विश्व बैंक का यह खुलासा दहेज लेने वालों के मुंह पर तमाचा है
विश्व बैंक के एक शोध में सामने आया कि पिछले कुछ दशकों से भारतीय गांवों में दहेज प्रथा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाया है. यहां की 95 प्रतिशत शादियों में दहेज दिया गया है. हमारे देश में सब बदल गया सिर्फ यही नहीं बदला.
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भारत में (Dowry System) वैसे तो बेटियों और बहुओं को लक्ष्मी का रूप माना जाता है, लेकिन यहां आज भी दहेज प्रथा अभिशाप बनी हुई है. समय कितना भी बदल गया लेकिन दहेज एक ऐसी जड़ है जो खत्म ही नहीं होती. सब बदल गया लेकिन यही एक चीज है जो अबतक नहीं बदली.
विश्व बैंक के एक शोध में सामने आया कि पिछले कुछ दशकों से भारतीय गांवों में दहेज प्रथा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाया है. यहां की 95 प्रतिशत शादियों में दहेज दिया गया है. हमारे देश में सब बदल गया सिर्फ यही नहीं बदला.
95% शादियों में दिया गया दहेज
दहेज लेने और देने के रूप बदल गए लेकिन समाज में आज भी होता वही है. लड़के वाले यही उम्मीद करते हैं कि बहू कुछ लेकर ही आएगी. हमने तो कुछ मांगा नहीं है लेकिन वो अपनी बेटी को तो देंगे ही.
शादी तय करते समय ही लड़के वाले बड़े प्यार से यह बोल देते हैं कि भाई हमें तो कुछ नहीं चाहिए लेकिन आप अपनी बेटी और दामाद को जो देना चाहें दे सकते हैं और बस हमारी इज्ज्त का ख्याल रख लीजिए. इज्जत का ख्याल रखने से मतलब मंहगे तोहफे से होता है.
वैसे भी शादियों में तोहफे के रूप में सोने की चेन और अंगूठी दी जाती है. इसमें नकद, कपड़े और आभूषण शामिल होता है. फर्नीचर, बर्तन और इलेक्ट्रॉनिक जैसे सामान तो दहेज में गिने ही नहीं जाते.
दहेज के खिलाफ भले ही कितने कानून बनाए गए लेकिन हालात नहीं बदल पाए. कई लोग तो मुंह खोलकर बोल देते हैं कि शादी में इतना कुछ तो चाहिए ही. कई बार सबकुछ देने के बागद भी बेटियां अपने ससुराल में सुखी नहीं रहतीं. उन्हें बार-बार ताने सुनने पड़ते हैं.
ऐसा जरूरी नहीं है कि सभी के ससुराल वाले उन्हें जान से मार ही देते हैं लेकिन उनका जीना भी दूभर कर देते हैं. दहेज लोभियों का पेट नहीं खेत होता है जो कभी भरता नहीं है. इस चक्कर में कई बहुओं को जान से हाथ धोना पड़ता है. दहेज ने अपना प्रारूप बदलकर तोहफे का रूप ले लिया है. वो तोहफा जिसे लड़के वाले ही तय करते हैं.
असल में पहले के जमाने में माता-पिता अपनी हैसियत के हिसाब से बेटों को संपत्ति देते थे और लड़कियों को शादी में जरूरत के सामान और कुछ उपहार जिससे उसकी गृहस्थी बस जाए. जिसे लोगों ने दहेज का ऐसा रूप बना दिया कि सरकार ने इसे रोकने के लिए बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार दे दिया. इसके बाद भी देहज लोभियों का लालच खत्म नहीं हुआ.
असल में गलती दहेज देने वाले की है, क्योंकि लेने वाले का पेट तो कभी भरेगा नहीं और वह बेटी को परेशान करते रहेंगे. इस तरह तो आपकी बेटी-बहनें हमेशा घरेलू हिंसा का शिकार होती रहेंगी. चौकाने वाली बात यह है कि दहेज एकदम घिसा-पिटा विषय बनकर बस रह गया है.
आप दहेज के खिलाफ कितनी ही बातें कीजिए, लेकन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती. शायद कोई इस बारें में बात ही नहीं करना चाहता या पढ़ना नहीं चाहता है. यह वो बीमारी का जिसकी दवा तो सभी को पता है लेकिन कोई दवाई खाएगा नहीं. इस तरह तो इस बीमारी का इलाज कभी हो ही नहीं सकता.
दरअसल, विश्व बैंक के शोधकर्ताओं ने 1960 से 2008 के बीच हुई 40,000 ग्रामीण शादियों का आंकलन किया. इस आंकलन में सामने आया कि 1961 में दहेज प्रथा को गैर-कानूनी घोषित करने के बाद भी 95% शादियों में दहेज दिया और लिया गया. दहेज देने के मामले में सवर्ण जातियां सबसे आगे हैं. इसके बाद ओबीसी, एससी और एसटी का नाम आता है.
आंकलन करने वाले ने कीमती तोहफों और शादी में खर्च वाले पैसे के बारे में भी जानकारी हांसिल की. जिसमें पता चला कि दूल्हे वाले के मुकाबले दुल्हन के परिवार वालों को बहुत अधिक खर्चा करना पड़ता है. जहां दूल्हे वाले तोहफे के रूप में सिर्फ 5 हजार खर्च करते हैं वहीं दुल्हन वाले 7 गुना ज्यादा यानी लगभग 32 हजार खर्च करते हैं.
विश्व बैंक रिसर्च के अनुसार, 2008 से अब तक भारत में बहुत कुछ बदल गया है लेकिन दहेज में बदलाव का कोई संकेत नहीं है. यह अध्ययन 17 भारतीय राज्यों पर किया गया है, जहां देश की 96% आबादी निवास करती है. इस शोध के प्रमुख केंद्र ग्रामीण भारत है.
दहेज के मामले में केरल पिछले कुछ सालों में सबसे आगे है. यहां 1970 के दशक से दहेज देने का चलन तेजी से बढ़ा है. वहीं हरियाणा, गुजरात और पंजाब में भी दहेज की दर में काफी बढ़ोतरी हुई है.
ऐसा नहीं कि देहज सिर्फ किसी एक जाति में दिया जाता है. हर धर्म में अलग-अलग रिवाज के नाम पर देहज लिया जाता है. चाहें बेटी हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो या ईसाई. पिछले कुछ सालों में हिंदुओं और मुसलमानों ज्यादा दहेज के मामले में ईसाइयों व सिखों आगे हैं. भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा दहेज के रूप में कैश, गहनें, कपड़े और मूल्यवाद वस्तुएं देता आ रहा है, जिसमें बदलाव की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है.
बेटियां दहेज की खातिर मरती आईं हैं और मरती रहेंगी, लेकिन कुछ बदलने वाला नहीं है. नियम कानून बनते रहेंगे लेकिन देहज को जब तक सम्मान से जोड़ा जाएगा तब तक हालात नहीं बदलने वाले…भले आप फोन पर बेटी की आवाज से उसके कुशल होने का अंदाजा लगाते रहिए.
उसे दहेज के रूप में आपने जो कुछ दिया है वह काफी नहीं है. इसके बदले उसे जो प्रताड़ना का तोहफा मिलेगा शायद ही आपसे कहे, क्योंकि वह स्त्री है जो मायका और ससुराल के बीच में पिसने के लिए जन्म लेती है.
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