लॉकडाउन बेहद जरूरी है, क्योंकि...
ऐसे लोग जो एसिम्टोमैटिक (बिना लक्षण वाले) या हल्के लक्षणों वाले हैं और बीमारी फैलाने की क्षमता रखते हैं, दर्शाते हैं कि सामाजिक दूरी, दूसरों के साथ सीमित संपर्क, अन्य कार्यों के अलावा जैसे अपने हाथ धोना और अपना चेहरा नहीं छूना इतना महत्वपूर्ण क्यों है.
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मई का महीना पूरे भारत में लॉकडाउन के महीने के रूप में गुजर रहा है. पिछले साल 22 मार्च, 2020 को थाली और ताली बजाने के साथ जनता कर्फ्यू शुरू हुआ था. उसके बाद कई हफ्तों तक देशव्यापी लॉकडाउन हुआ था, जो अब इस वर्ष 2021 की गर्मियों में भी लागू हो चुका है. हालांकि, इस साल लॉकडाउन को लागू करने का अधिकार राज्यों पर छोड़ दिया गया है. राज्यों को ही लॉकडाउन के समय के साथ-साथ इसमें लगाए जाने वाले प्रतिबंधों का भी अधिकार दे दिया गया है.
कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना वायरस का प्रसार और साथ ही साथ टीकाकरण सहित कोविड-19 महामारी को काबू में करने के उपाय सभी राज्यों में एक समान नहीं हैं. इस स्थिति में लॉकडाउन को राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ने की रणनीति में बदलाव अस्पतालों में संघर्ष और भीड़ को कम करने के लिए जरूरी हो गया. मार्च-अप्रैल के महीने में कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र ने अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ने की आलोचना के बावजूद सबसे पहले लॉकडाउन लगाने का निर्णय लिया. महाराष्ट्र के इस फैसले के बाद देश में लॉकडाउन लगाने की चेन शुरू हो गई. महाराष्ट्र के बाद दिल्ली और तमिलनाडु सहित कई राज्यों ने लॉकडाउन की घोषणा कर दी.
कई जगहों पर लोगों को किराने का सामान और अन्य जरूरी चीजें खरीदने के लिए कड़े प्रतिबंधों में थोड़ी देर के लिए ढील दी जा रही है.
इसी का नतीजा है कि आज भारत के अधिकांश हिस्से कई तरह के शटडाउन से घिरे हुए हैं. आंध्र प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने इसे कर्फ्यू का नाम दिया है, जबकि कई अन्य राज्यों ने पांच या अधिक व्यक्तियों के इकट्ठा होने पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. कई जगहों पर लोगों को किराने का सामान और अन्य जरूरी चीजें खरीदने के लिए कड़े प्रतिबंधों में थोड़ी देर के लिए ढील दी जा रही है. कड़े प्रतिबंधों में यह नरमी केवल दो से छह घंटों के लिए होती है. टीकाकरण केंद्र, बैंक और अन्य जरूरी सेवाएं चालू हैं. हालांकि, संक्रमण में बढ़ोत्तरी और कोरोना वायरस के बढ़ते भौगोलिक प्रसार को देखते हुए प्रतिबंध जरूरी लग रहे हैं. वैक्सीन की कमी के कारण सुस्त पड़े टीकाकरण अभियान की वजह से कई चुनौतियां पैदा हुई हैं.
महामारी विज्ञान के राष्ट्रीय संस्थान की वैज्ञानिक सलाहकार समिति के अध्यक्ष डॉ. जयप्रकाश मुलियाल याद करते हुए बताते हैं कि ''पिछले साल कोरोना की पहली लहर के दौरान लॉकडाउन का सिद्धांत बहुत कठिन था. उस दौरान रेल व अन्य परिवहन साधनों को भी पूरी तरह से रोक दिया गया था और लोगों को घर के अंदर रहने के लिए कहा गया था. एक मनगढ़ंत दृष्टिकोण, जिसने शुरूआत में ही आधार बना लिया, ने वायरस को लेकर भ्रम पैदा कर दिया कि यह किसी भी एडॉप्टिव इम्यूनिटी को प्रेरित नहीं करेगा और यह बहुत ही खतरनाक है''. महामारी विशेषज्ञ ने कहा कि ''इससे एक बुरी स्थिति पैदा हुई और उस समय लॉकडाउन के रूप में जो लागू हुआ, उसकी आलोचना हुई''.
लॉकडाउन के तहत जीवन में कई चुनौतियां आती हैं.
वायरस के प्रसार की जांच के लिए लोगों की आवाजाही और इकट्ठा होने पर उचित प्रतिबंध लगाना महत्वपूर्ण है, इस उम्मीद में कि संक्रमण पर काबू पा लिया जाएगा. डॉ. मुलियाल बताते हैं कि ''अलग-अलग प्रतिबंधों के साथ लॉकडाउन का जो भी रूप है, प्रशासन के लिए सुविधाजनक है. लेकिन, इससे वायरस को खत्म करना संभव नहीं है. इसके अलावा हमने सामुदायिक संक्रमण को स्वीकार नहीं किया और यह भी कि अधिकांश लोग संक्रमित हैं''. डॉ. मुलियाल बताते हैं कि ''एक महत्वपूर्ण नियम यह है कि एक बार संक्रमित होने पर बहुत प्रतिरक्षा होती है और हमारी बड़ी आबादी को देखते हुए पुन: संक्रमण दुर्लभ है''.
ऐसे लोग जो एसिम्टोमैटिक (बिना लक्षण वाले) या हल्के लक्षणों वाले हैं और बीमारी फैलाने की क्षमता रखते हैं, दर्शाते हैं कि सामाजिक दूरी, दूसरों के साथ सीमित संपर्क, अन्य कार्यों के अलावा जैसे अपने हाथ धोना और अपना चेहरा नहीं छूना इतना महत्वपूर्ण क्यों है. विश्व स्वास्थ्य संगठन भी वायरस को ले जाने वाली संक्रमित बूंदों (छींकने, सांस लेने या बोलने के समय निकलने वाली) से बचने के लिए पर्याप्त दूरी को अहमियत देने के बजाय इसे शारीरिक दूरी के रूप में संदर्भित करना शुरू कर रहा है. यह महत्वपूर्ण है कि हर एक व्यक्ति इसका पालन करे, चाहे वह खुद को बीमार समझें या नहीं. लॉकडाउन के तहत जीवन में कई चुनौतियां आती हैं और ऐसे कई उदाहरण हैं, जब लोग सामाजिक दूरी या आइसोलेशन की सलाह का उल्लंघन कर रहे हैं. लेकिन, जितने ज्यादा लोग इसका पालन करेंगे, यह उतना ही ज्यादा प्रभावी होगा.
ऑफिस, घरों और सार्वजनिक स्थानों में बाहरी हवा को वेंटिलेशन के जरिये जोड़ा जाए.
भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार द्वारा 20 मई को जारी एक एडवाइजरी में वायरस के संक्रमण को कम करने वाले आसान उपायों को याद रखने की जरूरत के बारे में चेतावनी दी गई है. यह दर्शाता है कि वेंटिलेशन एक सामुदायिक रक्षा है, जो सभी की सुरक्षा करता है. एयरोसोल को हवा 10 मीटर तक ले जा सकती है और इनडोर जगहों के वेंटिलेशन को बढ़ाने से संक्रमण कम हो जाएगा. इसमें सिफारिश की गई है कि ऑफिस, घरों और सार्वजनिक स्थानों में बाहरी हवा को वेंटिलेशन के जरिये जोड़ा जाए. संक्रमित बूंदे और एयरोसोल वायरस के प्रसार के मुख्य तरीके थे. जबकि एक संक्रमित व्यक्ति से बूंदें दो मीटर तक गिरती हैं, एयरोसोल दस मीटर तक की दूरी तय कर सकते हैं.
इन सबके बीच लॉकडाउन के दौरान कोविड-19 मामलों में बढ़ोत्तरी का विश्लेषण करने वाले बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के शिक्षाविदों का कहना है कि कर्नाटक में लॉकडाउन 80 प्रतिशत प्रभावी था. ये शिक्षाविद संक्रमण के मामलों में जारी फैलाव को देखते हुए लॉकडाउन को बढ़ाने की सिफारिश करते हैं और टुकड़ों में अनलॉकिंग रणनीति अपनाने की बात कहते हैं.
हालांकि, डॉ. मुलियाल कहते हैं कि इन प्रतिबंधों से सबसे जरूरी फायदा अस्पतालों में भीड़ को नियंत्रित करने में है. अस्पताल में बेड और ऑक्सीजन सुविधाओं के लिए संघर्ष बेकाबू भीड़ का लक्षण है. किसी और चीज से ज्यादा इसे रोकने के लिए लॉकडाउन जरूरी है. इस पर भरोसेमंद स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने और जीवन बचाने की उम्मीद टिकी हुई है.
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