होली के त्योहार पर आम घरों की महिलाओं का रूटीन क्या होता है?
एक त्योहार ही तो वह मौका होता है जब सभी घरवाले एक जगह होते हैं. उसमें भी बाहर से सामान मंगा लेंगे तो फिर बात ही क्या रह जाएगी? उन्हें तो मां के हाथ का ही सबकुछ बना अच्छा लगता है. इसलिए कमर दर्द लिए मां रसोई से छत और बाजार के चक्कर लगाती रहती है.
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होली 8 मार्च 2023 (Holi 2023) को मनाई जाएगी मगर आम घरों में इसकी तैयारी महीने पहले से शुरु हो चुकी है. मां की खुशी का ठिकाना नहीं है. वह तरह-तरह के पापड़ और चिप्स बनाने में लगी है. पापा मना करते हैं कि क्यों इतनी मेहनत करती हो? अब ये सब घर में कौन बनाता है मार्केट में आसानी से मिल जाता है.
मगर मां को यह सब बनाने में खुशी मिलती है. या फिर ऐसा करना उसकी सालों पुरानी आदत है जिसे वह बदलना नहीं चाहती है. उसके हिसाब से त्योहार की चीजें घर में बनानी जानी चाहिए, बाजार में तो एक जैसा मिलता है उसमें वो बात कहां जो घर में बने चिप्स में है.
वैसे भी बच्चे पढ़ाई और जॉब की वजह से बाहर रहते हैं. एक त्योहार ही तो वह मौका होता है जब सभी घरवाले एक जगह होते हैं. उसमें भी बाहर से सामान मंगा लेंगे तो फिर बात ही क्या रह जाएगी? उन्हें तो मां के हाथ का ही सबकुछ बना अच्छा लगता है. इसलिए कमर दर्द लिए मां रसोई से छत और बाजार के चक्कर लगाती रहती है.
होली 8 मार्च 2023 को मनाया जाएगा मगर आम घरों में इसकी तैयारी महीने पहले से शुरु हो चुकी है
इतना ही नहीं त्योहार पर घर भी सजाना होता है. घर के सारे काम करने के बाद जब सारे लोग काम पर निकल जाते हैं तो महिलाएं रुख कर लेती हैं मार्केट की तरफ औऱ खरीदती है घर के लिए सोफे के कवर से मैंचिंग करते हुए पर्दे औऱ कुशन. गुजिया बनाने की मशीन से लेकर गुलाल तक. वे मोलभाव करती हैं औऱ बच्चों के लिए कपड़े और पिचकारी खरीदती हैं. इतना ही नहीं घर के साफ-सफाई की जिम्मेदारी भी उनके सिर होती है इसलिए वे हफ्तों पहले से एक-एक करके घऱ की सफाई करती हैं.
होली के 2 दिन पहले से त्योहार की धूम मच जाती है. घर की महिलाएं अपनी कोई परंपरा नहीं छोड़ती हैं. वे सारी रस्मों का पालन करती हैं. वे बड़े और बच्चो का दुख दूर करने के लिए उन्हें उबटन भी लगाती हैं.
वे दो दिन पहले से ही गुलाब जामुन, नमकीन, गुजिया, दही वड़ा औऱ ना जाने क्या-क्या बनाने लगती हैं. होली के दिन वे सबसे पहले जग जाती हैं. नहा धोकर सबसे पहले घर में पूजा करती हैं, भगवान जी को गुलाल चढ़ाती हैं औऱ फिर लग जाती हैं रसोई में. वे बनाती हैं ढेर सारे पकौड़े, पुए औऱ सभी घऱवालों के लिए स्वादिष्ट भोजन. घर के लोग सुबह जगते हैं और इन गर्मागर्म पकवानों का लुफ्त उठाते हैं. इन सब के बीच में अगर कोई महिलाओं पर रंग डाल देता है तो वे दोबारा कपड़ें बदलती हैं औऱ फिर लग जाती हैं काम में. इस तरह उनका त्योहार रसोई में बीत जाता है.
घर के सारे लोग त्योहार मनाते हैं औऱ महिला उन्हें देखकर हंसती है. खुश होती हैं. होली का दिन है वे तो घर से बाहर निकलेंगी नहीं. हां पुरुष अपने यार दोस्तों से जाकर मिल आते हैं. वे काम खत्म करने के बाद आपस में लगा लेती हैं रंग, गुलाल. फिर लग जाती हैं घर की साफ-सफाई औऱ धुलाई में. फिर शाम की तैयारी भी तो करनी है. वे ड्राइंग रूम को सजाती हैं. टेबल पर नया क्लॉथ बिछाती हैं. उस पर सारे पकवान सजाती हैं. गुलाल रखती हैं. पापड़ तलती हैं. औऱ लग जाती हैं आने वाले मेहमान की आवभगत में.
इस तरह कब रात हो जाती है उन्हें पता भी नहीं चलता. वे रात को सारा काम निपटाती है, रसोई साफ करती हैं. और थक हार कर सो जाती हैं. फिर अगले दिन सुबह जल्दी भी तो जगना होता है. महिलाओं का ये रूटीन कबसे चला आ रहा है, हां यह तब थोड़ा बदल सकता है जब घर के पुरुष में अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उनके कामों में हाथ बंटा दें. कई घरों के पुरुष हाथ बंटाने भी लगे हैं मगर एक बड़ा तबका आज भी घर के महिलाओं के भरोसे ही बैठा है.
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