गोमांस पर बैन अगर हत्यारा बनाता है, तो इसे हटाया जाए
गोमांस पर बैन लगाने का कारण क्या है? हम कौन लोग हैं जो इस बात का फैसला करेंगे कि कोई दूसरा धर्म वाला क्या खाएगा. आपका धर्म अगर इसकी मनाही करता है, तो बेशक मत खाइए. लेकिन इस मसले पर बवाल करने वाले आप कौन होते हैं.
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इस देश के अलग-अलग राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, शहरों में किन-किन चीजों पर बैन है- पॉलिथीन के इस्तेमाल पर, पान-गुटखे पर, गंगा-यमुना सहित दूसरी नदियों में पूजा सामग्रियों और मूर्तियों के विसर्जन से लेकर वेश्यावृत्ति पर, 10 साल से पुरानी गाड़ियों के इस्तेमाल पर.
एक लंबी सूची है. लिस्ट देखेंगे तो माथा झन्ना जाएगा. लेकिन आपने कब देखा, कि कोई पॉलिथीन में सब्जी खरीद कर ले जा रहा हो...एक उन्मादी भीड़ आई और उसे सबक सीखा कर चली गई. क्या आपने कभी सुना कि गणेश पूजा के बाद लोग विसर्जन के लिए नदियों के किनारे पहुंचे और हजारों लोग हमारी-आपकी तरह वहां उनका विरोध कर रहे हों? लेकिन किसी ने यह अफवाह क्या उड़ा दी कि फलां घर में गोमांस खाया जा रहा है, हमारा खून उबाल मारने लगता है.
कथित रूप से आधी रात को मंदिर के लाउडस्पीकर से कोई इसकी घोषणा करता है. भीड़ इकट्ठा होती है और धर्म के वे 'ठेकेदार' अखलाक के घर पर धावा बोल देते हैं. और अखलाक जिनके बड़े बेटे भारतीय वायु सेना में हैं, उनकी हत्या कर दी जाती है. जरूर, कुछ लोगों को संतुष्टि हुई होगी कि उन्होंने धर्म की रक्षा कर ली. इन उत्साही लोगों पर कभी सफाई अभियान के नाम पर आधी रात को घर से बाहर बुलाने का टेस्ट भी आजमाया जाना चाहिए.
गोमांस पर बैन हटाया जाए
माना, इस देश के कई राज्यों में गोहत्या पर बैन है. उत्तर प्रदेश, जहां यह घटना हुई, वहां भी गोवध कानूनन जूर्म है. लेकिन लोगों को इतनी हिम्मत कहां से मिल जाती है वे किसी के गोमांस खाने की अफवाह भर सुनकर उग्र हो जाते हैं. वे इसकी सूचना पुलिस को देने की जहमत नहीं उठाते. इस बात की भी तस्दीक करना जरूरी नहीं समझते कि जो उन्होंने सुना है वह सच भी है या नहीं. हत्या करने से नहीं चूकते! क्या हम कानून का इतना ख्याल करने लगे हैं! अगर किसी कानून के कारण हम हत्यारे बनते जा रहे हैं, तो बेहतर है कि गोमांस पर बैन हटाया जाए. कम से कम हत्या करने वाले संविधान के नाम पर तो इसे सही ठहराने की कोशिश नहीं करेंगे.
वैसे भी, गोमांस पर बैन लगाने का कारण क्या है? हम कौन लोग हैं जो इस बात का फैसला करेंगे कि कोई दूसरा धर्म वाला क्या खाएगा. आपका धर्म अगर इसकी मनाही करता है, तो बेशक मत खाइए. लेकिन इस मसले पर बवाल करने वाले आप कौन होते हैं. हाल में जब महाराष्ट्र में मांसाहार पर बैन खबरों में था तो कितना विवाद मचा. विवाद इसलिए कि कोई आपकी खाने-पीने की आदतों पर रोक-टोक की कोशिश कर रहा था. चित भी मेरी पट भी मेरी कि तर्ज पर अब हर चीज आपकी मर्जी से नहीं तो चलेगी नहीं. इस देश में केवल हिंदू नहीं रहते. मुस्लिम, जैन, सिख, बौद्ध धर्म सहित कई दूसरी मान्यताओं वाले लोग भी इस जमीन पर हैं. उनकी मान्यताओं को जगह देनी होगी.
वैसे, हम सभी अच्छी तरह जानते हैं कि बात दरअसल यहां कानून की भी नहीं है. यह एक खेल है. कुछ लोग इस पैटर्न पर खूब खेल खेलते रहे हैं. इसलिए रांची में मंदिरों के आगे मांस के टुकड़े फेंक कर बवाल मचाया जाता है और फिर किसी के गोमांस खाने की अफवाह भी उड़ाई जाती है. जो हत्या हुई यह उसी खेल की एक कड़ी थी. फ्रिज में जो मांस रखा हुआ था वह गाय का था या बकरे का यह जांच के बाद तय होगा लेकिन भीड़ में छिपे हिंदुत्व के 'ठेकेदार' अपना फैसला सुना चुके हैं. यूपी में पंचायत चुनाव हैं. इसलिए इसका फायदा 'उन्हें' मिलेगा. यही 'ठेकेदार' कुछ दिन बाद आपको राज्य और फिर देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाते नजर आएंगे. मतलब, सब कुछ अपने फायदे की खातिर. फिर हिंदू धर्म वाला गरीब किसान आत्महत्या ही क्यों न कर ले. उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. आप उन्हीं लोगों के साथ मिलकर खोजते रहिए कोई दूसरा घर जलाने के लिए, जहां गोमांस खाया जाता हो.
कैसा लोकतंत्र!
हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं. लेकिन सच यही है कि कोई क्या खाएगा, क्या पहनेगा..इसकी आजादी भी हम अपने लोगों को मुहैया नहीं करा सके हैं. दुनिया में भारत बीफ के सबसे बड़े निर्यातक देशों में से एक है. फिर यह ढ़ोंग क्यों. मुझे पता है कि मौजूदा सरकार को और आगे आनी वाली दूसरी सरकारों को वोट की चिंता होगी. इसलिए वे इससे कभी बैन नहीं हटाएंगे. और यही पार्टियां उन राज्यों में भी बीफ पर कभी बैन नहीं लगाएंगी जहां इसका खूब उपयोग होता है, बिना किसी कानूनी बंदिश के.
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