कुछ लोगों के लिए चवन्नी योग भी काफी है
योग एक ऐसा खांटी भारतीय औजार है जो भारत के प्रति पश्चिमी देशों की ‘साधुओं, सपेरों, नटों का देश’ वाली नजर पर नई सोच का चश्मा लगा सकता है.
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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस फौरी विवाद और पीठ थपथपाई से कहीं आगे की चीज साबित होगा. क्योंकि यह एक ऐसा खांटी भारतीय औजार है जो भारत के प्रति पश्चिमी देशों की ‘साधुओं, सपेरों, नटों का देश’ वाली नजर पर नई सोच का चश्मा लगा सकता है. बेहतर होगा कि भारतीय फिल्मों में योग के दृश्य ठीक उसी तरह डाल दिए जाएं जैसे चीन वाले हॉलीवुड की फिल्मों में ध्यान करते हुए हीरो का दृश्य डालते हैं. इस तरह के चंद दृश्य चीनी हीरो को हॉलीवुड के हीरो पर बढ़त दिला देते हैं और गले-गले तक बाजारवाद में डूबे चीन की गहरी आध्यात्मिक छवि उकेर देते हैं. हम तो वैसे भी लाख उदारीकरण के बावजूद अब तक फकीरी में ही जी रहे हैं.
दूसरी चीज यह हो सकती है कि बाकी देशों में योग प्रशिक्षक या इससे जुड़ी चीजों के लिए भारतीयों की मांग बढ़ जाए. हो सकता है सरकार इस दिशा में ठोस कदम भी उठाए. जिस तरह से योग दिवस के मौके पर इंटरनेट मीडिया में ग्लैमरस तस्वीरें भी दिखी हैं, उससे साफ दिख रहा है कि योग क्रांति का एक लक्ष्य संपन्न तबके की लाइफ स्टाइल में खास जगह बनाना है. योग दिवस को लेकर जो भी आलोचना हो सकती है, वह भारत में ही हो सकती है. और होनी भी चाहिए. क्योंकि बाहर की दुनिया में तो हम जिसे योग कहेंगे, उसे ही योग मान लिया जाएगा. लेकिन योगियों के देश में दावा करके निकल जाना आसान नहीं है. मसलन योग के अलग-अलग नाम और प्रकार सनातन धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में मिलते हैं. फिर पतंजलि का योग (योग सूत्र) उसके अलावा हठ योग और क्रिया योग जैसे योग के कई प्रकार भारत में मौजूद हैं.
योग दिवस पर जिस योग के इर्द-गिर्द चर्चा हो रही है, वह दरअसल पतंजलि के अष्टांग योग के आसपास ही है. अष्टांग योग को भी देखें तो इसके आठ हिस्से हैं- यम, नियम, प्रत्याहार, आसन, प्राणायम, ध्यान, धारणा और समाधि. इन आठ चरण से गुजर कर मोक्ष तक पहुंचने की बात है. जो योग प्रचारित किया जा रहा है- वह मुख्य रूप से आसन और प्राणायम तक सीमित दिख रहा है. यानी पॉपुलर योग पतंजलि के योग के चवन्नी हिस्से से ही ताल्लुक रख रहा है. आसन और प्राणायम का भी विपुल संसार है- लेकिन पॉपुलर योग चवन्नी योग को भी व्यायाम के उन्नत वर्जन की तरह लेना चाहता है.
लेकिन क्या ही मजे की बात है कि कई प्रकार के योग में से एक प्रकार के योग का नाखून बराबर हिस्सा भी पूरी दुनिया को भारत के प्रति रोमांचित करने के लिए काफी है. अगर बाकी दुनिया को योग के विपुल संसार में थोड़ा और भीतर ले जाया जाए तो निश्चित तौर पर भारत को देखने की बाहरी नजर बदलेगी. बेहतर होगा कि योग के सुपर मॉडल बनकर उभरे बाबा रामदेव और योग विधा के संरक्षक बनकर उभरना चाह रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाहरी दुनिया को सतही योग के पार ले जाने की कोशिश करें. क्योंकि इस बात से महर्षि पतंजलि को बड़ा कष्ट होगा कि योग कब्ज मिटाने और सिर दर्द कम करने के एक भारतीय नुस्खे के तौर पर दुनिया में जाना जाए.
अब समय आ गया है कि ध्यान, धारणा और समाधि के बारे में भी योगाचार्य प्रयास करें. इसकी सबसे ज्यादा जरूरत योग के सेल्समैनों को पडऩे वाली है. वैसे भी आध्यात्मिक विषयों में बहुत शोर-शराबा और उत्सव अच्छा नहीं माना जाता और अहिंसा योग का अभिन्न अंग है. हिंदू धर्म में भी कर्मकांड और अध्यात्म को हमेशा अलग रखा गया है. योग दिवस ने उत्सव और कर्मकांड वाली जिम्मेदारी पूरी कर दी है, लेकिन असली काम अध्यात्म का है. अब उस तरफ बढऩा होगा. इस काम में नारेबाजी की गुंजाइश नहीं है, इसलिए राजनेताओं को इसमें बहुत दिलचस्पी शायद ही आए. तो जाहिर है जिन लोगों की जिज्ञासा आत्मोन्नति में है, वही लोग योग की दुनिया में प्रवेश करें. हां, जिन लोगों का लक्ष्य आत्मोन्नति के बजाय योग का इस्तेमाल एंटीबायोटिक की तरह करना है, उनके लिए चवन्नी योग का फैशन काफी है.
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