मौलाना आजाद के पौत्र का अपमान क्यों ?
फिरोज बख्त अहमद ने बताया कि उनका मिशन और विजन अपने विश्व विद्यालय को उस शिखर तक ले जाना है कि जहां आजतक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जैसे विश्वविद्यालय हैं. अब वे उपकुलपति की राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री से शिकायत करने जा रहे हैं.
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ये स्वतंत्र भारत के इतिहास में संभवत: पहली बार हो रहा है कि किसी केन्द्रीय विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने अपने ही कुलपति के विश्वविद्यालय में प्रवेश पर रोक लगा दी है. दरअसल हैदराबाद के प्रतिष्ठित मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय (MANUU) के कुलपति फिरोज बख्त अहमद के विश्वविद्यालय में घुसने पर उपकुलपति असलम परवेज ने रोक लगा दी है. बख्त देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद के पौत्र हैं.
कुलपति फिरोज बख्त अहमद पर उपकुलपति असलम परवेज ने विश्वविद्यालय में घुसने पर रोक लगाई
कुलपति ने बख्त को साफ कह दिया है कि वो सिर्फ विवि के दीक्षांत समारोह में या किसी कानूनी मामलों संबंधी बैठक में ही आ सकते हैं. कुलपति बनने से पहले राजधानी के नामचीन मॉडर्न स्कूल में अंग्रेजी के शिक्षक रहे फिरोज बख्त अहमद कहते हैं कि चूंकि वे विश्वविद्यालय में कुछ सुधार लाना चाहते हैं, इसलिए कुलपति उनसे नाराज हैं. वे चाहते हैं कि एमएएनयूयू में उन छात्रों को भी दाखिला मिले जो उर्दू नहीं जानते पर वे उर्दू सीखने के लिए एक टेस्ट देने के लिए तैयार हैं.
फिरोज अहमद बख्त ने बताया कि उनकी इन सलाहों को कुलपति सुनने के लिए भी तैयार नहीं हैं कि यहां बाल साहित्य पर कार्यक्रम हों, लड़कियों के छात्रावास को पहले से बढ़िया बनाया जाए, 4000 छात्रों के लिए मात्र इकलौते कैंटीन की हालत को सुधारा जाए या इधर खेलों की सुविधाएं बढ़ाई जाएं.
उपकुलपति असलम परवेज लंबे समय तक दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाते रहे हैं
देश के तमाम प्रमुख अंग्रेजी-हिन्दी के अखबारों में लिखने वाले फिरोज अहमद बख्त का कहना है कि उन्हें संघी कहा जा रहा है. असलम परवेज के चमचे उन्हें सोशल मीडिया पर जलील कर रहे हैं. हालांकि वे दिल्ली में मुसलमानों में शिक्षा की अलख जगाने के लिए बीते चालीस वर्षों से काम कर रहे हैं. बख्त साहब ये भी कहते हैं कि उन्हें अपने ही विश्वविद्यालय में क्लास लेने तक की छूट नहीं है. कुलपति महोदय कह रहे हैं कि उन्हें पढ़ाना नहीं आता.
फिरोज बख्त अहमद ने बताया कि उनका मिशन और विजन अपने विश्व विद्यालय को उस शिखर तक ले जाना है कि जहां आजतक दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जैसे विश्वविद्यालय हैं. अब वे उपकुलपति की राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री से शिकायत करने जा रहे हैं.
महत्वपूर्ण है कि कुछ समय पहले फिरोज बख्त अहमद के प्रयासों से ही केन्द्र सरकार दिल्ली के एक मुसलमानों के उस स्कूल की मरम्मत करवाने के लिए तैयार हो गई जिसे करीब साल पहले इमरजेंसी के दौर में तोड़ा गया था.
राजधानी के कसाबपुरा के कौमी सीनियर सेंकडरी स्कूल को तोड़ा गया था ताकि वहां पर जनता क्वार्टर बनाए जाएं. तब सरकार ने वादा किया था कि स्कूल को नए सिरे बनाया जाएगा. पर सरकार के वादे कभी पूरे नहीं हुए. कौमी सीनियर सेंकेडरी स्कूल की इमारत को 30 जून, 1976 को तोड़ा गया था. उसके बाद से ये बदनसीब स्कूल अस्थायी रूप से ईदगाह मैदान में शिफ्ट किया गया.
अब फिरोज बख्त अहमद के नेतृत्व राजधानी के प्रमुख मुसलमानों ने केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी से मिलकर उपर्युक्त स्कूल के निर्माण का वादा लिया. बख्त साहब दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया से भी मिले थे. पर उन्होंने इस स्कूल की इमारत की मरम्मत कराने का कोई वादा नहीं किया. कौमी सीनियर सेंकेटरी स्कूल में करीब 90 फीसद बच्चे यहां के आसपास की मुस्लिम बस्तियों से होते हैं. ये बेहद गरीब परिवारों से संबंध रखते हैं. इस स्कूल की स्थापना 1948 में हुई थी.
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