भारत में किसी जिन्ना टावर को तिरंगे से रंगने में 75 साल क्यों लगते हैं?
आंध्र प्रदेश के गुंटूर (Guntur) में स्थित जिन्ना टावर (Jinnah Tower) देश के आजाद होने से पहले बना था. भाजपा (BJP) मांग कर रही है कि जिन्ना टावर का नाम बदल कर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर किया जाए. यह समझ से बाहर है कि इस मामले में कुछ राजनीतिक दलों को सांप्रदायिकता नजर आ रही है.
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आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के गुंटूर में बीती 26 जनवरी को कुछ लोगों ने एक टावर पर तिरंगा फहराने की कोशिश की थी. जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. वैसे, इस बात से किसी को भी झटका लग सकता है कि भारत में तिरंगा फहराने पर कोई कैसे गिरफ्तार हो सकता है? तो, यहां बताना जरूरी है कि गुंटूर (Guntur) के जिस टावर पर तिरंगा फहराने की कोशिश की गई थी, उसका नाम है जिन्ना टावर (Jinnah Tower). ये वही मोहम्मद अली जिन्ना हैं, जो भारतीय इतिहास में देश विभाजन की त्रासदी के सबसे बड़े खलनायक के तौर पर जाने जाते हैं. खैर, जिन्ना टावर पर तिरंगा फहराने के मामले पर विवाद बढ़ने के बाद गुंटूर ईस्ट के विधायक मोहम्मद मुस्तफा ने इसे तिरंगे से रंगने का ऐलान किया था. और, जिन्ना टावर अब तिरंगे में रंगा हुआ नजर आ रहा है. लेकिन, यहां सबसे अहम सवाल यही है कि भारत में किसी जिन्ना टावर को तिरंगे से रंगने में 75 साल क्यों लगते हैं?
After huge protests in Andhra Pradesh,Jinnah Tower in Guntur is now being painted with tricolour and a pole to be constructed near the tower to hoist the National Flag ??. pic.twitter.com/RJ5Vpo4N8H
— Anshul Saxena (@AskAnshul) February 1, 2022
पाकिस्तान के जिस कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर देश विभाजन और 'डायरेक्ट एक्शन डे' पर हजारों-लाखों लोगों के नरसंहार का कलंक दर्ज हो. उससे शायद ही भारत का कोई मुसलमान किसी भी तरह का जुड़ाव महसूस करता होगा. देश के विभाजन के समय बड़ी संख्या में मुसलमानों ने इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान को ठोकर मारकर भारत में रहने का फैसला यूं ही नही लिया था. तो, मोहम्मद अली जिन्ना के नाम को भारत में अभी तक क्यों ढोया जा रहा है? वैसे, भले ही विधायक मोहम्मद मुस्तफा ने जिन्ना टावर को तिरंगे से रंगवा दिया हो. लेकिन, वह ये जरूर कहते हैं कि 'कई मुस्लिमों ने देश की आजादी में बड़ा योगदान दिया था. और, उन्होंने पाकिस्तान न जाकर हिंदुस्तान में रहने का फैसला किया था.' विधायक मुस्तफा की बात से हिंदुस्तान का हर शख्स इत्तेफाक रखता है. निश्चित तौर पर कई मुसलमान नेताओं ने भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाई थी. और, देश के विभाजन के समय उन तमाम नेताओं ने भारत में ही रुकने का फैसला लिया था. लेकिन, इन नेताओं में मोहम्मद अली जिन्ना का नाम तो शामिल नही है.
वहीं, भाजपा लंबे समय से जिन्ना टावर का नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखने की वकालत कर रही है. इसके बावजूद जिन्ना टावर का नाम बदलने की सुध कोई नही ले रहा है. अब इस बात से शायद ही कोई इनकार करेगा कि भारत में एपीजे अब्दुल कलाम का दर्जा पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना से कई लाख गुना ज्यादा है. तो, गुंटूर ईस्ट के विधायक मोहम्मद मुस्तफा इसे भाजपा की ओर से सांप्रदायिक दंगा भड़काने की कोशिश कैसे बता सकते हैं? क्योंकि, भारत में अब्दुल कलाम आजाद की ही बात की जाएगी. मोहम्मद अली जिन्ना को यहां कौन पूछता है? हां, ये जरूर कहा जा सकता है कि मोहम्मद अली जिन्ना की याद भारत में मुस्लिमों की राजनीति करने वाले लोगों को सिर्फ चुनावों में ही आती है. और, यूपी चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के जिन्ना को लेकर दिए गए बयान पर नजर डालेंगे, तो यह बात हकीकत भी नजर आती है.
मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर देश विभाजन और 'डायरेक्ट एक्शन डे' पर हजारों-लाखों लोगों के नरसंहार का कलंक दर्ज है.
दरअसल, भारत में मोहम्मद अली जिन्ना को जबरदस्ती भारतीय मुसलमानों के सिर पर लादने की कोशिश आजादी के बाद से ही की जा रही है. कांग्रेस ने कहने को तो 'टू नेशन थ्योरी' को लेकर मोहम्मद अली जिन्ना का विरोध किया. लेकिन, भारत में रहने वाले मुसलमानों को कभी वोट बैंक से ऊपर समझा ही नहीं. तुष्टिकरण के सिद्धांत पर चलते हुए राजनीतिक दलों ने मुस्लिमों के एक वर्ग को कट्टरपंथ की ओर ढकेल दिया. कांग्रेस ने वीर सावरकर का विरोध करने के लिए उनके अंग्रेजों से माफी मांगने को भरपूर प्रचारित किया है. लेकिन, भारत में खलनायक कहे जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर उसका मुंह सिल जाता है. बताया जाता है कि गुंटूर का ये जिन्ना टावर आजादी से पहले का बना हुआ है. तो, इस मामले पर सबसे पहला सवाल कांग्रेस से ही होगा कि आखिर इतने सालों तक ये राजनीतिक दल जिन्ना की विरासत को सहेज कर क्यों रखे रहा? कांग्रेस ने किसी क्रांतिकारी के नाम पर इस टावर का नामकरण क्यों नहीं किया?
वैसे, वहां के स्थानीय विधायक और वाईएसआरसीपी के नेता मोहम्मद मुस्तफा भी कांग्रेस की तरह ही दोहरी राजनीति करने पर बढ़ते हुए नजर आते हैं. भाजपा ने स्थानीय प्रशासन को जिन्ना टावर का नाम बदलने के लिए ज्ञापन सौंपा हुआ है. तो, राज्य की सरकार को खुद ही आगे आकर इसका नाम बदलकर देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर करने का श्रेय लेना चाहिए. लेकिन, ऐसा होने की संभावना बहुत ही कम नजर आती है. क्योंकि, शायद ही कोई राजनीतिक दल चंद मुठ्ठी भर कट्टरपंथियों का गुस्सा झेलने के लिए तैयार होगा. वैसे भी भारत में आज भी वोट बैंक की पॉलिटिक्स को अन्य तमाम चीजों से कहीं ज्यादा तवज्जो दी जाती है. वैसे, भाजपा अपनी मांग पर अड़ी हुई है, तो देखना दिलचस्प होगा कि जिन्ना टावर का नाम बदला जाता है या वोट बैंक पॉलिटिक्स जीतती है.
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