धार्मिक पाखंडियों के लिए किसी सुनामी से कम नहीं हैं 'सुहानी'...
सुहानी ने पूरे इंटरनेट पर तहलका मचाया हुआ है. सुहानी फेस रीडिंग में दक्ष है.वो लोगों के मन को पढ़ने के चमत्कार दिखा रही है. वो इस मनोविज्ञान या चमत्कार को कला कहती हैं.ऐसी कला में दक्ष बाबा, स्वामी, तांत्रिक, मौलाना,रम्माल या ईसाई धर्म गुरु लाखों-करोड़ों का दिल जीत लेते हैं. उनके दर्शन करने, उन्हें सुनने और उनके चमत्कार देखने हजारों लोग आते हैं.
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मनोविज्ञान अद्भुत विज्ञान है. बॉडी लेंग्वेज, एक्सप्रेशन के अलावा माइक्रोऑब्जर्वेशन दिल की बात भी जान लेता है. ये साइंस है, ट्रिक है, कला है.. इसे कुछ भी कह लीजिए. एक ख़ास शिक्षा,अभ्यास और स्टडी की साधना के बाद ऐसे कारनामें कोई भी दिखा सकता है. धर्म का आवरण चढ़ा कर ऐसे कारनामों को ही बाबा, महत्मा, मौलाना .. पेश करते रहे हैं. दिल की धड़कनों और सांसों के वाइब्रेशन से एक्सप्रेशन और बॉडी लेंग्वेज तय होती है और आपके मन की बातें जानी जा सकती है. इस विज्ञान का ज्ञाता बनने के लिए साधना करनी पड़ती है. इंसान के मन को पढ़ने की साधना एक्सप्रेशन और बॉडी लेंग्वेज की रीडिंग पर आधारित होती है. सुहानी नाम की एक लड़की ऐसे मनोविज्ञान या फेस रीडिंग में दक्ष है.
सुहानी शाह जिनके जादू ने इंटरनेट पर एक नयी तरह के बज को जन्म दे दिया है
वो लोगों के मन को पढ़ने के चमत्कार दिखा रही है. वो इस मनोविज्ञान या चमत्कार को कला कहती हैं.ऐसी कला में दक्ष बाबा, स्वामी, तांत्रिक, मौलाना,रम्माल या ईसाई धर्म गुरु लाखों-करोड़ों का दिल जीत लेते हैं. उनके दर्शन करने, उन्हें सुनने और उनके चमत्कार देखने हजारों लोग आते हैं. इस तरह बाबा लोग धन और यश की प्राप्ति करते हैं. ये अलग-अलग धर्मों का चोला पहनकर धर्म की दुकानें चलाते हैं.
जबकि ये पाखंडी सुहानी की तरह अपनी मनोविज्ञान या कला साधना का प्रदर्शन करके भी धन और यश हासिल कर सकते हैं. जबकि कोई धर्म किसी आभामंडल, कला-साहित्य, विज्ञान, चमत्कार से परे है. हर धर्म अपने शाब्दिक अर्थ में ही मौजूद है. धर्म मतलब- 'इंसानियत का फर्ज'.
यदि आप मानवता का कर्तव्य निभा रहे हैं तो समझ लीजिए कि आप अपने धर्म पर चल रहे हैं और आस्तिक हैं. मानवता का फर्ज नहीं निभा रहे हैं तो आप खुद को अधर्मी या नास्तिक मानिए.अस्ल धर्म सिर्फ इंसानियत का फर्ज निभाना है, बाक़ी सब तमाशा है.
हालांकि तमाशा करना भी बुरा नहीं. ये तमाशों जीवन को कला-संस्कृति, साहित्य के रंगों से कलरफुल करता है. मिलने-जुलने और खाने-पीने के बहाने पैदा करता है. पवित्रत बनाते हैं.अनुशासन और आयोजन का हुनर सिखाता है. किंतु धर्म चमत्कार दिखा रहा कर चढ़ावा इकट्ठा कर रहा हो, ढोंग को बढ़ावा दे रहा हो नफरतें और दूरियां पैदा कर रहा हो तो समझ लीजिए ये धर्म नहीं अधर्म है.
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