कॉमनवेल्थ गेम्स में इन महिला खिलाड़ियों ने अपनी मेहनत से हमारा दिल जीता है
कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में पाकिस्तानी टीम को हराने के साथ ही भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर ने पूर्व कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.
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बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 (Commonwealth games 2022) में भारत की बेटियां देश का नाम ऊंचा कर रही हैं. खेल में कमाल करने का मतलब हमें सिर्फ मेडल जीतने से नहीं लगाना चाहिए. हम यहां उन महिला खिलाड़ियों की बात कर रहे हैं जिन्होंने खेल में अपनी छाप छोड़ी है और इतिहास कामय किया है. एक बात और हमें अपने पुरुष खिलाड़ियों पर भी नाज है, लेकिन यहां बात महिला खिलाड़ियों की हो रही है.
सबसे पहले हम सबसे पहले हम भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर की बात करते हैं. जिनकी टीम ने कॉमनवेल्थ गेम्स में पाकिस्तान को 8 विकेट से हराकर जीत का आगाज कर लिया है. इसके साथ ही हरमनप्रीत ने एक खास रिकार्ड अपने नाम कर लिया है.
असल में हरमनप्रीत क्रिकेट के सबसे छोटे फॉर्मेट (टी 20) मैच में सबसे ज्यादा मैच जीतने वाली भारतीय कप्तान बन गई हैं. इस तरह उन्होंने पूर्व भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी का रिकॉर्ड तोड़कर उन्हें पीछे छोड़ दिया है. धोनी ने 72 मैच में से 41 में जीत हांसिल की थी, वहीं हरमनप्रीत को 71 में से 42 मैच में जीत मिली है.
हरमनप्रीत कौर और मीराबाई चानू ने कॉमनवेल्थ गेम्स में अपनी छाप छोड़ी है
अब हम बिंदिया रानी देवी के बारे में आपको बता रहे हैं, जिन्होंने वेटलिफ्टिंग की 55 किलोग्राम कैटेगिरी में सिल्वर मेडल जीता है. बिंदिया रानी ने 202 किलो का भार उठाकर यह मेडल अपने नाम किया है. बिंदिया रानी मणिपुर के इम्फाल की रहने वाली हैं. वे एक गरीब परिवार से हैं. रिपोर्ट्स की माने तो एक समय में इनके पास ट्रेनिंग के लिए जूते नहीं थे. उन्होंने दोस्त से उधार पैसे लेकर जूता खरीदा था. इतना ही नहीं जब वे कॉमनवेल्थ में खेलने गईं तो परिवार के पास टीवी का कनेक्शन भी नहीं था, आखिर वक्त में उनके बड़े भाई ने बड़ी मुश्किल ने कहीं से कनेक्शन का जुगाड़ किया. तब जाकर इनके माता-पिता ने इनका मैच देखा. उनके पिता परचून की दुकान चलाते हैं और खेती करते हैं. मां का कहना है कि बेटी की जीत से खुशी है अब उससे कहूंगी कि और मेहनत करे और ओलंपिक में खेले.
बिंदायी रानी के पास एक समय ट्रेनिंग के लिए जूते नहीं थे
अब हम अनाहत सिंह के बारे में बता रहे हैं जिसे कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत की सबसे युवा एथलीट से नवाजा गया. अनाहत एक स्क्वैश प्लेयर हैं. वे मात्र 14 साल की हैं लेकिन इनके हौसले काफी बुलंद हैं. जिस उम्र में अधिकतर लड़कियां लड़कपन में रहती हैं उस उम्र में अनाहत ने कॉमलवेल्थ गेम में भारत का प्रतिनिधित्व किया. रिपोर्टस के अनुसार, वुमेंस सिंगल राउंड में अनाहत ने लगातार तीन गेम में अपने से बड़ी उम्र की जैडा रॉसो को हरा दिया. हालांकि इसके बाद के मैच में वे आगे नहीं बढ़ सकीं, लेकिन यह दावा किया जा रहा है कि आने वाले समय की वे एक बेहतरीन खिलाड़ी बनकर उभरेंगी और भारत का नाम रोशन करेंगी. अनाहत, दिल्ली की रहने वाली हैं. उनके पिता वकील हैं और मां इंटीरियर डिजाइनर हैं.
अनाहत सिंह को कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत की सबसे युवा एथलीट से नवाजा गया
महिला खिलाड़ियों की बात करने पर सबसे पहले मीराबाई चानू का चेहरा याद आता है. आज वे हर किसी को कड़ी मेहनत करने और अपने क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं. मीराबाई चानू ने कॉमनवेल्थ में गोल्ड मेडल जीतकर एक बार फिर से देश का मान बढ़ाया है. वैसे भी कॉमनवेल्थ गेम्स में यह रिकॉर्ड है कि वेटलिफ्टिंग में किसी महिला वेटलिफ्टर ने 88 किलो का वजन नहीं उठाया है. मीराबाई चानू एक ऐसी खिलाड़ी हैं जो अपनी जड़ों से जुड़ी हुईं हैं.
इन खिलाड़ियों को यह शोहरत यूं नहीं मिली है, इसके लिए इन्होंने अपना खून पसीना एक किया है. अपने जीवन में अनुशासन का पालन किया है. कोई गरीबी से लड़ी है, तो कोई दुनिया वालों से...क्योंकि हम जानते हैं कि महिलाओं को खेल में आगे बढ़ना आसान नहीं है. देखने में आता है कि कुछ लोग मेडल जीतने वाले की वाहवाही और हारने वाले को गाली देते हैं. जबकि कई बार खिलाड़ी हारकर भी दुनिया में अपनी छाप छोड़ जाते हैं. उनकी मेहनत और संघर्ष की अपनी अलग कहानी है.
वक्त आ गया है कि परिवार वाले अपनी बच्चियों को शो कॉल्ड सेफ करियर तलाशने की जगह उन्हें स्पोर्ट्स में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें. वैसे भी कहा जाता है कि बचपन में जैसा माहौल मिलता है बच्चा उसी दिशा में आगे बढ़ता है.
यहां लोग अपने बच्चों के लिए सेफ करियर की तलाश करते हैं और मैदान में जब खिलाड़ी हारते हैं तो उन्हें अपशब्द कहते हैं. फिलहाल इन महिला खिलाड़ियों के हौसले की उड़ान को सलाम करने का समय है...
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