शशांक मनोहर ईमानदार लेकिन विवादित भी हैं...
समय ने एक बार फिर करवट ली है. मानना पड़ेगा कि क्रिकेट के खेल की तरह बीसीसीआई की अंदरखाने की राजनीति भी कम दिलचस्प नहीं है.
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शशांक मनोहर ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा बीसीसीआई के खिलाफ दायर मामलों से 2013 में अपना नाम हटाने के लिए हाई कोर्ट में हलफनामा दायर किया था. उन पर आरोप लगा कि वे बोर्ड को उसके हाल पर छोड़ अपनी साख बचाने में जुटे हैं. बीसीसीआई की एजीएम में भी तब यह मामला उठा. तब बीसीसीआई और मनोहर के बीच छत्तीस का आंकड़ा नजर आ रहा था. ऐसा लगा कि शशांक मनोहर और बीसीसीआई के रास्ते जुदा हो चले हैं. लेकिन समय ने एक बार फिर करवट ली है. मानना पड़ेगा कि क्रिकेट के खेल की तरह बीसीसीआई की अंदरखाने की राजनीति भी कम दिलचस्प नहीं है.
जगमोहन डालमिया को बोर्ड में वापसी करने में दस साल लग गए. लेकिन शशांक मनोहर इस मामले में ज्यादा लकी रहे. चार साल के अंदर एक बार फिर वह बतौर अध्यक्ष बीसीसीआई में वापसी कर चुके हैं. शशांक मनोहर की छवि एक ईमानदार प्रशासक की रही है लेकिन विवाद के दाग उनके दामन पर भी हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं कि 2013 के आईपीएल संस्करण में हुए कथित स्पॉट फिक्सिंग के विवाद और फिर हितों के टकराव के मामले ने बोर्ड की साख को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया. इस विवाद और फिर सुप्रीम के सख्त रवैये का ही नतीजा रहा कि वे लोग जो बोर्ड पर अपना हक चलाना चाहते थे, उन्होंने ही पहले डालमिया को चुने जाने का समर्थन किया और अब शशांक मनोहर वापस आए हैं.
'मिस्टर क्लिन' वाली छवि
शशांक मनोहर के बारे में कहा जाता है कि उनकी छवि साफ-सुथरी है. 'मिस्टर क्लिन' वाला तमगा उनके साथ है. शायद यही कारण है कि ललित मोदी लंदन में रहकर जब हर रोज ट्वीट कर एक के बाद एक 'ब्रेकिंग न्यूज' दे रहे थे, तब भी उनका कोई ट्वीट शशांक मनोहर के खिलाफ नहीं आया. जबकि आईपीएल से मोदी को बाहर का रास्ता दिखाने वाले शशांक मनोहर ही थे.
विवादों से नाता
बीसीसीआई को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने का श्रेय अगर डालमिया को जाता है, तो उसे दूसरे मुकाम पर ले जाने का श्रेय शशांक मनोहर को दिया जाना चाहिए. उनके कार्यकाल में ही आईपीएल फला-फूला. आईपीएल एक बड़ी शुरुआत थी. लेकिन 2009 में जब इसे लोकसभा चुनाव के कारण दक्षिण अफ्रीका में आयोजित किया गया तो विदेश मुद्रा कानून के कथित उल्लंघन का आरोप लगा और ईडी ने मामला भी दर्ज किया.
फिर ललित मोदी को बढ़ावा और 2008 में बीसीसीआई के संविधान में विवादित संशोधन जिसके कारण श्रीनिवासन की कंपनी इंडिया सिमेंट्स चेन्नई सुपर किंग्स टीम की मालिक बन सकी, यह सब भी उनके कार्यकाल में ही हुआ. शशांक मनोहर सीधे तौर पर भले ही इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराये जाएं..लेकिन सवाल तो बनता है.
बीसीसीआई की इमेज सुधारने की चुनौती
शशांक मनोहर के सामने आज के दौर में सबसे बड़ी चुनौती यही है. पैसे के कारण पूरे विश्व में बीसीसीआई का कद बढ़ा है. लेकिन यह धारणा भी बनी कि इस संस्था में कई गड़बड़ियां हैं. सब कुछ गलत हो रहा है, क्रिकेट की इस संस्था का इस्तेमाल कुछ लोग केवल अपने फायदे के लिए करते रहे हैं. अब कमान शशांक मनोहर के हाथ में है. मनोहर इससे पहले 2008 से 2011 के बीच बोर्ड के अध्यक्ष रहे थे और अब 2017 तक कुर्सी उनके पास होगी. शशांक मनोहर बोर्ड की इमेज सुधारने की अपनी प्रतिबद्धता जता चुके हैं. देखना होगा कि वे इसमें किस हद तक सफल हो पाते हैं...
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