवाह है जिसमें लड़की तो राजी होती है, लेकिन उसके परिवार वाले नहीं, इसलिए लड़की को अगवा कर (उसकी मर्जी से) वर उससे शादी करता है.
चाहें कृष्ण-रुकमणी की बात हो, अर्जुन-सुभद्रा की या फिर पृथ्वीराज चौहान और संयुक्ता की सभी ने इस तरह का विवाह किया था. यानि भगवान और पुराने जमाने के राजा भी लव मैरिज या अंतरजातीय मैरिज करते थे.
8. पैशाच विवाह..
कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना 'पैशाच विवाह' कहलाता है. इसमें कन्या के परिजनों की हत्या तक कर दी जाती है. ये सबसे अधर्मी विवाह है.
अब देखा जाए तो यहां वर और कन्या की मर्जी से हुए विवाह को भी मान्यता दी गई है और अधर्म तब होगा जब कन्या की मर्जी न हो. इसलिए श्राप से डराने वालों को थोड़ा सोच लेना चाहिए. अगर कोई प्रेमी जोड़ा शादी करना चाहे तो एक बार उनकी बात जरूर सुनिए, ऑनर किलिंग से कुछ नहीं होगा.
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