सीरिया : देश जहां मरने वालों की डेड बॉडी, आंकड़े या फिर नंबर हैं
सीरिया में हालात बद से बदतर हो रहे हैं ऐसे में हमारा और हमारे अलावा तमाम देशों की सरकारों का चुप होना ये साफ दर्शाता है कि अब वो समय आ गया है जब हमने अपने अंदर बसी इंसानियत को निकाल के दफना दिया है और चीजों को नजरंदाज करना सीख लिया है.
-
Total Shares
2011-15 (5 साल) में ढाई लाख लोगों की मौत (सरकारी आंकड़ा)
50 लाख से ज्यादा शरणार्थी
पिछले 6 दिनों में 500 लोगों की मौत
अगस्त 2015 के बाद से यूएन (संयुक्त राष्ट्र) ने मरने वालों की संख्या को अपडेट करना बंद किया
मनवाधिकार संगठनों के मुताबिक - अब तक 5 लाख से ऊपर लोग मारे गए
ये सारे आंकड़े सीरिया के हैं. सीरिया वो देश जो इन दिनों तमाम बड़े देशों के छद्म युद्ध की भूमि बन गया है. जहां हथियारों के परीक्षण के नाम पर मासूमों की जिंदगियां लील ली जा रही है. जहां के हालातों पर पूरी दुनिया के आका मौन हैं और इंसानियत खामोश. इस देश में हैवानों की सरपरस्ती में कत्ल-ए-आम मचा हुआ है. इस कदर कि मासूम यहां मरने को पैदा हो रहे हैं. लेकिन इन सब बातों से हमें क्या. ये तो वो देश (सीरिया) है जो खुद की लड़ाई खुद से लड़ रहा है. इसमें हमारा क्या रोल. लेकिन जरा सोचिए क्या इसमें इंसानियत का कत्ल नहीं हो रहा.
सीरिया में जो हो रहा है उससे इंसानियत बार-बार शमर्सार हो रही है
क्या आपके अंदर का इंसान इस कत्ल-ए-आम को देख कर विचलित नहीं होता. या आप भी उन लोगों में से हैं जो बेडरूम में लगे बड़े एलसीडी पर लोगों के खून से सने चेहरे-लोथड़े, रोते बच्चे, चीखते लोग और बर्बाद शहर को देखने के बाद बड़े मासूमियत से कहते हैं- ओह ये क्या हो रहा है? और फिर चद्दर तान कर सो जाते हैं. मेरा आपके अफसोस करने के तरीके से कोई बैर नहीं है. न ही आपके चद्दर को तानने से. बस मुझे आपकी ये खोखली अफसोस की दुनिया से घिन आती है.
आप श्रीदेवी के मरने पर टेसूए बहा सकते हैं. अपनी फूल सी कोमल नाजुक उंगलियों को दर्द देकर लंबा-लंबा मैसेज टाइप कर सकते हैं. लेकिन पिछले 7 दिनों से लोगों पर बम बरसाने की खबर आपने तो देखी ही नहीं. या देखी भी होगी तो आपको क्या? आपको पढ़ना वही है- श्री देवी की आखिरी बात और देखना वही है- श्री का आखिरी डांस. ओह, कितने डबल फेस टाइप हैं आप.
एक तानाशाह टाइप का आदमी 2011 से अपने ही लोगों की हत्याएं करा रहा है. पिछले 6 दिनों से बमों की बारिश कर रहा है, जिसमें अब तक 500 लोग मर गए. लेकिन इससे हमें क्या. हमारा तो काम एकदम चकाचक है. श्री देवी के लिए दिन भर रोना और रात में बिरयानी चाप कर सो जाना. मैं पिछले 4 सालों से सुन रहा हूं. विदेशों में हमारी नीति की वजह से हमारा वट बढ़ गया है. हमारे 'यशस्वी कल्कि अवतार प्रधान सेवक कम चौकीदार' का वट विदेशों में इतना है कि वो जो चाहें करा सकते हैं. अगर इतना ही है तो एक बार बशर अल-असद से बात क्यों नहीं करते. कहते- भाई बहुत हुआ, 1971 से तेरी ही पार्टी ने राज किया है. पहले तेरा पिता और अब तू, अब छोड़ दे गद्दी. लेकिन नहीं, यहां तो कोई नीति काम ही नहीं करती.
देखा जा रहा है कि सीरिया के मुद्दे पर भारत समेत तमाम देशों ने चुप्पी साध रखी है
मेरा आपके श्री देवी को लेकर अपनी भावनाएं उड़ेलने से कोई लेना देना नहीं है. खूब उड़ेलिए, स्याही में आसूं मिलाकर पूरा टाइम लाइन भिगो दीजिए. न ही मेरा मोदी के मौन होने से कोई लेना देना है. क्योंकि वो तो जब से आएं हैं मौन ही हैं. मेरा बस इतना कहना है कि अपनी भावनाओं को मत मरने दीजिए. मुझे विश्वास नहीं होता कि आपने मरते बच्चों की तस्वीरें नहीं देखीं. मुझे हैरानी होती है कि आप तक ऐसी कोई खबर नहीं पहुंची.
मैं बस परेशान हूं कि आप सब कितना संवेदनहीन हो रहे हैं. बस ये जिस ओर आप बढ़ रहे हैं न, ये बेहद खतरनाक है. मुझे डर लगता है कल को राह चलते लोगों के गले काटे जाएंगे और आप तमाशबीन बन तालियां पीट रहे होंगे. उसके गले से फव्वारे की तरह निकलता खून आपके एड्रिनल को पंप कर रहा होगा.
आप इसके मजे से इतने ओत प्रोत होंगे कि कहेंगे- जरा आहिस्ते-आहिस्ते चाकू को रगड़ो, मौत की तड़प देखने का अलग ही मजा है. इस बात से बेखबर कि शायद अगला नंबर आपका है. या फिर आप किसी का शिकार करने वाले हैं. अगर यही बनना है तो सीरिया में जो हो रहा है वो जायज है. क्योंकि कल सीरिया बाद में कोई और देश. कब क्या हो जाए पता नहीं.
ये भी पढ़ें -
ISIS से आजाद होकर भी मोसुल खुश कभी नहीं होगा
सीरिया संकट दे रहा है तृतीय विश्व युद्ध की आहट
कैमिकल अटैक से बचकर निकले शख्स की कहानी जरूर सुननी चाहिए!
आपकी राय