फड़नवीस को क्रूज पर देख हमें गुस्सा क्यों आता है?
सोशल मीडिया क्या है, एकदम चौक-चौराहा... सो फड़नवीस और उनके परिवार की एक पुरानी तस्वीर को अमेरिका दौरे से जोड़ कर शेयर कर दिया गया. लग्जरी के नाम पर उन्हें कोसा जाने लगा. आखिर क्यों नेता हमेशा हमारे निशाने पर होते हैं?
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सब नेता एक ही थाली के चट्टे-बट्टे होते हैं. कोई सही नहीं होता. सब के सब देश को खाने वाले. अपना पेट भरने वाले. चौक-चौराहे कहीं भी बात कर लीजिए, घूम-फिर कर नेताओं के लिए यही बात सामने आएगी. हमारे नेता विदेश जाते हैं तो सवाल होता है - हमेशा दूसरे देश में ही रहते हैं, देश के नेता हैं या विदेश के? जो नेता यहीं रहकर काम करते हैं, उनसे सवाल होता है - ग्लोबल दुनिया में आप अलग-थलग कैसे रह सकते हैं? हम-आप की तरह नेता अपने परिवार के साथ कहीं घूमने जाएं तो उस पर भी बवाल हो जाता है - महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फड़नवीस भी इसके शिकार हुए.
सीएम फड़नवीस की एक पुरानी तस्वीर. जिसे सोशल मीडिया पर हाल के अमेरिकी दौरे से जोड़ कर किया गया शेयर |
दरअसल महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फड़नवीस हाल ही में अमेरिका के दौरे पर गए थे. लेकिन सोशल मीडिया क्या है, एकदम चौक-चौराहा... सो फड़नवीस और उनके परिवार की एक पुरानी तस्वीर को अमेरिका दौरे से जोड़ कर शेयर कर दिया गया. तस्वीर में सीएम साब अपनी पत्नी अमृता और बेटी दिविजा के साथ हैं. मुंबई पुलिस ने एनसीपी और कांग्रेस नेताओं के खिलाफ इस मामले में एफआईआर भी दर्ज कर ली है.
देसी-विदेशी नेताओं के लिए अलग-अलग पैमाने
तस्वीर का एक पहलू : जब अमेरिका के राष्ट्रपति कहीं घूमने या विदेश यात्रा पर जाते हैं तो उनकी कार, प्लेन, ड्रेस, बीवी-बच्चों के ड्रेस सब पर चर्चा होती है. सराहा जाता है ऐसे मानो घर के पहले दामाद हों. और तो और, उनके कुत्ते तक पर स्टोरी की जाती है.
तस्वीर का दूसरा पहलू : देसी नेता कहीं घूमने चले जाएं, परिवार के साथ छुट्टियां मना लें, सुरक्षा के लिए नई गाड़ी ले लें... कुछ भी जो मिडिल क्लास की नजर में लग्जरी हो, मतलब आप गए काम से. ऊपर से सोशल मीडिया पर कमेंट्स की बाढ़ - देश में समस्या कम है जो आप घूम रहे हैं, इतना पैसा आया कहां से, इन्हें तो देश की फिक्र ही नहीं...
विदेश मतलब संपन्नता
हमारे यहां एक छवि बन गई है - विदेश मतलब संपन्नता, भले ग्रीस आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा हो. वहां के नेताओं के लग्जरी लाइफ से हमें दिक्कत नहीं. दिक्कत क्या, हम तो उन्हें अपने आइडल मान बैठते हैं. उनके सैर-सपाटे की खबरें चाव से पढ़ते हैं. शायद एक वजह यह भी हो कि पुतिन, ओबामा आदि से हम जुड़ाव महसूस नहीं करते और इसलिए उनकी आलोचना भी नहीं कर पाते.
मीडिल क्लास के ऊपर उठने की ललक और तुलना
मीडिल क्लास के लोग नेताओं को आदर्श के तौर पर देखना चाहते हैं. उनसे अपनी तुलना भी करते हैं. आम लोगों पर अभिनेताओं से ज्यादा प्रभाव नेताओं की छवियों से पड़ता है - समाज में रुतबा हो, लोग सलामी ठोकें, ऑफिस में जाएं तो फटाफट काम हो जाए... लेकिन यही नेता जब विदेश घूमने चले जाते हैं तो मीडिल क्लास को अपनी और उनकी जेब का फर्क समझ आता है - तकलीफ होती है और गरियाने लगते हैं.
दो बाते हैं : (i) देश के आम आदमी को नेताओं की लग्जरी लाइफ से दिक्कत है. (ii) नेताओं का भी अपना एक परिवार होता है और उनकी भी अपनी निजी जिंदगी होती है. इन दोनों बातों में सिर्फ एक ही चल सकती है - या तो आम आदमी को अपनी समझ बढ़ानी होगी या नेताओं को जोकि खुद को जनता का सेवक मानते हैं, लग्जरी लाइफ त्यागना होगा. दोनों बातें साथ-साथ नहीं चल सकतीं, यह तय है.
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