क्यों तुम्हें माफ कर दें गुरमीत !
सुनो ! उठो ज़रा...तुम्हें गुरू जी ने गुफा मे बुलाया है. रात का दूसरा पहर, और पंद्रह बरस पहले एक हादसा होने जा रहा था, जिसका तमाम किस्सा आज अदालत में बैठकर एक जज अपनी कलम से लिख रहे हैं. आज सच्चा डेरे का झूठा सच नंगा हो रहा है.
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हाथ जोड़कर वो रोता रहा, लगातार ज़मीन पर बैठकर फूट-फूटकर बिलखता रहा.. 'मुझे माफ कर दो' !! ये शख्स जो हाथ जोड़कर अदालत के सामने बिलख-बिलखकर रो रहा था, ठीक पन्द्रह साल पहले एक औरत इसके सामने फूट फूटकर रो रही थी.
सुनो ! उठो ज़रा...तुम्हें गुरू जी ने गुफा मे बुलाया है. रात का दूसरा पहर, और पंद्रह बरस पहले एक हादसा होने जा रहा था, जिसका तमाम किस्सा आज अदालत में बैठकर एक जज अपनी कलम से लिख रहे हैं. आज सच्चा डेरे का झूठा सच नंगा हो रहा है.
उस साध्वी के दिल में न कोई सवाल, न कोई सुबा, कदम अपने आप "सच्चा डेरा" की एक चौखट से गुफा की दहलीज़ की तरफ चलने लगे. गुरूजी ने जो बुलाया है. पूरी रात एक सच नंगा होता रहा और एक औरत हाथ जोड़कर रोती बिलखती रही.
'मुझे माफ कर दो ?'
क्यों माफ कर दें बाबा रामरहीम ? आपने उसको माफ किया था, वो जो तुम्हारे पैर पकड़कर रातभर रोती रही गुरमीत सिंह और तुम हैवान बने रहे. किस आधार पर तुमको माफ कर दें!!
यह फैसला ऐतिहासिक है, इसलिए नहीं कि वो बलात्कारी की सजा तय कर रहा है, बल्कि समाज के उस ताने-बाने को मजबूत कर रहा है जिसमें मां, बहन, बेटी और पत्नी का एक पवित्र रिश्ता सांसे लेता है. यह फैसला उस गंदगी को साफ कर रहा है जिसमें रिश्तों का बलात्कार होता है.
जानते हैं ऐसे ढोंगी बाबा किस कोख से पैदा होते हैं ? कैसे बनते हैं इनके भक्त ?
जब हम अपने घरों में अपनी बहन, बेटियों और पत्नी को सम्मान नहीं देते, उनको अपमानित करते हैं, और उनको लड़ना नहीं सिखाते. शोषण के खिलाफ खड़ा नहीं करते. एहसास कराते है कि तुम चुप रहो, चुप्पी मत तोड़ो. तब एक गुरमीत सिंह रामरहीम बन जाता है.
यह एक रामरहीम की बात नहीं, उन तमाम रामरहीम की असलियत है जो हमारे आसपास तथाकथित भगवान बनकर घूमते हैं. इस अंधेर नगरी में दो तरह के लोग जाते हैं- एक जो परेशान, कमजोर दुखी होते हैं, जिन्हें आध्यात्मिक शांति की जरूरत होती है, और दूसरे जो आपराधिक मानसिकता के होते हैं. जो कमजोर परेशान होते हैं उनका ये शोषण करते हैं, मानसिक सोच बदलते हैं. और दूसरी कैटेगिरी से यह संरक्षण लेते हैं. एक जगह भगवान बनकर और दूसरी जगह शैतान बनकर अवतार लेते हैं.
आप खुद ही सोचिए न, साधु संत को सेविका की क्या जरूरत ? किसी गुफा, किसी दरबार का क्या लाभ ? आखिर हमारे समाज में राम के होते हुए राम और रहीम के होते हुए रहीम कैसे पैदा होते हैं साहेब ? हमारी कमजोर मानसिकता से. हम घरों से शुरू करते हैं औरत को सम्मान देना और अपमानित करना.
मत बनाइये एक औरत को देवी और मत बनाइये उसको डायन ? वो औरत है, उसको औरत रहने दीजिए !! उसके भी हाड़ मांस है उसके भी दर्द होता है.
ऐसे शैतान पग-पग मिलेंगे पर हर किसी को अदालत सजा नहीं दे पाएगी. हमें इतना जागरूक करना चाहिए खुद को और समाज को कि कोई रामरहीम, बापू आसाराम और राजपाल पैदा ही न हो कभी. बहुत आसान होता है कॉफी हाउस, सेमिनार मे बैठकर यह तय करना कि यह कैसे होता है, समझ नहीं आता लोगों को, फंस जाते है ऐसे चंगुल में. वो दुनिया दिमाग पर वार करती है, कमजोर पर काबू करती है फिर अपनी अय्याशी की सल्तनत तैयार करती है.
हमारे देश मे जब तक एक औरत को देवी बनाकर शोषित किया जाएगा और डायन साबित करके सरेआम नंगा घुमाया जाएगा. तब तक ऐसे तथाकथित भगवान पैदा होते रहेंगे. राजनीति भी ऐसे लोगों को संरक्षण देना बंद करे, सुरक्षा देना बंद करे और आम नागरिक की तरह इनकी भी हैसियत हो. सरकार इनके आश्रम को जगह देने की जगह स्कूलों को जगह दे और शिक्षकों की गुणवत्ता पर ध्यान दे. इस देश को बाबाओं की नहीं अच्छी शिक्षा और शिक्षकों की जरूरत है.
गुरमीत सिंह बाबा रामरहीम तुमको इसलिए माफ नहीं किया जा सकता है क्योंकि तुमने इस समाज के सबसे मजबूत नाम, बहन, बेटियां और पत्नी के रिश्तों को कलंकित परिभाषा दी, एक औरत को उस नाम से डराकर शोषण करते रहे जो उसका विश्वास था. जिस औरत को दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी बनाकर त्योहार मनाते हो उसी को जब रामरहीम बनकर नोचते हो, उन चीखों की हाय जब न्याय पाती है तो उसकी सजा की यही तस्वीर होती है.
अदालत के सामने हाथ जोड़कर, घुटनों के बल बैठकर रोते हुए बोलना- 'मुझे माफ कर दो जज साहेब'.
आज से ही अपनी बेटियों को गोद में उठाकर उन्हें लड़ना सिखाएं, अपनी बहन का हाथ थामकर उसे जागरूक करें, अपनी पत्नी को एहसास कराएं असीम सम्मान का. यकीन मानिए उनको कोई सच्चा डेरा नहीं बल्कि सच्चा प्यार, सम्मान और आत्मीयता चाहिए. चलिए ऐसों का न राम होता है न रहीम. इनकी पहचान है कैदी नम्बर 1997.
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