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Updated: 09 अगस्त, 2015 04:38 PM
विनीत कुमार
विनीत कुमार
  @vineet.dubey.98
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करीब 12 साल पहले माइकल क्लार्क जब ऑस्ट्रेलियाई टीम में आए तब यह टीम विश्व क्रिकेट के सबसे ऊंचे ओहदे पर विराजमान थी. आसपास कोई नहीं, हर मैच में जीत की पक्की गारंटी. लगातार जीतने की आदत को देखते हुए दूसरे देशों के कई क्रिकेट प्रशंसक मजाक में ही सही, यह तक कहने लगे थे कि ऑस्ट्रेलियाई टीम पर ही एक-दो साल का बैन लगा देना चाहिए. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ कोई भी टीम खेल रही हो, कुछ अपवादों को छोड़ नतीजा एक जैसा ही रहता.

ऑस्ट्रेलिया की एशेज में हार और क्लार्क की विदाई

हम और आप खेलों का कितना भी विश्लेषण कर लें. लेकिन सच यही है कि यहां भारी अनिश्चितताओं की संभावना हमेशा मौजूद रहती है. किसे पता था कि इसी साल विश्व कप में अपनी भद्द पिटाने वाली इंग्लिश टीम विश्व चैंपियन को ऐसे धोएगी. हो सकता है कि किसी अगले सीरीज में या फिर अगले एशेज में ही ऑस्ट्रेलिया धमाकेदार वापसी करे. लेकिन इतना तो तय है कि ऑस्ट्रेलिया अपने 'गेल्डन डेज' को पीछे छोड़ चुका है. ऐसे में क्लार्क के संन्यास की घोषणा और फिर कंगारू टीम में बड़े बदलाव की अटकलबाजी ऑस्ट्रेलिया में क्रिकेट को कहां ले जाती है, यह देखना होगा.

एशेज सीरीज में पहले भी ऐसे उलटफेर होते रहे हैं. इंग्लैंड पहले भी अपने सबसे खराब दिनों में ऑस्ट्रेलिया को पटखनी देता रहा है. लेकिन बड़ी बात ऑस्ट्रेलियाई टीम में बदलाव को लेकर आ रही खबरें हैं. शेन वाटसन सहित तीन से चार ऐसे खिलाड़ी हो सकते हैं जिनके लिए ऑस्ट्रेलियाई टीम के दरवाजे बंद हो सकते हैं. क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया (सीए) का इतिहास रहा है कि उसने पहले भी अहम मौकों पर कड़े कदम उठाए हैं. फिर वह चाहे स्टीव वॉ या रिकी पोंटिंग जैसे खिलाड़ियों की ही विदाई की ही बात क्यों न हो.

क्लार्क हैं ऑस्ट्रेलिया के राहुल द्रविड

जब क्लार्क की टीम में एंट्री हुई तब एक-दो नहीं बल्कि पोंटिंग, शेन वार्न, ग्लेन मैकग्राथ, एडम गिलक्रिस्ट, मैथ्यू हेडन, जस्टिन लैंगर, ब्रेट ली, जेसन गिलेस्पी जैसे आठ-आठ दिग्गज मौजूद थे. ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट के लिए यह गोल्डन इरा की तरह है जब टीम ने लगातार तीन-तीन विश्व कप अपने नाम किए. इन सबके बीच अपनी जगह बनाना और फिर इतिहास रचते चले जाना, यह आसान बात नहीं है. क्लार्क ने ऐसा करने में सफल रहे. पता नहीं और लोग इस बात से सहमत होंगे या नहीं, लेकिन मैं उन्हें ऑस्ट्रेलिया का राहुल द्रविड मानता हूं.

दरअसल, विश्व के महानतम खिलाड़ियों में अपनी जगह बना लेने की क्लार्क की उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि जब वह इंटरनेशनल क्रिकेट में आए, तब टेस्ट क्रिकेट की लोकप्रियता में तेजी से कमी आने की शुरुआत हो चुकी थी. क्लार्क टेस्ट क्रिकेट पसंद करने वाले बल्लेबाज हैं और इसलिए इसमें ज्यादा सफल भी रहे. 114 टेस्ट मैचों में 28 शतक इसकी गवाही देते हैं. क्लार्क ने 245 वनडे मैचों में केवल आठ सेंचुरी भले ही लगाए लेकिन 58 हाफ-सेंचुरी यहां भी उनकी उपयोगिता साबित कर देते हैं. जरूरत पड़ने पर क्लार्क कई मौकों पर ऑलराउंडर की भी भूमिका निभाते नजर आए.

बहरहाल, एक खिलाड़ी के तौर पर क्लार्क की सबसे अच्छी बात यह रही कि वह अपनी सीमाओं को पहचानते हैं. शायद, इसलिए उन्होंने वर्ष-2010 के बाद कभी टी-20 मैच नहीं खेला. आज के दौर के फटाफट क्रिकेट से दूर रहते हुए भी क्लार्क प्रशंसकों के दिल में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे. शायद, यही खास बात उन्हें और खिलाड़ियों से अलग बनाती है.

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लेखक

विनीत कुमार विनीत कुमार @vineet.dubey.98

लेखक आईचौक.इन में सीनियर सब एडिटर हैं.

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