ओह... तो ये है सेक्सी स्किन फिट जींस पहनने की कीमत!
दक्षिणी दिल्ली के पॉश इलाके के एक शॉपिंग मॉल में अमेरिकी ब्रांड GAP की दुकान में लगता है जैसे खरीदार टूट पड़े हों. इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं. इसके मायने क्या हैं...
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सुबह का वक्त है. दक्षिणी दिल्ली के पॉश इलाके के एक शॉपिंग मॉल में अमेरिकी ब्रांड GAP की दुकान में लगता है जैसे खरीदार टूट पड़े हों. इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं. मेरी ही तरह सभी उस आलीशान शोरूम के बाहर चार लेन वाली लाइन में खड़े होकर अंदर जाने का इंतजार कर रही हैं. उनमें से कई टी-शर्ट रैक के पास सेल्फी लेने में व्यस्त हैं. पीछे खड़ी कई महिलाएं बुरी तरह खीझ रही हैं. उन्हें ट्रायल रूम में जाने की जल्दी है. यहां एक और घुमावदार लाइन लगी है. उनके हाथ रंग-बिरंगी स्किन-टाइट जींस के भार से झुके जा रहे हैं.
"सुनो ना... ये बहुत टाइट है, क्या मैं ज्यादा मोटी लग रही हूं?" एक नवविवाहिता ट्रायल रूम से निकल कर अपने गंजे और बड़ी सी तोंदवाले पति से पूछती है जिसकी बगल से बदबू आ रही है और मेरा मन कर रहा है कि उसे उठा कर फेंक दूं.
अपने आईफोन की ओर देखते हुए वो अनमने से कहता है, "हम्म... स्कीनी इन फैशन है... ले लो... कल सुबह से जॉगिंग स्टार्ट करना मम्मी जी के साथ..."
"क्या मैं ज्यादा मोटी लग रही हूं? बोलो न... तोंद..." वो बाहर आते हुए बोली.
शुक्र की बात ये थी कि उस पति की जगह वहां दो शार्ट डेनिम ड्रेस में दो हंसमुख टीनएजर पहुंच गए जो फेसबुक पर प्रोफाइल पिक्चर बदल रहे थे.
"तुम्हें पता है मुझे वजन कम करने की जरूरत है... क्या तुमने नितंब देखे, वह सुपर टोंड है. ज़ुम्बा और पिलेट्स... छह दिन... हॉट!" उनमें से एक ने स्किन फिट पैंट के जोड़े पर उंगलियां चलाते हुए कहा.
उसकी गर्लफ्रेंड पीठ पर थपथपाती है. "ओह प्लीज... जांघें... बोल मत मोटी... उसके पेट पर बहुत चर्बी है. वो तो व्हेल जैसी दिख रही है यार... उसका मफिन टॉप देखा?"
"मफिन टॉप?" मैं धीमे से बोली.
क्या स्किन फिट सिर्फ दुबली महिलाओं के लिए है? क्या स्किन टाइट एक खास आयु वर्ग के लिए ही ठीक है? क्या स्किनी ड्रेस के लिए हमेशा मर्दों की मंजूरी जरूरी है? क्या स्किनी जींस ही वो वजह है जिसके कारण मुझे केलॉग सेवन डे चैलेंज लेना चाहिए, या मुझे पम्मी सर की देखरेख में कालकाजी के बेसमेंट वाले जिम में स्लिम बनाने वाली ट्रेनिंग जारी रखनी चाहिए. फिश करी और प्लेट भर चावल खाने के बावजूद पिछले महीने मैं दोपहर में कभी नहीं सोई.
क्या स्किन फिट मुझे अंदर से ग्लानि महसूस कराने के लिए है? क्या स्किन फिट मेरी आत्मा के लिए बुरी है?
न्यूरोलॉजी, न्यूरोसर्जरी एंड सायकियाट्री में पिछले हफ्ते प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक 35 वर्षीय ऑस्ट्रेलियाई महिला को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. सुपर टाइट जींस पहने हुए वो महिला अपने एक रिश्तेदार को चलने में सहायता कर रही थी. महिला के पैर सुन्न हो गए. उसका चलना दूभर हो गया. उसके पैर बुरी तरह सूज गए थे. जींस इतनी टाइट थी कि उसे काट कर हटाना पड़ा. जांच में पाया गया कि पैंट के दबाव से उस महिला की नसों को गंभीर नुकसान पहुंचा था.
मैंने घबरा कर अपने चारों ओर स्किन टाइट कपड़ों को देखा. मैं खुद से पूछती हूं कि आखिर हम में से ज्यादातर अपनी मर्जी से इस दर्द और ऐंठन को सहने के लिए क्यों तैयार हैं? बस, अच्छा दिखने के लिए हम आंख मूंदकर पश्चिमी दुनिया से आई ज्यादातर आदतों को अपनाए जा रहे हैं. ढीले प्रिन्टेड पायजामे और बांह वाली कुर्ती में कोई भी महिला फिल्म पीकू की दीपिका पादुकोण जैसी 'आर्टी' हमे क्यों दिखती है?
बंगाली? कुंवारी? बिच?
क्यों, वास्तव में, सदियों से महिलाओं के फैशन को अनजानी पीड़ा से जोड़ दिया गया है? 1500 ईस्वी में प्रचलित चोली फिर से फैशन में है जिससे सांस लेना भी मुश्किल होता है. पेंसिल हील वाले जूतों के बारे में एक बार मशहूर फैशन डिजाइनर क्रिश्चियन लोबोटिन ने कहा था "हाई हील दर्द के साथ आनंद की अनुभूति है." शरीर को शेप देने वाली होजरी और एक लाइक्रा बॉडी सूट कोर्सेट या एक करधनी के आधुनिक संस्करण हैं, स्पैंक्स के ये कपड़े अब भारत में भी उपलब्ध हैं. ये वैरिकोज वेन्स जैसी बीमारियों की वजह बन रहे हैं जैसे भारी हैंडबैग लंबे समय तक इस्तेमाल करने से गर्दन और पीठ से जुड़ी बीमारियां दे रहा है.
आखिर इतने तकलीफदेह स्किन फिट कपड़े पहनने की जिद क्यों है? घंटों बाथरूम नहीं जा सकते. थक हुए टखने, मोटे मोटे पैर के नाखून और उनमें बदबूदार इंफेक्शन, ऐसा क्यों?
क्यों ताकत और कामयाबी की बात सिर्फ कुछ खास तरह के जूतों के साथ ही जुड़ी रहती है? क्या सपाट जूते महिलाओं को कमजोर बना देते हैं? क्यों तस्वीर खिंचवाते वक्त अधिकांश महिलाएं तुरन्त अपना पेट भीतर खींच लेती हैं? एक उम्र के बाद लगभग हम सभी हमेशा अपनी आयु के बारे में झूठ बोलते हैं. क्यों अधिकतर विज्ञापनों में सुंदर पीठ और साफ बगल का फार्मूला ही अपनाया जाता है? तभी मर्दों की नजर पड़ेगी. बार बार देखे जाने की ललक, बिलकुल बेजान वस्तु की तरह.
हम इतने परेशान क्यों हो उठते हैं अगर कॉलेज की पुरानी पोशाक पहनने में मुश्किल होती है. या अपने पुराने डेनिम को लेकर पहले प्यार जैसे क्यों यादों में खोए रहते हैं. हमारे बटन न खिसक जाएं इसलिए हम अपनी सांसें तक थाम लेते हैं. हमारे आंसू क्यों छलक पड़ते हैं जब हमारे पति हमारे किशोर बच्चों के सामने हमें "मोटी भैंस' कहते हैं?
हमारी बेटियां हम पर हंसती हैं, हमारे बेटे हमसे सहानुभूति जताते हैं. क्यों हर फिटनेस गुरु हमले वादा करता है कि इंच भर कम होने पर ही हमें अंदर से अच्छा महसूस होगा?
विदेश में छुट्टी मनाने जाने पर स्विमिंग सूट पहनने का लोभ? शादी विवाह में लो-वेस्ट लहंगा पहनना? किसी मैगजीन के कवर पर नजर आनेवाली सुंदर मम्मी बनने के लिए आपने कोई पार्लर देखा है? कुंआरेपन के अहसास को लेकर असहज होने का आनंद. जैसे आपने अपनी फर्स्ट नाइट को बनाया था. जिनके बारे में आप आसानी से झूठ बोल सकती हैं... बाद में.
क्या कोई समझ सकता है कि हमारा अंडरवायर ब्रा, जी स्ट्रिंग, बिकनी वैक्स जैसी मुश्किलों से संघर्ष हमें अंदर तक झकझोर देता है? हर दिन, हर सप्ताह, हर महीने, हर साल? क्यों हम अपनी खुद की असलियत से इतने डरे रहते हैं?
ये कब की बात है जब आखिरी बार कोई आम भारतीय महिला आईने के सामने खड़ी होकर खुद को निहार रही थी. उसके नग्न नितंब, अपने उभार, सीजेरियन के दर्दनाक टांकों के निशान, उभारों के साथ खिंचाव वाले निशान, उसे खुद बता रहे हैं कि वो बिलकुल ठीक है? जरूरी नहीं कि सहजता का तात्पर्य कठोरता से ही हो. जरूरी नहीं है कि हर वक्त वह खुद के साथ ही प्रतिस्पर्धा की जाती रहे.
यानी मैं जो पहनती हूं वही नहीं हूं. बल्कि उससे ज्यादा...
स्किन-फिट टाइट सेक्सी तो है, लेकिन सतही भी है. और अगर यह तकलीफदेह भी है, तो यह हमारे लिए नहीं बना है. और 'ज्यादा मोटी' जैसी कोई चीज़ नहीं होती.
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