क्या आईपीएल विवाद की फाइलों को बंद करने की चल रही है तैयारी?
IPL स्पॉट फिक्सिंग मामले में श्रीसंत सहित तीन खिलाड़ियों पर फैसला आने के कुछ देर बाद BCCI की ओर से बयान आता है कि तीनों पर बोर्ड की ओर से प्रतिबंध बरकरार रहेगा. सवाल उठता है क्यों? क्या बोर्ड कोर्ट के फैसले से खुश नहीं है?
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जितनी तेजी से IPL विवाद का तूफान पिछले दो-तीन वर्षों में उठा था, उसे शांत करने की मुहिम भी उतनी ही तेजी से जारी है. भाई! इमेज खराब हो रही थी. लोढ़ा समिति ने दो टीमों पर दो साल का बैन लगाने का फैसला किया. इधर एस श्रीसंत, अजीत चंदीला और अंकित चव्हाण को दिल्ली की पटियाला कोर्ट ने बरी कर दिया. लेकिन एक बार फिर सवालों के घेरे में बीसीसीआई ही है. श्रीसंत सहित तीन खिलाड़ियों पर फैसला आने के कुछ देर बाद BCCI की ओर से बयान आया कि तीनों पर बोर्ड की ओर से प्रतिबंध बरकरार रहेगा.
सवाल है क्यों? क्यों BCCI ने तत्काल यह कह दिया कि वह फिलहाल प्रतिबंध कायम रखेगा? क्या वह अदालत के फैसले को तरजीह नहीं देना चाहता? अदालत ने जिन लोगों को बरी किया, उन्हें अपनाने में BCCI को क्या समस्या है. बोर्ड की ओर से कहा गया कि अनुशासनात्मक फैसला उसका अपना है. कोर्ट के फैसले से वह इसमें बदलाव करने के लिए बाध्य नहीं है. ठीक है. यह तर्क सही हो सकता है. लेकिन नियत ठीक नहीं लगती. BCCI अगर इस प्रतिबंध को कायम रखता है तो उसे इसका साफ-साफ कारण बताना चाहिए. उनकी नजर में तीनों खिलाड़ियों ने किस-किस अनुशासन को तोड़ा है. उसे बताया जाए.
बीसीसीआई विवाद को टालने के लिए तत्काल यह कह सकती थी कि उसने तीनों खिलाड़ियों से प्रतिबंध हटाने के बारे में फिलहाल कोई विचार नहीं किया है. यह बेहतर जवाब होता. लेकिन सीधे नकार देने का क्या मतलब है? मुझे तो दो कारण ही नजर आते हैं. या तो बीसीसीआई को किसी और 'सच' का पता है जो अदालत के सामने नहीं आ सका या फिर यह बोर्ड की खुद को स्वतंत्र दिखाने की एक और कोशिश है.
दिल्ली पुलिस ने श्रीसंत, अजीत चंदीला और अंकित चव्हाण को दो साल पहले स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में गिरफ्तार किया था. यह तीनों राजस्थान रॉयल्स के खिलाड़ी थे. रॉयल्स पर लोढ़ा समिति दो साल का बैन लगा चुकी है. क्या यह विरोधाभास नहीं है. एक फैसले में पूरी टीम को बैन किया गया वहीं इसके तीन खिलाड़ी बरी हो गए! ऐसे में तो सवाल मुद्गल समिति की जांच पर भी खड़ा हो जाता है. आखिर लोढ़ा समिति ने फिर किस आधार पर टीम को बैन किया? क्या तीनों खिलाड़ियों के बेदाग साबित होने से राजस्थान रॉयल्स और इनके मालिकों को फिर से सुप्रीम कोर्ट जाने का आधार नहीं मिल गया? लोढ़ा समिति ने खुद दिल्ली पुलिस की जांच को अपने फैसले में तवज्जो दी थी. जिन 12 खिलाड़ियों के नाम बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए थे. उन पर क्या जांच हुई, इस बारे में भी कोई बात सामने नहीं आ सकी.
कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि सब कुछ खिचड़ी जैसा हो गया है. स्वादिष्ट और मसालेदार. यह खेल के साथ-साथ और भी बहुत कुछ है. आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी की भनक काफी पहले से लगने लगी थी. लेकिन इस पर कदम तब उठाए गए जब पानी सिर से ऊपर जाने लगा. पूरी जांच-पड़ताल में कई पेंच हैं, जिसके जवाब नहीं मिले. अब ऐसा लग रहा है कि जैसे-तैसे फाइलों को बंद करने की कवायद चल रही है. खैर हमलोगों का क्या, सब कुछ भूल जाने की आदत है. अगले साल हम फिर तैयार हो जाएंगे 'इंडिया का त्योहार मनाने के लिए.'
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