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Updated: 08 जुलाई, 2018 12:34 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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हाल ही में इंटरनेट पर कुछ नई तस्वीरें वायरल हो रही हैं. पहली तस्वीर में एक पुरुष एक बच्चे को हाथ में लिए है और दूसरा उसकी मदद करता दिखता है. दूसरी तस्वीर में पानी में से निकलती एक महिला नजर आती है. 

असल में ये तस्वीर रेड सी यानी लाल सागर की है. एक रशियन महिला ने अपने डॉक्टर पति की मदद से लाल सागर में अपने बच्चे को जन्म दिया. Water birth करने वाले लोगों में अब Sea birth यानी समुद्र में बच्चा पैदा करने का ट्रेंड बढ़ रहा है.

प्रेग्नेंसी, महिलाएं, भारत, बच्चा, सोशल मीडियालाल सागर में पैदा हुआ नवजात

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ये ट्रेंड विदेशों में तो काफी बढ़ रहा है, लेकिन भारत का क्या? भारत में तो ऐसा कुछ भी नहीं होता! होता भी है तो लोग उसे समझ नहीं पाते और अधिकतर को तो इसके बारे में पता ही नहीं है. पर क्या कभी सोचने की कोशिश की कि ये ट्रेंड जो विदेशों में इतना लोकप्रिय हो रहा है और डॉक्टरों का मानना है कि ये मां और बच्चे दोनों के लिए बेहतर है. पर भारत में ऐसा कुछ क्यों नहीं होता? पहले तो इसका कारण जानने के लिए शास्त्रों से ज्ञान लेते हैं.

शास्त्रों के हिसाब से नवजात और मां पानी के पास नहीं जा सकते...

गरुड़ पुराण में सूतक को सही माना है. जन्म के 10 दिन तक सभी घरवालों को और 45 दिन तक बच्चे की मां पर सूतक रहता है. मां और बच्चा 45 दिन तक एक ही कमरे में रहते हैं और वहां ज्यादा लोग नहीं जाते.

सूतक का संबंध ‘जन्म के’ समय होने वाली अशुद्धी कही जाती है और इसके दो कारण बताए गए हैं. पहला ये कि जन्म के समय पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है, उसमें लगने वाले दोष पाप के प्रायश्चित स्वरूप ‘सूतक’ होता है. और दूसरा ये कि जो भी द्रव्य इस दौरान शरीर से निकलते हैं उन्हें अशुद्ध माना जाता है, बच्चा पैदा होने के बाद कई दिनों तक महिला को पीरियड्स होते हैं और इस कारण किसी भी पूज्यनीय जगह पर न तो जाते हैं और न ही कमरे से बाहर निकलते हैं. इसी कारण किचन में भी नहीं जाते.

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यही कारण है कि जब समुद्र और नदी को भारत में पूजा जाता है और कण-कण में भगवान माने जाते हैं, जहां समुद्र के जीव जंतु भी पूजे जाते हैं वहां सूतक के समय पानी में नहीं जा सकते. ऐसे में पानी में बच्चे को पैदा करना तो बहुत दूर की बात है.

हालांकि, इसका वैज्ञानिक कारण भी लोग निकालते हैं. कारण ये कि मां को सही आराम मिल जाएगा और शुरुआत में बच्चे में भी प्रतिरोधक क्षमता कम रहती है ऐसे में कहीं आना-जाना सही नहीं है.

पर वाटर बर्थ फायदेमंद...

पर क्या शास्त्रों के कारण इस तरीके को न अपनाना सही है? इसके लिए ये भी कहा जा सकता है कि वाटर बर्थ के बारे में अभी भारतीय जनता जागरुक नहीं है और न ही यहां इस तरह की खास ट्रेनिंग हर जगह के मेडिकल स्टाफ को दी जाती है. मेडिकल स्टाफ भी इस प्रक्रिया से अंजान ही समझा जा सकता है. हालांकि, भारत में भी वाटर बर्थ के कई मामले हैं. पहला वाटर बेबी 2007 में दिल्ली में पैदा हुआ था.

मेडिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि किसी भी समय ऑपरेशन की तुलना में वाटर बर्थ बेहतर होता है. ये न सिर्फ लेबर पेन को कम करता है बल्कि बच्चे को मां के गर्भ जैसा माहौल भी देता है. पानी के कारण शरीर में ब्लड सर्कुलेशन सही हो जाता है.

यकीनन वाटर बर्थ के अपने कई फायदे होते हैं और उसमें प्राकृतिक तौर पर तनाव कम करने की शक्ति होती है और साथ ही मां और बच्चे दोनों को आराम देने का काम करता है. मां के ठीक होने की गुंजाइश ऐसे में बढ़ जाती है.

भारत में इस तरह के जन्म को अगर बढ़ावा दिया गया तो ऑपरेशन से होने वाले जन्म की संख्या कम हो सकती है! हालांकि, ऐसा सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है क्योंकि यहां भी कई लोग शास्त्रों और सूतक का हवाला देकर इसे मना कर देंगे तो कोई डर के कारण. पर सवाल ये उठता है कि जहां दूसरे देशों में अब समुद्र में जन्म होने लगा है वहां अब भारत में कम से कम आर्टिफीशियल पूल में तो वाटर बर्थ का सिलसिला शुरू होना चाहिए या नहीं?

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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