याकूब की फांसी से भी नहीं मिटेगी खून की प्यास
मुंबई धमाकों का शिकार हुए लोगों के 257 परिवारों को अगर छोड़ दें, तो भी पूरे देश में एक आक्रोश का माहौल था और इसलिए याकूब के बचने की संभावना कम थी.
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पिछले कुछ दिनों में मुंबई बम धमाके के दोषी याकूब मेमन को फांसी से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दी गई हर याचिका पर सबकी नजर रही. याकूब के लिए दया की याचिका करने वालों में कुछ सांसदों से लेकर कई पत्रकार भी शामिल थे. मुंबई धमाकों का शिकार हुए लोगों के 257 परिवारों को अगर छोड़ दें, तो भी पूरे देश में एक आक्रोश का माहौल था और इसलिए याकूब के बचने की संभावना कम थी.
कठोर फैसला
शायद, याकूब को फांसी देने का फैसला ठीक रहा. भारत धीरे-धीरे प्रगति के रास्ते पर है. हमारी इकोनॉमी बढ़ रही है, हम अमीर, शक्तिशाली हो रहे हैं, और शायद यहां बदला लेने की प्रवृति भी बढ़ रही है. दिलचस्प बात ये है कि हमारा शहरी मध्यम वर्गीय तबका ज्यादा आक्रामक है और आंख से आंख मिलाकर बात करना चाहता है. जब आप गरीब हैं और हर छोटी-बड़ी जरूरतों के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं फिर शायद आप मौत की तरफ बढ़ रहे एक शख्स और उससे जुड़े फैसलों और सियासत में दिलचस्पी नहीं दिखाएंगे.
यही वजह है कि जब जुलाई की शुरुआत में मौत की सजा खत्म करने संबंधी विचार पर मशवरा करने के लिए लॉ कमीशन की बैठक बुलाई गई, तो उसमें संसद के करीब 900 सदस्यों में से केवल छह सदस्य हिस्सा लेने आए. यह छह सदस्य हैं- AIADMK की कनिमोझी, कांग्रेस के मनीष तिवारी और शशि थरूर, बीजेपी की ओर से वरुण गांधी, एनसीपी के माजिद मेमन और आम आदमी पार्टी के आशीष खेतान.
यह नहीं पता कि अगले महीने जब लॉ कमीशन इस बारे में जब अपनी रिपोर्ट पेश करेगा तो उसमें क्या होगा. यह कहना सही होगा कि उस बैठक में हिस्सा लेने वालों में सुप्रीम कोर्ट के वकील दुष्यंत दवे (इनका जस्टिस अनिल दवे से कोई संबंध नहीं है जिन्होंने कुछ दिन पहले मेमन की क्यूरेटिव पेटिशन खारिज की) को छोड़ ज्यादातर मौत की सजा देने के खिलाफ नजर आए. उस बैठक में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद पंजाब में शुरू हुए विद्रोह से निपटने में अहम भूमिका निभाने वाले जुलियो रिबेरो जैसे पूर्व पुलिस अधिकारी भी शामिल हुए. साथ ही पहले मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने भी इसमें हिस्सा लिया.
यहां तक कि अगर लॉ कमीशन को लगता है कि फांसी की सजा केवल गलियारों में बहस का मुद्दा बन कर रह गया है लेकिन इसमें कोई बाधा नहीं है, अगर इसमें सरकार का भरोसा कभी नहीं रहा तो भारत में मौत की सजा को खत्म करना चाहिए. फिर भी याकूब के मामले में अब काफी देर हो चुकी है. हालांकि फांसी से जुड़े कई और मामले लंबित हैं. इनमें देवेंद्र सिंह भुल्लर और बलवंत सिंह राजोना का नाम भी शामिल हैं जिनकी दया याचिका खारिज की जा चुकी है. दोनों 1993 में कांग्रेस के नेता मनिंदर बिट्टा की हत्या करने के प्रयास के दोषी हैं. दोनों पिछले कई सालों से जेल में हैं. भुल्लर तो मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिक से ग्रसित है और दिल्ली के किसी अस्पताल में उसे रखे जाने की जरूरत है.
न्याय
यह याकूब मेमन और अफजल गुरु के मामलों की तुलना करने का समय नहीं है. यह कहना ज्यादा सही होगा कि दोनों ही मौकों पर शायद न्याय पूरा नहीं मिला. अफजल गुरु के लिए आखिरी आस के तौर पर मौजूद क्यूरेटिव पेटिशन को दाखिल करने से भी इंकार कर दिया गया था. जम्मू और कश्मीर के लोगों के लिए यह इस बात की एक और वजह बन गया कि उनके राज्य के लोगों के लिए भारत में दूसरा कानून है.
जहां तक याकूब के मामले की बात है, तो उज्जवल निकम भी इस बात का जवाब दे सके कि आखिर क्यों याकूब 1994 में अपनी गर्भवती पत्नी और सभी सामानों के साथ पाकिस्तान से लौटा. उसने सीबीआई को पूछताछ में बताया था कि पाकिस्तान में उसे घुटन महसूस होती थी. उसके भाई टाइगर मेमन ने तब याकूब को कहा था अगर वह महात्मा बनना चाहेगा तो भारत लौटने के लिए तैयार है.
जाहिर तौर पर मौत की सजा को उम्र कैद में बदलना कोई गंभीर विकल्प नहीं था. लेकिन बीजेपी की नरेंद्र मोदी सरकार पिछले साल इस वादे के साथ सत्ता में आई थी कि वे निर्णायक फैसला लेंगे और सुलह-समझौते की राजनीति में नहीं पड़ेंगे. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई तो घर से ही शुरू करनी चाहिए इसलिए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पिछले हफ्तों में क्षमा देने की दलील का जोरदार विरोध किया.
संघर्ष
दरअसल, मोदी के पाकिस्तान से करीबी रिश्ते बनाने की कोशिश के बाद उनके ही पार्टी के जो लोग और आरएसएस जिस प्रकार चिंतित थे, उनकी आशंकाओं को याकूब की फांसी ने जरूर दूर कर दिया होगा. जहां तक कांग्रेस की बात है, तो पार्टी जितना कम बोले उतना ही अच्छा है. पार्टी की प्रमुख सोनिया गांधी ने अपने पति के हत्यारों की माफी की बात कह कर अपना मजबूत पक्ष रखा था. लेकिन यह रहस्यपूर्ण है मेमन के मसले पर कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी के खिलाफ नैतिकता के आधार पर कोई स्टैंड क्यू नहीं लिया. कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने दया याचिका के खारिज होने को सही बताया था.
केवल कॉम्यूनिस्ट पार्टियों ने याकूब को बचाने के लिए ठोस कदम उठाते हुए राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी. इसे कई जजों, वरिष्ठ वकील और सिविल सोसाइटी के अन्य लोगों का साथ मिला. इन लोगों ने याकूब को फांसी से बचाने की एक पहल जरूर की. लेकिन सच यह है कि याकूब की फांसी भारत को बदलने का काम करेगी. कुछ लोगों के लिए यह एक साहसिक कदम होगा और नई शुरुआत होगी. जबकि वहीं, मेरे जैसे लोगों की आत्मा के लिए यह एक हार है.
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