सिर्फ रोहिंग्या को ही रिफ्यूजी समझने वालों को भारत की स्थिति जान लेनी चाहिए..
भारत में सिर्फ 40 हज़ार रोहिंग्या नहीं बल्कि 3 लाख से ज्यादा रिफ्यूजी रहते हैं. उनकी दशा और दुर्दशा भारत की सिलेक्टिव उदारता का हिस्सा ही कहलाएगी.
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आज वर्ल्ड रिफ्यूजी डे है. 20 जून को दुनिया भर के लाखों लोगों के दर्द को समझने के लिए ये दिन मनाया जाता है. दुनिया के करीब 6.5 करोड़ लोग अपने घर से बेघर हैं और किसी और देश में रिफ्यूजी बनने को मजबूर हैं. हर दो सेकंड में एक व्यक्ति और हर दिन 44 हजार 500 लोग अपने घर से बेघर हो जाते हैं. कहीं हम सीरिया की बात करते हैं, कहीं ईराक की बात करते हैं, लोग उनके लिए आंसू तो बहाते हैं, लेकिन क्या भारत की स्थिति किसी को पता है? क्या कोई ये जानता है कि आखिर भारत में कितने रिफ्यूजी मौजूद हैं और वो किस हद तक परेशान हैं?
भारत हर मौजूदा वक्त में लगभग 2 लाख रिफ्यूजियों का घर रहता है. ये आंकड़ा 2014 की UN Refugee Agency (UNHCR) की रिपोर्ट के मुताबिक है.
ये संख्या अनुमानित अब 3 लाख के पार पहुंच चुकी है. इसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका, तिब्बत, मयान्मार आदि के रिफ्यूजी शामिल हैं. भारत में 1959 से तिब्बत के शरणार्थी, 1971 से बंगलादेशी, चकमास से 1963 से, श्रीलंका से 1983, 1989, 1995 से और अफ्गानिस्तान और म्यानमार से 1980 के दशक से शरणार्थियों को अपने देश में आने दिया है.
खास बात ये है कि पहली बार से लेकर अब तक भारत में रिफ्यूजी को लेकर कोई खास पॉलिसी नहीं रही है. अब जाकर कहीं भारत में नया बिल बना है जो रिफ्यूजी को लेकर कुछ-कुछ नियम बताता है. हालांकि, जो नया बिल आया है उसमें इंडियन सिटिजनशिप एक्ट 1955 में बदलाव की बात की गई है. ये सिटीजनशिप बिल 2016 के मुताबिक होंगे.
इसे एक साहसिक कदम कहा जा सकता है कि भारत की रिफ्यूजी पॉलिसी में बदलाव फास्ट ट्रैक न्यूट्रलाइजेशन और सिटीजनशिप देने के एवज में हो रहे हैं. इसमें बौध, इसाई, हिंदू, जैन, पारसी और सिख समुदाय के रिफ्यूजी जो भारत में अल्पसंख्यक धर्मों से आते हैं उन्हें भारतीय नागरिकता देना है. ये सभी रिफ्यूजी अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश आदि से आते हैं.
भारत में ऐसे ही 9200 अफगानी रिफ्यूजी हैं जिनमें से 8500 हिंदू हैं, 400 पाकिस्तानी हिंदू हैं. ऐसे ही लोगों को भारतीय शहरों में बसाने का काम चल रहा है. भारत में चकमास बौध और हैजोंग हिंदू (बंदलादेश) को भी रिफ्यूजी स्टेटस मिला हुआ है.
यहां एक बात देखने वाली है कि मुस्लिम समुदाय के शरणार्थियों के लिए पॉलिसी थोड़ी सिलेक्टिव ही है.
सिर्फ रोहिंग्या ही नहीं और भी हैं...
भारत में अगर रिफ्यूजियों की ही बात करें तो अहमदिया मुस्लिम (जिन्हें पाकिस्तान और बंगलादेश से निकाला गया है), ये 19वीं सदी के पैगंबर मिर्जा गुलाम अहमद को मानते हैं. हज़ारा मुस्लिम जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शिया हैं. तमिल मुस्लिम जिन्हें श्रीलंका से बाहर किया गया है और रोहिंग्या मुस्लिम जो म्यानमार से आए हैं ये सभी भारत में शर्णार्थियों की तरह रह रहे हैं.
इनके लिए भारत में मामला सिलेक्टिव हो जाता है. भारत हमेशा से एक उदार देश कहा गया है लेकिन यहां सिलेक्टिव उदारता भी दिखती है.
सिलेक्टिव गुस्से का आलम देखिए कि अमेरिका में जहां गैरकानूनी रूप से आए रिफ्यूजी या इमिग्रेंट आप जो भी कहना चाहें उन्हें बच्चों से अलग किया जा रहा है. ट्रंप उन्हें वापस भेजता है तो भारत में सुगबुकाहट होती है, सीरिया में बच्चों के साथ खराब बर्ताव होता है तो सुगबुगाहट होती है, लेकिन रोहिंग्या के बच्चों के साथ या भारत में अन्य रिफ्यूजी बच्चों के साथ अगर कुछ होता है तो कोई सुगबुगाहट नहीं होती क्योंकि हमारे लिए तो ये लोग हमारे देश में एक बोझ हैं.
ये सभी रिफ्यूजी भारत के कुछ कैम्प में, कुछ किसी शहर में घर लेकर, कई राजधानी दिल्ली में किराए के मकानों में रहते हैं. ये वो रिफ्यूजी हैं जो भारत के नक्शे में कहीं न कहीं दिखते हैं. और इस अखंड भारत का हिस्सा बने हुए हैं. ये वो रिफ्यूजी हैं जिनमें से कई के बारे में हम जानते भी नहीं कि वो गैरकानूनी ढंग से हमारे देश में रह रहे हैं.
अमेरिका की कट्टर रिफ्यूजी पॉलिसी देखी जाती है और हमारा दिल पसीज उठता है कि वो ट्रंप कितना क्रूर है, लेकिन हमारे देश में रिफ्यूजियों का क्या हाल है इसकी परख तो हमें है ही नहीं. 40 हज़ार रोहिंग्या को वापस भेजने की बात कर रहे हैं, उनके बच्चों का क्या? इस उदार देश के सिलेक्टिव रिफ्यूजी स्टेटस पर आप क्या कहेंगे?
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