बच्चे की हर गलती के लिए हम मां को दोष क्यों देते हैं?
जिस बच्चे को मां अपनी जान से अधिक प्यार करती है. क्या वह चाहेगी कि वह गिर जाए या फिर बीमार पड़ जाए? मगर फिर भी वह अपनी गलती मान लेती है. वह गिल्ट से भर आती है. उसे लगता है कि मेरी ही गलती है. मैं अगली बार से और अधिक सावधान रहूंगी.
-
Total Shares
कमर में दर्द लिए मां (Mother) दिन भर बच्चे (Child) के पीछे भागती रहती है. दिन भर उसका ख्याल रखती हैं. मगर फिर भी खेलते-खेलते अगर बच्चा कहीं गिर जाए तो परिवार के लोग सबसे पहले उस मां को ही दोष देते हैं. अरे तुम क्या कर रही थी? एक बच्चा नहीं संभाला जाता तुमसे. बच्चा गिर गया और तुम्हें खबर भी नहीं है. इस तरह बच्चे के गिरने की वजह मां बन जाती है.
इसी तरह अगर बच्चा बीमार पड़ जाए तो भी घरवाले मां को ही दोष देते हैं. वे कहते हैं कि तुम्हारी गलती के कारण बच्चा बीमार पड़ गया. तुम ध्यान देती तो वह आज सही रहता. तुमसे एक काम ढंग से होता नहीं है. तुमने ही उसे कुछ ठंडा खिला दिया होगा.
जरा सोचिए, जिस बच्चे को मां अपनी जान से अधिक प्यार करती है. क्या वह चाहेगी कि वह गिर जाए या फिर बीमार पड़ जाए? मगर फिर भी वह अपनी गलती मान लेती है. वह गिल्ट से भर आती है. उसे लगता है कि मेरी ही गलती है. मैं अगली बार से और अधिक सावधान रहूंगी.
अगर बच्चा बीमार पड़ जाए तो भी घरवाले मां को ही दोष देते हैं
इतना नहीं, बच्चा अगर गाली देने लगे या एक बार परीक्षा में उसके कम नंबर आ जाएं तो भी मां ही दोषी बन जाती है. सारे घरावालों की निगाहें उस पर सवालिया निशान खड़ा कर देती हैं. भला क्या कोई मां चाहेगी कि उसका बेटा गाली दे या बदतमीजी करे? वह तो अपने बच्चों को अच्छे संस्कार ही सिखाती है, अच्छी बातें ही बताती हैं.
अब हर वक्त बच्चे मां के आंचल से तो बंधे नहीं रहते हैं. वे स्कूल जाते हैं, वे बाहर दूसरे बच्चों के साथ खेलने जाते हैं, वे टीवी देखते हैं, वे परिवार के दूसरों लोगों के साथ समय बीताते हैं. तो वे गाली तो कहीं से सीख सकते हैं फिर इसमें मां दोषी कैसे हो गई?
बच्चे को खिलाने से लेकर होमवर्क कराने तक की जिम्मेदारी मां की ही होती है. एक तरह से बच्चे की परवरिश की पूरी देख-रेख मां ही करती है. पिता तो अपना थोड़ा सा समय बच्चों को दे दें, यही काफी है. कोई बच्चे के हिस्से का काम करने नहीं आता मगर सब मां को सुनाने फौरन आ जाते हैं.
मां ने तो बच्चे को एक-एक सवाल के जवाब अच्छे से रिपीट करवाए थे. मगर जब बच्चा कॉपी में जवाब लिख कर नहीं आएगा औऱ फेल हो जाएगा तो भला मां दोषी कैसे हो गई? ऐसे हालात में आखिर एक मां क्या करे? मां से जितना हो सकता है, वह करती है. अब वह सवालों के जवाब बच्चे को घोल कर तो नहीं पिला सकती? इतना ही नहीं बेटी शादी करके जब ससुराल जाती है तो वहां भी मां को कोसा जाता है. जैसे- तुम्हारी मां ने तुम्हें कुछ नहीं सिखाया है?
मां के लिए बच्चे कभी बड़े नहीं होते हैं. वह हमेशा बच्चों की चिंता करती रहती है. वह जब तक जीवित रहती है अपने बच्चों के पीछे-पीछे लगी रहती है. एक समय ऐसा आता है जब कुछ बच्चे भी मां को खरी-खरी सुना देते हैं. वे अपनी गलतियों की वजह मां को बता देते हैं. लोग भी कहते हैं कि अगर मां ने बचपन में ध्यान दिया होता है तो बेटा बड़ा होकर बिगड़ता नहीं.
इसके उलट जब बेटा या बेटी कुछ अच्छा करते हैं तो वहां पिता बोल पड़ते हैं, अरे मेरा बहादुर बेटा आ बेटी...यानी जब तारीफ की बात आती है, वहां बच्चा पिता का हो जाता है औऱ जब बुराई की बात आती है तो मां की गलती हो जाती है. समझ नहीं आता कि आखिर एक मां ऐसा क्या करे कि, लोग उसे दोष देना बंद कर दें? क्या बच्चा सिर्फ मां की जिम्मेदारी है?
आपकी राय