ब्रिसबेन टेस्ट में टीम इंडिया के हीरो बने 5 खिलाड़ियों का प्रेरणादायक जीवन संघर्ष
चोटिल खिलाड़ियों की समस्या से लगातार जूझ रही टीम इंडिया शानदार प्रदर्शन करते हुए आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप में भी नंबर एक पर पहुंच गई है. और इस टीम का हिस्सा रहे पांच युवा खिलाड़ियों के जीवन संघर्ष की कहानी अब प्रेरणा की मिसाल है.
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ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अजेय समझे जाने ब्रिसबेन के गाबा मैदान पर भारतीय क्रिकेट टीम की धमाकेदार जीत का डंका क्रिकेटप्रेमी दुनिया में बज रहा है. इस जीत के साथ भारत ने टेस्ट सीरीज भी अपने नाम कर ली. लेकिन इस जीत में सबसे काबिले गौर रहा युवा खिलाड़ियों का प्रदर्शन. वो खिलाड़ी जिनके जीवन संघर्ष का फल उन्हें एक मैच से ही मिल गया. ये युवा खिलाड़ी जिस बैकग्राउंड से संघर्ष करते हुए आज देश के हीरो बने, उनकी कहानी जानना प्रेरणा दायक होगा. जो अब सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रही है.
रोचक होगा यह जानना कि जिन युवा खिलाड़ियों ने भारतीय टेस्ट का नजरिया बदला है, उन्होंने अपनी निजी जिंदगी को भी बदलकर रख देने की हैरान कर देने वाली इबारत लिखी है. गाबा टेस्ट में अहम भूमिका निभाने वाले पांच क्रिकेटरों की असली जिंदगी में भी कई रोमांचक मोड़ आए हैं.
गाबा में टेस्ट पदार्पण करने वाले तेज गेंदबाज टी नटराजन के पिता एक हथकरघा कारीगर हैं. पैसों की तंगी ऐसी थी कि क्रिकेट गियर्स और जूतों किसी लग्जरी की तरह थे. कई सालों तक नटराजन को नये जूते लेने से पहले सौ बार सोचना पड़ता था. नटराजन को भारतीय टीम में खेलता देख उनकी मां के आंसू निकल आए थे. जब वे UAE में आईपीएल खेल रहे थे, उसी दौरान उनकी पत्नी ने भारत में बेटे को जन्म दिया. जिसे नटराजन ने अभी तक नहीं देखा है. क्योंकि, वह बायो बबल के चलते संयुक्त अरब अमीरात से सीधे ऑस्ट्रेलिया चले गए थे.
शार्दुल ठाकुर का मोटापे से लंबा संघर्ष रहा है, जो उन्होंने पहले मुंबई और फिर आईपीएल में खेलने के लिए किया. क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर ने शार्दुल ठाकुर को वजन कम करने को कहा था, ताकि उनका क्रिकेट करियर संवर सके.
तेज गेंदबाज मोहम्मज सिराज के पिता एक रिक्शा चालक थे. ऑस्ट्रेलियाई दौरे के बीच ही सिराज के पिता का देहांत हो गया था. टीम इंडिया के गेंदबाजी आक्रमण की अहम भूमिका में होने के कारण वे अपने पिता को सुपुर्द-ए-खाक करने के लिए भारत नहीं लौट सके.
वाशिंगटन सुंदर के पिता- सुंदर, एक प्रतिभाशाली क्रिकेटर थे. उनके पिता क्रिकेट के लिए बहुत जूनूनी थे. इसे देखते हुए उनके एक संपन्न पड़ोसी ने हमेशा उनको स्पांसर किया. उनका नाम वाशिंगटन था. अपने उस मददगार पड़ोसी की मौत के बाद श्रद्धांजलि के तौर पर उनके पिता ने अपने बेटे का नाम वाशिंगटन सुंदर रखा था.
नवदीप सैनी के पिता एक सरकारी ड्राइवर थे और अपने बेटे के लिए क्रिकेट की महंगी फीस नहीं दे सकते थे. इस कारण से अपने सपनों को पूरा करने के लिए सैनी ने टेनिस बॉल के प्रदर्शनी मैच खेले, जहां उन्हें 300 रुपये प्रति मैच मिलता था.
इन सभी खिलाड़ियों ने मैच में एक साथ डेब्यू किया और मैच का रुख टीम इंडिया की तरफ मोड़ने में बड़ी भूमिका निभाई. अपने संघर्ष के दिनों में उन्होंने इसी एक क्षण का इंतजार किया होगा. उनकी असफलताएं, संघर्ष, संदेह और असुरक्षा की भावना इस एक मैच से हमेशा के लिए खत्म हो गई. इन्हें जब मौका दिया गया, तो इन खिलाड़ियों ने अपने अंदर की इस आग को बाहर निकाला और ऑस्ट्रेलियाई टीम पर बरस पड़े.
तो क्या कहेंगे आप?
जिंदगी इम्तिहान तो लेती है, लेकिन यदि संघर्ष के दिनों में आपने आत्मविश्वास कायम रखा और मेहनत करते रहे तो नीयती आपकी झोली में ब्रिसबेन टेस्ट जैसा तोहफा डाल देती है. चोटिल खिलाड़ियों की समस्या से लगातार जूझ रही टीम इंडिया शानदार प्रदर्शन करते हुए आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप में भी नंबर एक पर पहुंच गई है. विराट कोहली की कप्तानी में भारत आस्ट्रेलिया सीरीज का पहला टेस्ट बुरी तरह हार गई थी. उसके बाद विराट भारत लौट आए, और टीम की कमान अजिंक्य रहाणे के कंधों पर आन पड़ी थी. रहाणे के शानदार शतक की बदौलत टीम इंडिया ने दूसरा टेस्ट जीता, और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. टीम इंडिया ने कंगारुओं को गाबा में 32 वर्षों से चली आ रही बादशाहत को खत्म कर इतिहास रच दिया है.
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