तो क्या जवान सिर्फ शहीद होने के लिये बने हैं?
हर सरकार एक दूसरे पर आरोप लगाती है कि तुम्हारे राज में इतने जवान शहीद हुए, हमारी सरकार में सिर्फ इतने. जबकि सच यही है कि सरकारें बदलती रही हैं, मगर हमारे जवान हमेशा से ही शहीद होते रहे हैं.
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देश में लगभग हर 15 दिन में एक ऐसी ख़बर आती है जिससे सारा देश गम के सागर में डुब जाता है. दो दिन पहले ही कश्मीर के मच्छल सेक्टर में मुठभेड़ में एक जवान शहीद हो गया. लगभग 10 दिन पहले दक्षिण कश्मीर के बिजबेहरा में आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन द्वारा सीमा सुरक्षाबल (बीएसएफ) के काफिले पर किए गए हमले में तीन जवान शहीद हो गए. 10 अन्य लोग घायल हुए हैं, जिनमें आम लोग भी शामिल हैं.
क्या हमारे जवान ऐसे ही शहीद होते रहेंगे? क्या आप जानते हैं 1988 से फरवरी 2016 तक कश्मीर में कितने जवान शहीद हुए, वो भी आये दिन होने वाली मुठभेड़ो में? कितने लोगों ने अपनी जान गंवा दी कश्मीर के इन आतंकी हमलों में? कितने आतंकवादियों को मार गिराया है हमारी सेना ने?
आज जिस तरह से कश्मीर में आये दिन घुसपैठ की कोशिश हो रही है या फिर जिस तरह से ऐसा कहा जाता है कि मोदी सरकार के आने के बाद घुसपैठ कि वारदातें बढ़ गयी हैं! मैं इस बहस में पड़ना ही नहीं चाहता कि कौन सी सरकार में कितने जवान शहीद हो गये. क्योंकि सच तो यही है कि सरकारे बदलती रही हैंं मगर हमारे जवान हमेशा से ही शहीद होते रहे हैं. हां, आंकड़ा ज़रुर प्रति वर्ष बदलता रहता है.
1988 से फरवरी 2016 तक
इन 28 वर्षों में आतंकी मुठभेड़ो में 6188 जवान शहीद हुए. 14,724 लोग मरे हैं और सेना ने 22,984 आतंकियों को मार गिराया है. हां! ये बात आपको थोड़ी राहत ज़रुर दे सकती है की 4 गुना ज्य़ादा आतंकवादियों की मौत हुई है. बहरहाल, सवाल है कि क्या जवान शहीद ही होते रहेंगे? क्या कोई सरकार इस चीज़ का मुंह तोड़ जवाब देगी?
कुछ लोग कहते हैं कि मोदी सरकार ने सेना को खुली छुट दे रखी है. तो क्या पहले की सरकारों ने सेना के हाथ बांध दिये थे? ये सब फिज़ुल की बातें हैं. इन सब बातों पर ध्यान न ही दिया जाये तो बेहतर होगा. हमारे जवान सिर्फ सांत्वना देने के लिये ही नहीं शहीद हो रहे हैं. आखिर कश्मीर समस्या का कुछ तो समाधान निकाला जाए. देश अब ऐसी ओछी राजनीति से थक गया है.
जवानों की शहादत पर राजनीति क्यों (फाइल फोटो) |
हर सरकार एक दूसरे पर आरोप लगाती है कि तुम्हारे राज में इतने जवान शहीद हुए, हमारी सरकार में सिर्फ इतने. कम से कम ऐसी राजनीति से तो ऊपर आईए. देश में वैसे ही कई मुद्दे हैं जिन पर राजनीति अच्छे से की जा रही है. कोई हिंदू की राजनीति कर रहा है तो कोई मुसलमान की, तो कोई दलितों की. मगर इन सब चीज़ों से बहुत ज्यादा ऊपर हैं हमारे जवान. जब कश्मीर में 23 साल के जवान पवन कुमार शहीद हुए, उनके फेसबुक का आखिरी पोस्ट पढ़िए. कहते हैं न हमें आरक्षण चाहिए और न ही आज़ादी हमें तो सिर्फ रज़ाई चाहिए. आप सोचिये, जब जवान सरहद पर ऐसे चीज़ों को पढ़ता होगा तो क्या गुज़रती होगी उसके दिल पर.
कुछ नेताओं का तो ये भी बयान आया है कि जवान को तो मरना ही है. ऐसे नेताओं को देश आज भी कैसे झेल रहा है मुझे नही पता. हां, उस जवान को पता है कि उसकी मौत कभी भी हो सकती है. मगर किसके लिये, सिर्फ आपके लिये. ताकि आप महफूज़ रह सकें. सियाचिन की बर्फीली पहाड़ियों में हमारे जवान कैसे रहते है इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते आप. मैं फेसबुक पर पोस्ट लिखता रहता हूं. मगर जब भी आये दिन ये ख़बरें आती है कि हमारे 2 जवान शहीद या फिर 4 जवान शहीद, सच मानिये रोंगटे खड़े हो जाते हैं. ऐसा लगता है कि आखिर कब तक.
किसी ने मुझसे पूछा कि क्या कोई समाधान नहीं है कश्मीर समस्या का? मैं खुद भी आज तक यही सोचता हूं कि क्या कोई समाधान नहीं है इस समस्या का. हम नहीं चाहते की हमारे जवान ऐसे ही शहीद होते रहें. क्या कश्मीर घाटी में चल रहे आंतकी शिविरों को भारत खत्म नहीं कर सकता? हम पाकीस्तान से लड़ने की बात नहीं कर रहे हैं मगर उन आतंकियों का क्या जो हिंदुस्तान को बर्बाद करने में लगे हुए हैं. सरकार को कम से कम अब तो इंतजार नही करना चाहिए कि देश में एक बार फिर कोई बड़ा आतंकी हमला हो.
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