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Updated: 07 जून, 2016 08:14 PM
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जिस भूमि को राम की जन्मभूमि के तौर पर पूरी दुनिया में ख्याति मिली है. उस भूमि के बारे में ऐसा भी कुछ है जिसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई. अयोध्या को राम की नगरी के तौर पर तो सभी जानते हैं लेकिन ये बात शायद बहुत कम लोगों को पता होगी कि अयोध्या को 'छोटी मक्का' के तौर भी जाना जाता है.

जी हां, भले ही इस शहर को बाबरी मस्जिद विवाद के कारण दो धर्मों के लोगों के बीच तनावों को लेकर चर्चा मिलती हो लेकिन इसकी एक पहचान गंगा-जमुनी तहजीब से भी जुड़ी है. जो दिखाती है कि इस शहर की महानता सांप्रदायिक विवादों से कहीं ज्यादा है और ये भूमि विवादों नहीं बल्कि दोनों धर्मों की एकता का प्रतीक है. आइए जानें कि आखिर क्यों राम की नगरी अयोध्या कहलाती है 'छोटी मक्का' भी.

राम की नगरी अयोध्या क्यों है छोटी मक्का भी?

राम की नगरी अयोध्या को छोटी मक्का के तौर पर भी जाना जाता है. लेकिन इसकी चर्चा बहुत कम हुई है. लेकिन मुस्लिमों के पवित्र महीने रमजान के दिनों में अयोध्या के छोटी मक्का होने के कारणों का पता चलता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक अयोध्या में कम से कम 20 दरगाह ऐसी हैं जो मुस्लिमों के लिए काफी महत्व रखती हैं. खास बात ये है कि ये सभी दरगाह हिंदुओं को भी अपनी तरफ आकर्षित करती हैं. अयोध्या में 100 से ज्यादा मस्जिद हैं जो हिंदुओं के सम्मान में शाकाहारी नियमों का बड़ी सख्ती से पालन करते हैं.

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अयोध्या स्थित हजरत शीस की दरगाह मुस्लिमों के लिए बहुत पवित्र मानी जाती है

एक मुस्लिम धार्मिक नेता मोहम्मद ओमर के मुताबिक मुस्लिमों के लिए मक्का के बाद अयोध्या का नंबर आता है. मौलवी मोहम्मद अकरम कहते हैं कि सेक्युलर मुस्लिम भगवान राम को पैंगबर के तौर पर देखते हैं. धार्मिक ग्रंथ उन्हें अवतार बताते हैं और कुरान में सभी पैंगबरों का सम्मान करने का निर्देश दिया गया है.

लेकिन अयोध्या में ऐसा क्या है जो इसे सभी मुस्लिमों के लिए बेहद पवित्र भूमि बना देता है. तो इसका जवाब देते हैं श्री सरयू अवध बालक समिति के संयोजक कृष्ण कुमार मिश्रा. वह कहते हैं कि अयोध्या शायद भारत में एकमात्र जगह है जहां इस्लामिक पैंगबर हजरत शीस की दरगाह है. हजरत शीस की दरगाह सभी स्थानों के बीच सबसे श्रद्धेय है. इस दरगाह के बारे में इसके केयरटेकर मोहम्मद कलीन-उद्दीन फिरदौसी कहते हैं कि हजरत शीस  हजरत आदम (धरती पर भेजे गए पहले व्यक्ति) के पुत्र थे.

वह बताते हैं कि हजरत शीस की दरगाह कम से कम 600 वर्ष पुरानी है. हजरत शीस धरती पर पैदा होने वाले पहले बच्चे थे और वह करीब 1000 साल जीवित रहे. निर्माण के बाद से ही उनकी मजार की लंबाई बढ़ती रही है. अकबर के समय में उनके लेखक अबु फजल ने भी इस मजार का जिक्र किया था. साथ ही अवध प्रांत के 1877 के गैजेट में भी इस मजार का जिक्र है.

तो अब जान लीजिए कि अयोध्या की धरती हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल है और हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए पवित्र और पूज्य है. विवाद तो बाहरी लोगों ने अपने फायदे के लिए पैदा किया है!

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