अपने जंगलों के प्रति गंभीर होना भारत के लिए वक्त की जरूरत है
World Forest Day 2023: भारतीय जंगल संपूर्ण भारत के लिए जीने के तरीके को परिभाषित करते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से- हाल के वर्षों में जंगलों को जो नुकसान हुआ है उसने आजीविका और अर्थव्यवस्था समेत कई चीजों को प्रभावित किया है. आइये जानें क्यों भारत को अपने जंगलों के प्रति और ज्यादा गंभीर हो जाना चाहिए.
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21 मार्च वो दिन जो समर्पित है जंगलों को. बतौर इंसान जंगल हमारे लिए क्यों जरूरी हैं? इसपर यदि लिखने बैठा जाए तो ग्रन्थ लिख दिया जाए. लेकिन संक्षेप में बस इतना ही कि यदि जंगल न हों तो हम मानव जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकते. चूंकि एक पूरा दिन निर्धारित किया गया है जंगलों के लिए. तो जाहिर सी बात है कि जिसने भी ये दिन बनाया होगा कोई थीम रखी होगी. तो इस बार यानि 2023 में जब पड़ा है तो उसकी थीम रखी गयी है वन और स्वास्थ्य. थीम का सारा फोकस इस बात पर है कि वन-आधारित सेवाएं आखिर कैसे मानव कल्याण पर जोर देती हैं. जलवायु जोखिमों को कम करती हैं और हमारी हवा को शुद्ध करने और कार्बन को अलग करने में सहायक हैं.
होने को तो जंगल मानव सभ्यताओं पर प्रकृति का वरदान हैं. लेकिन मनुष्य बहुत स्वार्थी है. उसे केवल अपना स्वार्थ दिखता है. उसने जंगलों को काटकर जंगल के जानवरों को अपने घर से बेघर कर दियाऔर अपना आशियाना वहां बना लिया. जिक्र अगर भारत का किया जाए तो एक देश के रूप में भारत के जंगल जीने के तरीके को परिभाषित करते हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ये रहा कि हाल के वर्षों में जंगलों के नुकसान ने जीवन, आजीविका और अर्थव्यवस्थाओं को तहस-नहस कर दिया है.
जंगल और वन्यजीव ही हैं जो आने वाले वक़्त में हमें कई बड़ी चुनौतियों से बचा सकते हैं
ये जलवायु परिवर्तन और मानव केंद्रित परिदृश्य योजना का दुष्परिणाम नहीं तो फिर और क्या है कि जिस मार्च में ठीक ठाक गर्मी पड़ती थी उस मार्च में हम बारिश और ओलावृष्टि के साक्षी बन रहे हैं. यदि आज किसानों के ऊपर संकट के बादल मंडरा रहे हैं तो किसी और को दोष देने से पहले मनुष्य को अपनी नीयत कटघरे में खड़ा करना होगा.
क्या है भारत में जंगलों की स्थिति
जैसा की ज्ञात है विकास के नाम पर जिस लिहाज से पेड़ों की कटाई हो रही है भारतीय जंगलों का क्षेत्रफल कम होता जा रहा है. बताते चलें कि 2021 तक, भारत में कुल वन आवरण 80.9 मिलियन हेक्टेयर है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.62 प्रतिशत है. क्षेत्र के अनुसार मध्य प्रदेश में सबसे अधिक वन आवरण है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश का स्थान है. कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के मामले में मिजोरम में सबसे अधिक वन क्षेत्र है. बात जंगलों की चली है तो इस दिशा में काम तभी हो सकता है जब सरकार और जनता दोनों ही गंभीर हो और इस बात को समझे कि हमारे सर्वाइवल के लिए जंगल बहुत जरूरी हैं वरना जिस लिहाज से हिमालय के कई ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं कोई बड़ी बात नहीं कि आने वाले वक़्त में हमारा रहना, खाना पीना और सबसे बड़ी बात जिन्दा रहना ही दूभर हो जाए.
सरकार को जंगलों को टूरिस्ट स्पॉट्स बनाने से रोकना है!
वन संरक्षण को लेकर हमारी सरकारें जो बड़ी बड़ी बातें करती हैं उन्हें कहने बताने की जरूरत नहीं है. हमारे नेता माइक पर आकर पेड़ लगाने की बात तो करते हैं मगर जब बात विकास की आती है. निर्माण की आती है तो आरे जैसे कई जंगल विकास और निर्माण की भेंट चढ़ा दिए जाते हैं और हमारे लिए उनका महत्व फेसबुक के दो चार पोस्ट और ट्विटर के कुछ ट्वीट्स से ज्यादा कुछ नहीं होता.
बहरहाल यदि वाक़ई हमें वनों के और उनके संरक्षण के प्रति गंभीर होना है तो हमें इस बात का ख्याल रखना होगा कि चाहे वो तमिलनाडु और केरल के जंगल हों या फिर उत्तराखंड, मेघालय और नागालैंड के हमें उन्हें टूरिस्ट स्पॉट्स बनने से रोकना होगा. इसके क्या दुष्परिणाम होते हैं यदि उन्हें समझना हो तो हमें बहुत ज्यादा मेहनत की जरूरत नहीं है हम रामगढ़ का रुख कर सकते हैं और देख सकते हैं कि किस तरह इंसानों ने जिम कॉर्बेट का बुरा हाल किया है. ऐसा ही कुछ मिलता जुलता हाल कई दूसरे जंगलों का भी है.
जंगलों की आग जो बन रही है उसकी दुश्मन
अक्सर ही सुनने में आता है कि फलां जंगल में आग लग गयी. अगर हम ऐसी ख़बरों को इग्नोर कर देते हैं तो ये हमारी अज्ञानता से ज्यादा कुछ नहीं है. भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के अनुसार, मार्च में जंगल में आग लगने की 381 सूचनाएं सूचना मिली थी. बताते चलें कि जिन जंगलों में आग के मामले सामने आए उनमें से ज्यादातर जंगल सिमिलिपाल वन्यजीव अभयारण्य, लाडकुई जंगलों और मझगवां क्षेत्र, सरिस्का टाइगर रिजर्व में फैले हुए हैं.
परंपरागत रूप से, जंगल की आग का उपयोग वनों के प्रबंधन के लिए किया जाता रहा है, लेकिन जो बात चिंताजनक है, वह है शुष्क मौसम, अपर्याप्त वर्षा, और उच्च तापमान, आदि के कारण आग की तीव्रता में वृद्धि. जंगल की आग बड़े पैमाने में तेज हो रही है और यह हानिकारक और विनाशकारी दोनों है. बताया जा रहा है कि आगे आने वाले वर्षों में, स्थिति और भी गंभीर होगी क्योंकि जलवायु परिवर्तन सभी सीमाओं को पार कर जाएगा.
सवाल हो सकत है कि आखिर कैसे जंगल आग की गिरफ्त में आते हैं? जवाब है गर्मी. जब गर्मी अपने चरम पर होती है तो जंगल को जलाने के लिए एक छोटी सी चिंगारी बहुत है. जो कि टहनियों की रगड़ से लेकर जंगलों से गुज़रने वाली रेलों के पहियों तक कहीं से भी निकल सकती है. बाकी जंगलों में आग की एक बड़ी वजह इंसान की लापरवाहियां जैसे कैंप फायर, सिगरेट का जलता टुकड़ा, पटाखें और माचिस की तीलियां भी हैं.
भारत अपने जंगलों को पर्यावरण - प्रकृति के लिहाज से बेहतर बना सकता है!
जी हां बिलकुल सही सुना आपने इसके लिए बहुत कुछ करने की जरूरत नहीं है. छोटी छोटी चीजें हैं जिन्हें यदि अमल में लाया जाए तो जंगलों की मदद से हम पर्यावरण और प्रकृति दोनों को बचा सकते हैं. सबसे पहले तो हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की जरूरत है. इसके बाद वो क्षेत्र जहां वन हैं, बेहतर है कि इन्हें इंसानी पहुंच से दूर रखा जाए. ध्यान रहे जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को स्पष्ट कर चुके हैं हमारे सर्वाइवल के लिए अगर किसी चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है तो वो जंगल ही हैं इसलिए हमें अपने जीवन में यदि किसी चीज की महत्ता को समझना है तो वो वन्य क्षेत्र ही हैं.
कुल मिलाकर हमें इस बात को भी गांठ बांध लेना चाहिए कि सिर्फ एक दिन बना देने से वनों का संरक्षण नहीं होने वाला. इसके लिए जिस तरह सरकार कमर कस रही है उसी तरह जनता को भी अपने आपको तैयार करना होगा. बाकी जिस तरह जलवायु परिवर्तन हो रहा है वर्तमान सामाजिक परिदृश्य में जंगलों को बचाना हमारी जरूरत भी है, और मजबूरी भी.
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