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Updated: 21 नवम्बर, 2018 11:24 AM
दमयंती दत्ता
दमयंती दत्ता
 
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पहले कठुआ, सूरत, एटा, बालासोर, इंदौर, चतरा, चंद्रौली और अब अलवर. फिर से एक और बच्ची के साथ बलात्कार हुआ. एक बार फिर. अप्रैल के बाद से बच्चों पर होने वाली क्रूरता के मामलों ने लोगों को क्रोध, निराशा और घृणा से भर दिया है. नतीजन लोग सड़कों पर उतर आए हैं. कठुआ में बलात्कार और हत्या के मामले में आठ आरोपिओं पर मुकदमा अभी शुरू हुआ है. लेकिन फिर भी ऐसे अपराधों का सिलसिला लगातार जारी है.

क्या बच्चों के साथ बलात्कार करने वाले अंधे हैं? उन्हें रेप के खिलाफ होने वाले विरोध प्रदर्शन नहीं दिखाई दे रहे? विरोध के स्वर सुनाई नहीं देते? क्या उन्हें डर नहीं लगता? आखिर वे हैं कौन? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो इंडिया टुडे पत्रिका के इस सप्ताह के अंक में पूछे गए हैं.

इस कवर स्टोरी के लिए, मैंने कई दिनों तक कई मनोवैज्ञानिकों, मनोचिकित्सकों और फोरेंसिक विशेषज्ञों से बात की. ये वो पुरुष और महिलाएं हैं जिन्होंने रेप पीड़ित बच्चों और बच्चों का रेप करने वाले अपराधियों के साथ वर्षों तक काम किया है. कुछ ने तो कई सनसनीखेज मामलों को सुलझाया है, और कुछ ने दुनिया भर में ऐसे अपराधियों और पीड़ितों को देखा है.

child, rapeबच्चियों के रेप के मामले दिनोंदिन बढ़ ही रहे हैं.

कई विशेषज्ञों ने माना कि वर्षों के पेशेवर प्रशिक्षण के बावजूद बच्चों पर हुए अत्याचार की घटनाओं को देखकर वो परेशान हो जाते हैं. क्योंकि बच्चों के साथ बलात्कार के मामले में क्रूर हिंसा भी की जाती है. बिना किसी शर्त के ये क्रूरता है और बहुत क्रूर है. सिर्फ उनसे बात करके ही कई दिनों तक मैं भावनात्मक रूप से टूट सी गई. खाली हो गई. और परेशान रही.

यहां कुछ चीजें हैं जो मैंने उनसे अपनी बातचीत के बाद सीखी हैं:

सबसे कठिन अपराध-

उन्होंने इसे सबसे परेशान और भावनात्मक रुप से तोड़ने वाले अपराधों में से एक कहा. अक्सर इस अपराध का कोई साक्ष्य या गवाह नहीं होता. बच्चे अक्सर अपने ऊपर हुए इस अत्याचार को व्यक्त नहीं कर पाते हैं. और अगर बच्ची मर जाती है, तो उस बच्ची का मृत शरीर ही क्राइम सीन बन जाता है.

इसका कोई पैटर्न नहीं है-

ज्यादातर अपराधी "सामान्य" लोग होते हैं. वे किसी भी पृष्ठभूमि से हो सकते हैं. इस अपराध का कोई निश्चित पैटर्न नहीं है. लेकिन एक बात तय है: बच्चे का रेप करने वाला एक बहुत ही चालाक और शातिर इंसान है. और ऐसे लोग अपने इन कुकृत्यों के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं.

ज्यादातर कभी पकड़े नहीं जाते-

सबसे खतरनाक बात यह है कि ज्यादातर अपराधी कभी पकड़े नहीं जाते हैं. वे बार-बार अपराध करते रहते हैं. यूके में बच्चों का रेप करने वालों के ऑडिट में भाग लेने वाले एक विशेषज्ञ के मुताबिक इस तरह का अपराध करने वाला पकड़े जाने से पहले 66 बार ऐसे अपराध कर चुका होता है.

अचानक इतने सारे मामले क्यों होने लगे-

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 10 वर्षों में बच्चों के खिलाफ रेप और यौन शोषण में 336 फीसदी की वृद्धि हुई है. 2015 और 2016 के बीच ये आंकड़ा 82 प्रतिशत बढ़ गया. और 2018 के सिर्फ पांच महीनों में ही अपराधों के आंकड़ें डराने वाले आए हैं. आखिर ये क्या बताता है? कई विशेषज्ञों के मुताबिक, यह समाज के बदलते रवैये को दिखाता है. लोग चीजों को अपने नियंत्रण में महसूस करने के लिए क्रोध का उपयोग कर हैं. और यही हमें रसातल पर लेकर जा रहा है.

गुस्सा और बलात्कार-

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे परिवारों और समाज में बहुत सी छिपी हुई हिंसाएं हैं. जो लोग घर में होती हिंसाओं को देखकर बड़े होते हैं, वे समाज में अन्य लोगों के अधिकारों या भावनाओं के प्रति उदासीन हो जाते हैं. हिंसा और क्रोध उनके दिमाग में "पैठ" बना लेती है. शायद इससे पता चलता है कि आखिर ऐसे क्रूर अपराधों में इतने सारे किशोर क्यों शामिल हैं. ध्यान दें, किसी भी तरह के बलात्कार के पीछे छिपी भावनाओं में से क्रोध, गुस्सा, चिढ़ भी एक कारक है.

भावनात्मक लगाव-

कुछ विशेषज्ञों ने "भावनात्मक लगाव" जैसे शब्द का भी उल्लेख किया. ये अपने आप में ही बहस का एक मुद्दा है. हाल के शोध ने मानव संचार और बातचीत के पीछे तंत्र को प्रकट करना शुरू कर दिया है: कैसे हम अनजाने में अपने भावनात्मक संकेतों को दूसरों को पास कर सकते हैं. 

क्या एक जघन्य अपराध दूसरों के दिमाग में ऐसे कृत्यों के लिए कोई मैसेज भेजता है और उसे सक्रिय कर देता है? खासकर उन्हें जो लोग पहले से ही परेशान और बीमार हैं? क्या वे ऐसी घटनाओं से किसी तरह की प्रेरणा लेते हैं और ऐसे अपराधों और अपराधियों की नकल करने लगते हैं? ये एक डरावना विचार है. लेकिन, याद रखें, निर्भया त्रासदी के तुरंत बाद, बलात्कार के मामलों की संख्या बढ़ गई. कम नहीं हुए जैसा कि सभी ने इसकी उम्मीद की होगी.

तो अब सारी जिम्मेदारी हम पर है कि हम इस तरह के मामलों को रिपोर्ट करें, उनका विश्लेषण करें और इन पर खुलकर बात करें.न्याय में देरी नहीं होनी चाहिए-

दुनिया भर के देशों के उदाहरण बताते हैं कि मृत्युदंड से अपराध दरों में कमी नहीं होती, बल्कि डर, निश्चित और गंभीर सजा का डर ही इस तरह के दुर्व्यवहार को हतोत्साहित करता है.

स्कूलों में पढ़ाते हैं उसे बदलें-

विशेषज्ञों का मानना है कि, समाज के सृजनशील, सोच विचार करने वाला होना शिक्षा में निहित है. एक एक्सपर्ट ने कहा, "हमारे पाठ्यक्रम में से बेकार की चीजों को निकाल देना चाहिए. आखिर जॉनी जॉनी जैसी कविताएं कैसे किसी भी बच्चे के कुछ सीखने में मदद करती है?" सीधी सी बात ये है कि बच्चों को और अधिक कार्यात्मक चीजें सिखाएं: अच्छे स्पर्श-बुरे स्पर्श से लेकर "नहीं" कहने की क्षमता तक.

इसके अलावा, मूल्यों पर ध्यान केंद्रित करें: सहानुभूति, करुणा और दयालुता. बच्चों को क्रोध से निपटने के तरीके सिखाएं.

(DailyO से साभार)

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लेखक

दमयंती दत्ता दमयंती दत्ता

लेखिका इंडिया टुडे मैगजीन की कार्यकारी संपादक हैं.

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