काजी के फतवों से डर नहीं, मैं गर्व से और पूरे सम्मान के साथ गाऊंगा राष्ट्रगान
राष्ट्रगान के संबंध में बरेली के काजी का दिया गया बयान ये बताने के लिए काफी है कि अब धर्म के नाम पर मुसलमानों को बरगलाना कोई नई बात नहीं है. ऐसा करके ही धर्म का चोला ओढ़ के लोग अपनी रोटी सेंक रहे हैं
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मैं एक मुसलमान हूँ. मगर उससे पहले मैं भारतीय हूँ. व्यक्तिगत रूप से मुझे धर्म की अपेक्षा अपनी नागरिकता बताने में सदैव गर्व की अनुभूति हुई है. मेरे लिए राष्ट्रवाद एक बेहद व्यक्तिगत विषय है और मैं ये बिल्कुल भी नहीं चाहता कि, कोई अपने राष्ट्रवाद को भारी दिखाते हुए और मेरे राष्ट्रवाद को हल्का साबित करते हुए, उसे मुझ पर थोपे. चाहे मौलाना का फरमान हो या मौलवी का फतवा. अपने राष्ट्रवाद के सन्दर्भ में, मुझे किसी भी चीज का कोई फर्क नहीं पड़ता. यदि मैं राष्ट्रवादी हूं तो इसे खुल के और डंके की चोट पर स्वीकार करता हूं.
राष्ट्र के खिलाफ या राष्ट्रवाद के विरुद्ध जब कोई बयान आता है तो मेरे तन बदन में आग लग जाती है. सच कहूं तो ऐसे समय मुझे राष्ट्रद्रोहियों पर गुस्सा कम और तरस ज्यादा आता है. तरस और गुस्से दोनों की वजह ऐसे लोगों का संकुचित नजरिया और बेहद छोटी सोच है.
मैं एक भारतवासी और राष्ट्रवादी पहले हूं और मुस्लिम बाद में हूं
खैर, बात आज सुबह की है. अखबार पढ़ते हुए एक खबर से नजर दो चार हुई. खबर बरेली और स्वतंत्रता दिवस से जुड़ी थी. स्वतंत्रता दिवस मनाने और मदरसों में राष्ट्रगान गाने के सन्दर्भ में, बरेली के एक काजी का बयान आया है कि 'मदरसे स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाएं मगर 'राष्ट्रगान गाए बगैर.' काजी ने ये भी कहा है कि 'मदरसों में लोग राष्ट्रगान के बजाए इकबाल का तराना 'सारे जहां से अच्छा' गा सकते हैं. काजी ने 'जन-गण-मन' के अंत में आने वाले जय हो को इस्लाम के खिलाफ बताया है.
बरेली के इन काजी की बातों से मैं स्तब्ध हूं. इस विषय पर सोचते हुए महसूस हुआ कि ऐसी बातें इस देश के मुसलमान के हित में बिल्कुल भी नहीं हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि जब इस्लाम खुद इस बात को स्वीकार करता है कि 'वतन से मुहब्बत ईमान की निशानी है' तो फिर वतन से जुड़ी कोई भी चीज, कैसे ईमान और इस्लाम के खिलाफ हो सकती है.
राष्ट्रगान पर आया बरेली के काजी का बयान उनकी विकृत सोच दर्शा रहा है
राष्ट्रगान पर रंज-ओ-गम करने वाले. उसे 'दीन के अनुरूप' न कहने वाले, मुझे कृपया ये बताने का प्रयास करें कि जब खुद इस्लाम 'वतन के प्रति प्रेम को ईमान की निशानी' बता रहा है तो फिर 'जन गण मन' कहने में बुराई क्या है. ज्ञात हो कि जब हम वतन को अपनी मां मानते हैं तो फिर इन मौलवियों और काजियों द्वारा 'मां की वंदना' से हमें क्यों महरूम रखा जा रहा है. इस मुद्दे को भी अगर मैं इस्लाम की नजर से देखूं तो इस्लाम 'मां के पैरों के नीचे जन्नत है' की भावना को प्रोत्साहित करता है. एक नागरिक के तौर पर जब हमें यहीं जन्नत का सुख मिल रहा है. तो फिर क्यों हमें इन बेमतलब की बातों से बरगलाया जा रहा है.
बहरहाल मैं कई ऐसे काजियों और मौलवियों से मिल चुका हूं जो अपने इस देश की चीजों और बातों को भूल फिलिस्तीन इजराइल, गाजा, सीरिया का दम भरते हैं. इन काजियों और मौलवियों को याद रखना चाहिए कि ये सब दूर के मुद्दे हैं. पहले जो घर की बातें है उन पर इन्हें अपना मत स्पष्ट करना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि एक तरफ इन्हें अपनी भारतीयता पर गर्व है तो वहीं दूसरी तरफ ये उसे स्वीकारने में असहज महसूस करते हैं. इन काजियों और मौलवियों को ये याद रखना चाहिए कि किसी भी साधारण आदमी द्वारा ऐसी भावना को केवल देश के प्रति दोगले व्यवहार का परिचालक कहा जाएगा.
अंत में इतना ही कि यदि आपको मेरे राष्ट्रगान गाने में बुराई दिखे तो दिखती रहे. इसका मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता मैं गर्व से और पूरे सम्मान के साथ राष्ट्रगान गाऊंगा और इस देश और यहां की मिटटी की वंदना करता रहूंगा. आपको आपका मॉडिफाइड राष्ट्रवाद मुबारक.
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