मिलिए डॉ. सीमा राव से, भारतीय सेना के कमांडो को फ्री ट्रेनिंग देने वाली 'वंडर वुमन'!
देश की पहली महिला कमांडो ट्रेनर डॉ. सीमा राव की कामयाबी की दास्तान जितनी दिलचस्प है, उतनी ही प्रेरक भी है. देश के तीनों सेनाओं जल, थल और नभ के जवानों को कमांडो ट्रेनिंग देने वाली सीमा राव अपनी सेवा के बदले कोई फीस या सैलरी नहीं लेती हैं. उनके साथ पति दीपक राव और बेटी कोमल राव कंधे से कंधा मिलाकर खड़े नजर आते हैं.
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'वंडर वुमन' शब्द सुनते ही हमारे जेहन में सबसे पहले अमेरिकन कॉमिक बुक्स की उस सुपरहीरोइन को छवि कौंधती है, जिसे ग्रीक देवताओं ने चमत्कारिक शक्तियां दी हैं. वो असाधारण गति से उड़ सकती है. असंख्य दुश्मनों का एक साथ सामना कर सकती है. उसकी ट्रेनिंग ही उसकी शक्ति का स्रोत है. इतना ही नहीं उसमें अपनी मानसिक शक्तियों को शारीरिक कौशल में निर्देशित करने का कौशल भी समाहित है. कॉमिक बुक्स से निकलकर ये सुपरहीरोइन हॉलीवुड फिल्मों में भी नजर आई है. ऐसी ही एक रीयल लाइफ 'वंडर वुमन' हमारे देश में साक्षात मौजूद हैं. उनकी अद्भुत शारीरिक और मानसिक शक्ति को देखकर हर कोई हैरान रहता है. वो पिछले दो दशक से निशुल्क अपने देश की सेवा कर रही हैं. सेना के तीनों अंगों के जवानों को कमांडो ट्रेनिंग दे रही हैं. वो एक जीती जागती मिसाल हैं. जी हां, हम देश की पहली महिला कमांडो ट्रेनर डॉ. सीमा राव के बारे में बात कर रहे हैं.
मुंबई के बांद्रा में पैदा हुई डॉ. सीमा राव के पिता प्रो. रमाकांत सिनारी स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने गोवा को पुर्तगालियों से आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई थी. उनको पुर्तगाली सेना ने अपने देश की जेल में कैद कर लिया था. लेकिन वो जेल से अपने साथियों के साथ निकलर हिंदुस्तान वापस चले आए थे. उनकी वीरता और साहस की कहानियां सीमा को हमेशा प्रेरित करती थीं. एक इंटरव्यू में सीमा ने कहा था, ''मैंने देश सेवा की भावना अपने पिता से विरासत में हासिल की है. मेरे पिता मुझे स्वंत्रतता संग्राम के किस्से सुनाया करते थे. घर में हम तीन बहनें थीं. मैं उनमें सबसे छोटी थी. हम तीनों बहनों की परवरिश अच्छे माहौल में हुई थी. मैं मेडिकल की पढ़ाई कर डॉक्टर बनाना चाहती थी, इसलिए मैंने जीएस मेडिकल कॉलेज से एमडी की पढ़ाई पूरी की है. लेकिन मेरे मन में देश सेवा का जज्बा था. इसलिए मैंने सोच लिया था कि नौकरी की जगह मैं देश सेवा को ही प्राथमिकता दूंगी."
अपनी सबसे बड़ी कमजोरी को ऐसे ताकत बना लिया है
बहुत कम लोग होते हैं, जो अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बना पाते हैं. लेकिन सीमा ने अपनी सबसे बड़ी कमजोरी को ताकत बना लिया. वो भी ऐसी ताकत जिस पर आज देश को गर्व है. स्कूल के दिनों में वो शारीरिक रूप से बहुत ज्यादा कमजोर हुआ करती थीं. उन दिनों ऐसी कई घटनाएं भी हुईं, जिनकी वजह से सीमा ने खुद को काफी असहाय और मजबूर महसूस किया. इसके बाद उन्होंने निश्चय कर लिया कि उनको कमजोर बनकर नहीं रहना है. इसके लिए उन्होंने शारीरिक मेहनत शुरू कर दिया. मेडिसिन की पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात डॉ. दीपक राव से हुई. वो अपनी पढ़ाई के साथ ही मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग किया करते थे. उनसे सीमा बहुत ज्यादा प्रभावित हुईं. इसके बाद दीपक की देखरेख में उन्होंने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग शुरू कर दिया. आगे चलकर सीमा और दीपक ने शादी कर ली. इसके बाद दोनों मिलकर एक साथ मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देने लगे.
खुद को काबिल बनाने के लिए जो जरूरी था सब सीखा
मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग के दौरान सीमा राव ने कमांडो की जिंदगी के बारे में पढ़ा तो उनको बहुत ज्यादा रोमांचक लगा. यही वजह है कि उन्होंने मिलिट्री मार्शल आर्ट्स और इजरायली सेना के खास मार्शल आर्ट 'कर्व मागा' की भी ट्रेनिंग ले ली. ''कर्व मागा' सेल्फ डिफेंस की एक अद्भुत तकनीक है. इसे इजरायल की सेना ने खुद विकसित किया है. दुनिया के कई देशों की सेनाओं में सेल्फ डिफेंस के लिए 'कर्व मागा' सिखाया जाता है. अपनी ट्रेनिंग के बारे में एक इंटरव्यू में सीमा राव ने बताया था, ''मैंने गहरे पानी में आने वाली समस्याओं को समझने के लिए नौकायन के साथ स्कूबा डाइविंग में प्रोफेशनल कोर्स किया है. इसके साथ ही अधिक ऊंचाई और अत्यधिक ठंड के दौरान पैदा होने वाली चुनौतियों को समझने के लिए पर्वतारोहण के साथ स्काइडाइविंग का कोर्स किया है. इतना ही नहीं जमीन पर जंगल के अंदर विषम परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए जरूरी ट्रेनिंग भी ली है.''
हरफनमौला सीमा राव के पति और बेटी भी एक्सपर्ट हैं
मिलिट्री मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट डॉ. सीमा राव दुनिया की उन 10 महिलाओं में शुमार हैं, जिन्होंने 'जीत कुने दो' सीखा है. ये खास तरह का मार्शल आर्ट है, जिसे ब्रुश ली ने इजाद किया था. ब्रूस ली के छात्र रहे ग्रैंड मास्टर रिचर्ड बस्टिलो से उन्होंने ये कला सीखी है. इतना ही नहीं सीमा एक बेहतरीन निशानेबाज भी हैं. वो 30 यार्ड की रेंज में किसी भी शख्स के सिर पर रखे सेब पर सटीक निशाना लगा सकती हैं. जहां तक उनकी पढ़ाई की बात है, तो उन्होंने हार्वर्ड मेडिकल स्कूल से इम्युनोलॉजी और डोएन यूनिवर्सिटी से लाइफस्टाइल मेडिसिन का कोर्स करने के साथ ही वेस्टमिन्स्टर बिजनेस स्कूल से लीडरशिप की पढ़ाई भी की है. उनके पति दीपक राव एक कुशल मार्शल आर्ट ट्रेनर हैं. उनको राष्ट्रपति की तरफ से मानद मेजर की उपाधि भी दी गई है. उनकी बेटी डॉ. कोमल ने भी मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग ली है. उन्होंने केज फाइटिंग में पुरुष प्रतिद्वंदी को हराकर उपलब्धि हासिल की है.
25 साल में 20 हजार से अधिक जवानों को ट्रेनिंग दिया
डॉ. सीमा राव और उनके पति डॉ. दीपक राव की मार्शल आर्ट्स में दक्षता को देखते हुए उनके पास तीनों सेनाओं से चुनकर आए कमांडो के ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है. पिछले 25 वर्षों में राव दंपति ने 20 हजार से अधिक जवानों को ट्रेनिंग दी है. सीमा पहली ऐसी ट्रेनर हैं, जो कि पुरुषों को ट्रेनिंग देती हैं. बकौल सीमा क्लोज क्वार्टर बैटल (सीक्यूबी) एक्सपर्ट बनना कहीं से आसान नहीं था. भारतीय सेना के अधिकारियों को प्रभावित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी. कई दौर की बातचीत और प्रदर्शन के बाद जवानों को कॉम्बैट ट्रेनिंग देने का सिलसिला शुरू हुआ था. सीमा बताती हैं, ''मुझे अक्सर पुरुष जवानों को ट्रेन करना होता था. इसलिए अपनी फिटनेस का विशेष ध्यान रखा. समय-समय पर अपनी स्किल्स को अपग्रेड करती रही. सीक्यूबी मेथोडोलॉजी संबंधी सर्टिफिकेशंस हासिल किए. आज जब जवानों की आंखों में खुद के लिए सम्मान देखती हूं, तो गर्व महसूस होता है.''
ट्रेनिंग देना था, इसलिए मां नहीं बनने का फैसला किया
कमांडो को ट्रेनिंग देने की प्रक्रिया बहुत मुश्किल होती है. ये न केवल शारीरिक रूप से थका देने वाली होती है, बल्कि बहुत ज्यादा कठिन भी होती है. ट्रेनर के रूप में सीमा राव को ऊंचाई पर अनुकूलन की चुनौतियों के साथ फाइलेरिया और हीट स्ट्रोक की समस्याओं से भी सामना करना पड़ता है. आमतौर पर ट्रेनिंग सुबह 6 बजे शुरू होती है और शाम 6 बजे तक चलती है. कई बार तो नाइट प्रैक्टिस सुबह 4 बजे तक चलती रहती है. यही वजह है कि चोट उनकी जिंदगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं. एक बार तो फ्रैक्चर की वजह से वो छह महीने तक बिस्तर पर पड़ी रही थीं. इसी ट्रेनिंग की वजह से सीमा ने बायोलॉजिकल रूप से मां नहीं बनने का फैसला किया. राव दंपति ने एक बेटी को गोद ले लिया. इसके बारे में वो कहती हैं, ''मेरी शारीरिक ज़रूरतों को मद्देनज़र रखते हुए मैंने अपनी इच्छा से अपना बायोलॉजिकल बच्चा न करने का निर्णय लिया था. लेकिन मुझे कभी भी इस बात का कोई पछतावा नहीं हुआ.'' डॉ. सीमा राव के संघर्ष और उपलब्धियों को देखते हुए साल 2019 में 52 साल की उम्र में उन्हें भारत सरकार की तरफ से नारी शक्ति सम्मान दिया गया था.
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