भारत में समलैंगिक विज्ञापन चलेंगे, फिल्म क्यों नहीं?
एलजीबीटी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हुए दो सुंदर लड़कियां अपने जीवन में उत्सुकता से माता-पिता की स्वीकृति की प्रतीक्षा कर रही हैं, यह अब तक का एक दुर्लभ भारतीय विज्ञापन था.
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हमारे समाज में लोगों का एक बड़ा वर्ग लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) समुदाय को गलत ठहराता आ रहा है. मिंत्रा के एक विज्ञापन में लिव-इन में रहने वाले एक लेस्बियन जोड़े को दिखाया गया है. अपनी किस्म के इस पहले एड की खूब मार्केटिंग हुई. आखिरकार इस विज्ञापन में परिपक्वता दिखाने और हमारे दैनिक जीवन में समलैंगिकों को स्वीकार करने वाले भारतीय समाज के नजरिए को हर लिहाज से दिखाया गया था.
एलजीबीटी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हुए दो सुंदर लड़कियां अपने जीवन में उत्सुकता से माता-पिता की स्वीकृति की प्रतीक्षा कर रही हैं, यह अब तक का एक दुर्लभ भारतीय विज्ञापन था. आमतौर पर एलजीबीटी मुद्दों पर विचार-विमर्श से विवादों की श्रंखला बन जाती है. निर्णायक टिप्पणियां और कास्टिक बहस शुरू हो जाती है. मगर इस विज्ञापन की सुखद टोन एक साफ रवानगी वाली थी.
जब हम पागलों की तरह मध्यम वर्गीय समाज में "एक खास तरह" के समलैंगिक विज्ञापन को मजबूत बनाने के लिए जश्न मना रहे थे तो, फ्लोरिडा में रहने वाले भारतीय मूल के अमेरिकी फिल्म निर्माता राज अमित कुमार ने चुपचाप अपनी विवादास्पद फिल्म अनफ्रीडम की स्क्रीनिंग करने के लिए मुंबई शहर के शांत कोने को चुना. इस फिल्म में दर्शकों को समलैंगिकों की जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराने की कोशिश की गई है. भारत में इस फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. क्योंकि सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को भारतीय दर्शकों के लिए अनुचित और अनुपयुक्त पाया है.
एलजीबीटी समुदाय सहित युवाओं का एक बड़ा वर्ग मुंबई के हाइव थियेटर में अनफ्रिडम देखने के लिए एक साथ जमा हुआ. यह फिल्म आईआईटी मुंबई फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाई गई ताकि दर्शक खुद इसे देखकर इस बात का फैसला कर सकें कि यह फिल्म उनके लिए ठीक है या नहीं. मजबूत कहानी और ग्राफिक की वजह से दर्शकों के रोंगटे खड़े हो गए. और कहानी से बंधे रहे.
कुछ अमेरिकी सिनेमाघरों में 29 मई को रिलीज हुई इस फिल्म पर लोगों ने मिलीजुली राय दी. अमेरिकी फिल्म समीक्षक फिल्म का विश्लेषण करने की बजाय भारत में इस पर प्रतिबंध लगा दिए जाने को लेकर ज्यादा चिंतित थे. पश्चिमी देशों को "बैनिस्तान" के तौर पर भारत को प्रचारित-प्रसारित करने की एक और वजह मिल गई.
बोल्ड सेक्स सीन को देखने के बाद बोर्ड की पुनरीक्षण समिति ने कुछ सीन काटने का सुझाव दिया था, लेकिन विद्रोही फिल्म निर्माता को यह मंजूर नहीं था. उन्होंने इसके खिलाफ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अपीलीय न्यायाधिकरण 'FCAT' में अपील की थी. अपील के जवाब में अधिकारियों ने परवाह किए बिना कट्स की बजाय फिल्म पर ही प्रतिबंध लगा दिया. कुमार ने अब उच्च न्यायालय में अपील की है और फिल्म पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ change.org पर एक याचिका हस्ताक्षर करने के लिए समर्थकों से आग्रह किया है. वह जोरदार तरीके से सेक्स सीन को नहीं काटने के अपने फैसले का बचाव कर रहे हैं. सेंसर बोर्ड को लगता है कि कुमार को इस विचार से परेशान हैं और उन सीन से नहीं.
यह फिल्म शादी से बचने के लिए घर से भागी एक दुल्हन के जीवन को दर्शाती है, उसकी एक साथी पांरपरिक तरीके से आयोजित की गई शादी से भागने में उसकी मदद करती है. कुमार ट्रांसजेंडर महिलाओं... विशेष रूप से एक दलित समाज में उनकी दुर्दशा को समझाने के लिए एक महत्वपूर्ण घटक के तौर पर नग्नता का उपयोग करते हैं. कहानी में यह तरीका एक समाज के लिए राजनैतिक रूप से गलत और बहुत कठोर हो सकता है, जो मजबूत तरीके से आतंकवाद या समलैंगिकता जैसे मुद्दों का चित्रण करता है.
दुनिया में रोमांटिसिज़्म के सबसे समर्पित प्रशंसकों के रूप मशहूर भारतीयों को सच्चाई का एक मामूली उल्लेख दर्द के साथ रुला देता है. यह उस तरीके को साबित करता नजर आता है कि हम में से ज्यादातर मिंत्रा विज्ञापन में दो लड़कियों को नरम पहलू और सरल प्यार के लहजे में देखते हैं, जो पहली नज़र में दो करीबी दोस्तों के एक कमरे में रहने को दर्शाता है. लेकिन हम भारतीय यह सब केवल दर्शकों के रूप में ही देख सकते हैं.
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