मोदी और रामदेव नहीं, योग के पुरोधा शिव और पतंजलि हैं
21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत भले ही मोदी सरकार ने की हो लेकिन ये बताने की कोशिश बेमानी है कि पुराने जमाने के मुकाबले योग की महत्ता अब ज्यादा है...
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अगर आपको लगता है कि पिछले साल शुरू हुए विश्व योग दिवस की वजह से ही योग को दुनिया भर में चर्चा मिली है तो, जरा रुकिए. योग की उपलब्धियों के मामले प्राचीन भारत में ही काफी काम किया जा चुका था.
इसलिए अगर किसी को ये लगता है कि योग की शुरुआत करने और इसे दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने में बाबा रामदेव नरेंद्र मोदी की ही सबसे अहम भूमिका है तो उसे पहले भारतीय योग का इतिहास जानने की जरूरत है. आइए जानें कैसे योग आज नहीं बल्कि सदियों पहले से ही इस देश का अहम हिस्सा रहा है.
योग दर्शन का एक अंग हैः
पतंजलि ने दुनिया को योगसूत्र दिया जिसकी जानकारी सहेजना और उसका प्रचार-प्रसार करना भारत के लोगों की जिम्मेदारी बनती है. हमारे पास छ: दर्शन हैं.
1.न्याय (Justice): इसमें न्याय की प्रक्रिया बताई गई है जैसे- तर्क करना, प्रमाण के साधन, प्रमेय और साध्य-साधन का विवरण इनमें लिखे हैं, इसके प्रवर्तक ऋषि गौतम है.
2.वैशेषिक (Vaisheshik): वैशेषिक में कण संबंधी जानकारी दी गई है, इसके संकलनकर्ता ऋषि कणाद हैं
3.सांख्य: सांख्य सूत्र में संख्या संबंधी विश्लेषण है, इसके प्रवर्तक कपिल मुनि है.
4.योग (Yoga): प्राचीन भारत में योग के प्रचार के लिए योगसूत्र लिखा गया, योग को पहली बार पतंजलि ने रूप दिया और उन्होंने योगसूत्र की रचना की.
5.मीमांसा (Decision): ये विचारों का समन्वयन है जर्मन के विद्वान मैक्समूलर का कहना है, ‘यह दर्शन शास्त्र कोटि में नहीं आ सकता, क्योंकि इसमें धर्मानुष्ठान का ही विवेचन किया गया है. इसमें जीव, ईश्वर, बंधन, मोक्ष और उनके साधनों का कहीं भी विवेचन नहीं है.’
जैमिनी ऋषि के प्रयासों से मीमांसा का धरती पर आना संभव हो सका.
6.वेदान्त (Theology): उपनिषद् वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसे वेदांत कहते हैं. इसमें ज्ञानमार्ग को समझाने पर बल दिया गया है. इसके प्रवर्तक ऋषि आदिगुरूशंकराचार्य, मध्वाचार्य और रामानुज है.
योग का श्रेय मोदी और रामदेव नहीं बल्कि प्राचीन भारत के महापुरुषों को जाता है! |
योग षड्दर्शन में से एक है. भारतीय प्राचीन साहित्य पतंजलि के योगदानों का हर समय कर्जदार बनकर रहेगी. योगसूत्र के हिसाब से योग का मकसद चित्तवृत्ति को स्थिर करना है और इसका उद्देश्य मोक्ष यानी निर्वाण है. योग और किसी भी दर्शन को अपनाने के लिए नियमित अभ्यास की जरूरत होती है ना कि किसी शिविर की या किसी प्रशिक्षक की. ये मिथक ही है कि हम बिना प्रशिक्षक के योग नहीं सीख सकते है. हम किताबों के निर्देश से भी योग सीख सकते है.
योग के मायनेः
योग चित्त की स्थिरता का उपाय है. योग साधना है, अभ्यास है. योग बिषय बहुत ही व्यापक है लेकिन अफसोस ये है कि यहां के लोग योग के फैलाव को सीमित करने पर लगे है.
योग का जिक्र आपको चारों वेदों में मिल जायेगा. भारत का ऐसा कोई प्राचीन साहित्य नहीं है जिसमें योग की चर्चा ना की गई हो. चाहे उपनिषद् हो या फिर भागवत, रामायण, महाभारत, आयुर्वेद सबमें योग का उल्लेख है. जरूरी नहीं कि योग के लिए किसी प्रशिक्षक की मदद लेनी ही पड़े. ये एक अभ्यास है जो निरंतर करने से ही दिनचर्या में शामिल की जा सकती है.
रामदेव और मोदी नहीं शिव और पतंजलि हैं योग के पुरोधाः
अगर आप योग के इतिहास का अध्ययन करें तो आपको शिव जैसा योगऋषि कही दिखाई ही नही देगा, जिन्होंने योग का प्रचार पृथ्वी पर ही नही बल्कि एक साथ तीनों लोकों तक किया था. प्राचीन भारत में प्रसिद्ध ऋषि योग संगठनों के माध्यम से दुनिया भर में घूम-घूमकर योग की शिक्षा दिया करते थे.
कहने का मतलब ये है कि प्राचीन समय में योग का प्रचार-प्रसार इतना व्यापक था कि केवल भारद्वाज ऋषि के पास हर साल 5 लाख नये विदेशी छात्र आते थे. योग ने भारत से भले ही अपनी यात्रा की शुरूआत की लेकिन प्राचीन काल के ऋषियों के लगातार प्रयास से इसे दुनियाभर में पहुंचाया गया.
तो योग का श्रेय मोदी और रामदेव नहीं बल्कि प्राचीन भारत के महापुरुषों को दीजिए.
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