तालिबान से विवाद Afghanistan Pakistan ODI Series को स्थगित करेगा, एक वजह भारत भी है!
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे का असर क्रिकेट पर भी पड़ेगा. ऐसे कयास थे मगर अब जबकि सितम्बर में श्रीलंका में होने जा रही Afganistan-Pakistan ODI Series स्थगित हो गई थी यकीन हो गया है कि वो कयास सही थे.
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राष्ट्रपति अशरफ गनी को 'ठिकाने' लगाने के बाद जिस तरह तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा किया, पूरी दुनिया उसकी साक्षी बनी है. चूंकि मुल्क का निजाम तालिबान के हाथों में है इसलिए तमाम तरह की बातें हो रही हैं और माना यही जा रहा है कि जिस हद तक तालिबान की नस नस में कट्टरता हावी है इसका खामियाजा एक मुल्क के रूप में अफगानिस्तान को भुगतना होगा और हर बीतते दिन के साथ स्थिति बद से बदतर होगी.
अगर अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत आती है तो कई चीजों की तरह खेल का मैदान भी प्रभावित होगा ये कयास तो बहुत पहले ही लगा लिया गया था लेकिन सब कुछ इतना जल्दी होगा इसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा हो. जी हां हुकूमत ए अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे का असर तमाम चीजों की तरह क्रिकेट पर भी हुआ है. श्रीलंका में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मध्य खेली जाने वाली तीन मैचों की वनडे सीरीज अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई है. ये फैसला दोनों देशों के क्रिकेट बोर्ड के बीच चर्चा के बाद किया गया है.
ये तो बहुत पहले ही मान लिया गया था कि अफगानिस्तान तालिबान के झगड़े में क्रिकेट पर भी आंच आएगी
सीरीज क्यों पोस्टपोन हुई इसके पीछे जो तर्क दिए जा रहे हैं वो खासे दिलचस्प हैं. माना जा रहा है कि अफगानिस्तानी खिलाड़ियों को श्रीलंका पहुंचने में तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था. अफगान खिलाड़ियों को पहले सड़क मार्ग से पाकिस्तान फिर उसके बाद दुबई होते हुए श्रीलंका आना था. कहने बताने के लिए ये तर्क बात छुपाने के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है मगर क्या वाकई ऐसा है. इस प्रश्न का सीधा जवाब है नहीं.
माना जा रहा है कि मुल्क में कब्जे के बाद तालिबान ने तमाम चीजों की तरह क्रिकेट में भी हस्तक्षेप किया है. भविष्य में तालिबान अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड में कुछ अहम बदलाव कर सकता है. वहीं बात अगर अफगानिस्तान के खिलाड़ियों की हो तो तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानी खिलाड़ियों की मनोस्थिति भी ठीक नहीं है जिसका असर उनके खेल में देखने को मिल रहा है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच मैच 1, 3 और 5 सिंतबर को होना था. मगर अब जबकि दोनों देशों के बीच होने वाला खेल स्थगित हो गया है तमाम तरह की बहस को पंख मिल गए हैं.
खबर की पुष्टि ख़ुद पीसीबी ने की है. फैसले के मद्देनजर पीसीबी ने ट्वीट किया है. ट्वीट में इस बात का जिक्र है कि पीसीबी ने एसीबी के दोनों देशों के बीच अगले महीने होने वाली तीन मैचों की वनडे सीरीज की तारीखों को आगे बढ़ाने के अनुरोध को स्वीकार कर लिया है. ये निर्णय अफगानिस्तानी खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य, काबुल में हवाई यात्रा की स्थिति, प्रसारण सुविधाओं की कमी और श्रीलंका में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए किया गया है.
कहा जा रहा है कि दोनों बोर्ड साल 2022 में इस सीरीज को आयोजित करने का प्रयास करेंगे. इस मामले में अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड के सीईओ हामिद शेरवारी ने भी अपना पक्ष रखा है. उन्होंने भी इसी बात को बल दिया है कि खिलाड़ी अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से बहुत स्ट्रेस में हैं जिसने उनके गेम को प्रभावित किया है.
अफगानिस्तान के खिलाड़ी क्यों तनाव में हैं? कारण सिर्फ तालिबान नहीं है. इसके पीछे की एक बड़ी वजह भारत-पाकिस्तान रिलेशनशिप भी है. सवाल होगा कैसे अफगानिस्तान - पाकिस्तान के बीच क्रिकेट के मसले में भारत ने एंट्री ली है? जवाब ये है कि जिस वक़्त अफगानिस्तान में मुल्क और तालिबान के बीच लड़ाई छिड़ी थी उस वक़्त तालिबान के खिलाड़ी भारत में ही अपनी प्रैक्टिस कर रहे थे. तब ये मदद किसी और ने नहीं बल्कि खुद बीसीसीआई ने की थी.
ये बीसीसीआई ही थी जिसने न केवल अफगानिस्तान को ट्रेनिंग और प्रैक्टिस के लिए ग्राउंड दिया बल्कि उनका क्रिकेट तरक्की करे इसलिए उनके लिए पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलप किया. क्रिकेट के मद्देनजर जिस लिहाज से भारत और बीसीसीआई ने अफगानिस्तान और उसके खिलाड़ियों की मदद की कहना गलत नहीं है कि बीसीसीआई ने अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड को अपने मेंबर की तरह ट्रीट किया.
अब ख़ुद सोचिये जो अफगानिस्तान क्रिकेट के तहत भारत के एहसानों तले दबा हो. क्या कभी भी ये बात पाकिस्तान को अच्छी लगेगी? इस सवाल का जवाब क्या है पूरी दुनिया जानती है. एकदम साफ और सीधी सी बात है. कश्मीर के कारणवश भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के जैसे रिश्ते हैं उनसे अफगानी प्लेयर भी भली भांति वाकिफ हैं.
जैसे हालात हैं. ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि अफगानी खिलाड़ियों के ऊपर दो धारी तलवार लटक रही है. बहरहाल अब क्योंकि बार बार अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड के तहत तालिबान का जिक्र हो रहा है. तो यदि अफगानिस्तान में क्रिकेट और तालिबान पर गौर किया जाए और पूरी गहनता के साथ उसका अवलोकन किया जाए. तो मिलता है कि आने वाले वक़्त में तालिबान का यही प्रयास रहेगा कि मुल्क में कोई क्रिकेट का नामलेवा न रहे.
हम फिर अपने द्वारा कही बात को दोहराना चाहेंगे कि एक कट्टरपंथी संगठन होने के कारण कभी तालिबान ने क्रिकेट को गंभीरता से नहीं लिया. अब क्योंकि क्रिकेट दिलों को जोड़ने वाला खेल है तो लाजमी है कि ये बात तालिबान को कहां ही अच्छी लगेगी कि कोई उसके एजेंडे पर हमला करे और ये प्रहार सीधा हो.
अंत में हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि आतंकवाद और कट्टरपंथ के साए में पनपते अफगानिस्तान में क्रिकेट की बदौलत उम्मीद की एक किरण हमें दिखाई दी थी. अब क्योंकि मुल्क कानिजाम तालिबान संभाल रहा है. तो जाहिर है कि जल्द ही अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड पर तालिबान का कब्जा होगा.
भविष्य में तालिबान का क्रिकेट कैसा होगा इसपर अभी कोई बात करना जल्दबाजी है. लेकिन इतना जरूर है कि तालिबान के साए में अफगानिस्तान में क्रिकेट जेंटलमैन गेम किसी भी सूरत में नहीं होगा। तालिबान कि कोशिश यही रहेगी कि कैसे भी करके इसका चौपटानास किया जाए और अफगानिस्तान-पाकिस्तान वन डे इंटरनेशनल सीरीज रद्द होना इसकी बानगी भर है.
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