भारत में इच्छामृत्यु की इजाजत देना क्यों सही नहीं है?
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह देश में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की इजाजत देने वाला कानून बनाने की दिशा में काम कर रही है, लेकिन सवाल तो ये है कि क्या भारत में इच्छामृत्यु की इजाजत दिया जाना सही है?
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सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर कानून बनाने की दिशा में काम रही है. सरकार के इस बयान से एक बार फिर से देश में इच्छामृत्यु पर दशकों से जारी बहस तेज हो सकती है. सवाल ये कि क्या भारत में इच्छामृत्यु की इजाजत दिया जाना सही कदम है? क्या इसका दुरुपयोग नहीं होगा और सबसे बड़ा सवाल कि अगर आप किसी को जिंदगी दे नहीं सकते तो महज इसलिए कि वह व्यक्ति किसी बीमारी की वजह से ठीक नहीं हो सकता, उसकी जान लेने का अधिकार आपको कैसे मिल सकता है?
क्या है सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्युः
इच्छामृत्यु का मतलब किसी गंभीर और लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को दर्द से मुक्ति दिलाने के लिए डॉक्टर की सहायता से उसके जीवन का अंत करना है. इच्छामृत्यु को मुख्यतः दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है. पहली सक्रिय इच्छामृत्यु (ऐक्टिव यूथेनेजिया) और दूसरी निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथेनेजिया). अब पहले इन दोनों में अंतर समझ लीजिए. सक्रिय इच्छामृत्यु में लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के जीवन का अंत डॉक्टर की सहायता से उसे जहर का इंजेक्शन देने जैसा कदम उठाकर किया जा सकता है. सक्रिय इच्छामृत्यु को भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देशों में अपराध माना जाता है. हालांकि नीदरलैंड्स और फ्रांस सहित कुछ देशों में कानून की अनुमति से सक्रिय इच्छामृ्त्यु दिए जाने का प्रावधान है.
निष्क्रिय इच्छामृत्यु में लाइलाज बीमारी से पीड़ित ऐसे व्यक्ति जोकि लंबे समय से कोमा में हो, के रिश्तेदारों की सहमति से डॉक्टरों द्वारा जीवन रक्षक उपकरणों के बंद होने से उसके जीवन का अंत किया जाता है. 7 मार्च 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दे दी थी. यह फैसला 42 वर्ष तक कोमा में रहने वाली मुंबई की नर्स अरुणा शॉनबाग को इच्छामृत्यु दिए जाने को लेकर दायर याचिका के बाद दिया गया था. हालांकि कोर्ट ने अरुणा को इच्छामृत्यु दिए जाने की याचिक तो खारिज कर दी थी लेकिन निष्क्रिय इच्छामृत्यु की मंजूदी दे दी थी. लेकिन 2014 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने 2011 में इच्छामृत्यु के मामले में दिए गए फैसले को 'असंगत' करार देते हुए इसे पांच जजों की संवैधानिक पीठ को सौंप दिया था. तब से यह मामला संवैधानिक पीठ के पास लंबित है. लेकिन सरकार इस मामले में कोई फैसला कोर्ट द्वारा गठित संवैधानिक पीठ के विचार सामने आने के बाद ही कर सकती है.
सक्रिय हो या निष्क्रिय, इच्छामृत्यु हत्या करना ही है!
भारत में भले ही निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दिए जाने की बात चल रही हो लेकिन इसके खिलाफ तर्क देने वालों की कमी नहीं है और उनके तर्क में दम भी नजर आता है. भले ही इच्छामृत्यु को लाइलाज बीमारियों से पीड़ित और लंबे समय से दर्द सहते आ रहे लोगों के लिए जरूरी बताया जा रहा हो. लेकिन वास्तव में ये किसी को मारने या उसकी हत्या करने जैसा ही कदम है. आइए इसे कुछ उदाहरणों से समझते हैं. भले ही पहली नजर में सक्रिय इच्छामृत्यु बेहद ही क्रूर और निष्क्रिय इच्छामृत्यु कम पीड़ादायक लगे लेकिन गंभीरता से देखने पर आपको निष्क्रिय इच्छामृत्यु भी कम असंवेदनशील नहीं नजर आएगी.
इन दोनों में सबसे बड़ा फर्क यह है कि सक्रिय इच्छामृत्यु के ज्यादातर मामलों में इसे मरीज की इच्छा से ही किया जाता है. यानी इसमें लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति खुद ही दर्द से मुक्ति के लिए मौत का रास्ता चुनता है, जबकि निष्क्रिय इच्छामृत्यु के मामले में कोमा में रहने वाले या अपनी मर्जी व्यक्त करने में असमर्थ व्यक्ति को उसके रिश्तेदारों और डॉक्टरों की मर्जी से मौत के रास्ते पर ले जाया जाता है. साथ ही सक्रिय इच्छामृत्यु में जहर का इंजेक्शन देने जैसे उपाय अपनाने से तुरंत ही व्यक्ति की मौत हो जाती है जबकि निष्क्रिय इच्छामृत्यु के मामले में व्यक्ति के जीवन रक्षा उपकरणों को हटाकर उसे धीरे-धीरे मौत के मुंह में ढकेला जाता है. यानी सक्रिय हो या निष्क्रिय, इच्छामृत्यु किसी को मारना ही है.
क्यों सही नहीं है देश में इच्छामृत्यु की इजाजत देना?
सक्रिय और निष्क्रिय दोनों ही तरीकों में इच्छामृत्यु के दुरुपयोग का खतरा बना रहता है. इसे इस उदाहरण से समझिए. मान लीजिए एक व्यक्ति के 6 साल के भतीजे के नाम पूरी प्रॉपर्टी है और शर्त ये है कि अगर उसके भतीजे की 18 वर्ष से पहले किसी कारण से मौत हो जाती है तो सारी प्रॉपर्टी उसकी हो जाएगी. एक दिन जब उसका भतीजा बाथरूम में नहा रहा होता है तो प्रॉपर्टी की लालच में वह व्यक्ति अपने भतीजे को बाथटब में डुबोकर मार देता है. अब यह व्यक्ति हत्या का दोषी है.
अब इसे दूसरे संदर्भ देखिए. यही व्यक्ति जब बाथरूम में जाता है तो देखता है कि उसका भतीजा फिसलकर गिर पड़ा है और उसके सिर से खून बह रहा है लेकिन वह कुछ नहीं करता और अपने भतीजे को मर जाने देता है. भले ही इस व्यक्ति ने अपने भतीजे को मर जाने दिया लेकिन अब इस व्यक्ति पर हत्या का कोई दोष नहीं लगेगा. पहले केस में व्यक्ति ने भतीजे की हत्या की लेकिन दूसरे केस में जानबूझकर उसे मर जाने दिया. अगर पहला केस आप सक्रिय और दूसरा निष्क्रिय इच्छामृत्यु से जोड़कर देखें तो आपको समझ में आ जाएगा कि कैसे दोनों ही तरह की इच्छामृत्यु हत्या जैसी ही है.
इसलिए भारत में किसी भी तरह की इच्छामृत्यु की अनुमति देना किसी को मारने की इजाजत देने जैसा ही होगा!
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