Dhoni ही टीम इंडिया में लाए थे 'मार्गदर्शक मंडल' वाला फॉर्मूला, अब खुद फंस गए!
महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni Retirement) के लिए इस समय ठीक वैसी ही बातें हो रही हैं, जो धोनी के कप्तान बनने के शुरुआती दौर में सचिन, सहवाग, द्रविड़ और गांगुली जैसे खिलाड़ियों के लिए होती थीं.
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भारतीय टीम का जीतना ज्यादा जरूरी है या फिर महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni Retirement) का टीम में खेलना? यकीनन हर कोई भारतीय टीम को जीतता हुआ देखना चाहता है, लेकिन बहुत से ऐसे लोग हैं जो इस जीत तो धोनी के साथ देखना चाहते हैं. लेकिन अगर धोनी का प्रदर्शन सही ना हो तो क्या? विश्व कप में वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके ये सबने देखा. तब से लेकर अब तक उन्हें किसी मैच में जगह नहीं मिली है और धोनी प्रशंसकों को ये बात चुभती भी है. कुछ तो ये भी कहते मिल जाएंगे कि भले ही धोनी का बल्ला ना चले, लेकिन वह सिर्फ बल्लेबाजी ने लिए नहीं, बल्कि अच्छी रणनीति और खिलाड़ियों के बीच सामंजस्य बैठाने के लिए भी जाने जाते हैं. तो क्या किसी ऐसे खिलाड़ी को टीम में रखना सही है जिसका बल्ला ना चलता हो, लेकिन रणनीति बनाने और गाइडेंस में वह बहुत अच्छा हो? अगर ऐसा है तो ऐसे शख्स को तो टीम इंडिया का कोच होना चाहिए.
टीम में जरूरत होती है तेज-तर्रार खिलाड़ी की, जो तेजी से रन बनाए, अच्छी फील्डिंग करे और विकेट भी चटकाता रहे. सीनियर खिलाड़ी को सिर्फ इसलिए टीम में क्यों रखा जाए कि वह सीनियर है, जबकि उससे जूनियर खिलाड़ियों का प्रदर्शन काफी अच्छा है. तो क्यों ना ऐसे सीनियर खिलाड़ी की जगह किसी युवा खिलाड़ी को मौका दिया जाए? यकीनन ये बातें धोनी समर्थकों को चुभ रही होंगी, लेकिन दिमाग पर थोड़ा जोर डालिए और पीछे जाइए तो आपको याद आएगा कि धोनी भी यही मानते थे. जब वह टीम के कप्तान बने थे तो उन्होंने सीनियर-जूनियर नहीं देखा, बल्कि टीम की जीत के लिए फिट खिलाड़ियों की पैरवी की और उन खिलाड़ियों को टीम से बाहर रखा, जिनका प्रदर्शन अच्छा नहीं था. यहां तक कि क्रिकेट के भगवान कहने जाने वाले सचिन को भी बार-बार चोट से जूझने के चलते टीम में नहीं लिया गया. गांगुली और द्रविड़ जैसे खिलाड़ियों पर भी कोई रहम नहीं किया गया.
महेंद्र सिंह धोनी ने कप्तानी संभालते ही सीनियर खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था, अब वह खुद भी सीनियर हो चुके हैं तो...
इतनी संवेदना क्यों, ये सब धोनी की ही देन है !
महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni Retirement) के लिए इस समय ठीक वैसी ही बातें हो रही हैं, जो धोनी के कप्तान बनने के शुरुआती दौर में सचिन, सहवाग, द्रविड़ और गांगुली जैसे खिलाड़ियों के लिए होती थीं. क्रिकेट फैन्स का ही एक तबका ऐसा था जो चाहता था कि बस भारतीय टीम जीते, जिसका प्रदर्शन अच्छा हो वह टीम में रहे. वहीं दूसरी ओर, इन खिलाड़ियों के फैन्स बिल्कुल नहीं चाहते थे कि उनका चहेता प्लेयर टीम से बाहर हो. खैर, टीम में खेलते हैं सिर्फ 11 खिलाड़ी, तो फिर सबको जगह कैसे मिलेगी. कोई जाएगा, तभी तो नया आएगा. सचिन, सहवाग, द्रविड़, गांगुली गए, तभी तो कोहली, रोहित शर्मा जैसे टैलेंट उभर कर सामने आ सके. धोनी के रिटायरमेंट की चर्चा होते ही उन्हें लेकर जो लोग संवेदनशील हो जाते हैं, उन्हें ये बात समझनी चाहिए कि धोनी ने ही इसकी शुरुआत की थी. जिस तरह उन्होंने सीनियर खिलाड़ियों को मार्गदर्शन मंडल में पहुंचाया था, अब वहां पहुंचने की बारी उनकी खुद की है.
खस्ताहाल हो रही टीम को रीअरेंज किया !
धोनी ने जब कप्तानी की बागडोर संभाली थी, उस दौरान क्रिकेट टीम में सब कुछ ठीक नहीं था. एक ओर कप्तान-कोच विवाद की बलि चढ़ चुके थे और टीम से बाहर हो गए थे. दूसरी ओर सीनियर खिलाड़ियों के चलते टीम का प्रदर्शन भी औसत ही था. सचिन क्रिकेट के मैदान पर चोट से जूझते थे और मैदान के बाहर आलोचकों द्वारा बनाए जाने वाले संन्यास के दबाव से. टीम में युवराज और मोहम्मद कैफ जैसे खिलाड़ियों के प्रदर्शन में निरंतरता नहीं थी, जिसके चलते वह टीम में अंदर-बाहर होते रहते थे. टीम में राजनीति भी चरम पर थी. नतीजा ये हुआ कि भारत 2007 में बांग्लादेश से हारकर एकदिवसीय विश्वकप के लीग चरण में ही बाहर हो गया. हार शर्मनाक थी, लिहाजा धोनी के नेतृत्व में एक युवा टीम चुनी गई, जिसमें न सचिन थे, ना गांगली, ना द्रविड़-कुंबले. इस फैसले की खूब आलोचना हुई. जैसा कि महेंद्र सिंह धोनी को फिलहाल टीम में नहीं लिया जा रहा है तो कोहली और शास्त्री की भी आलोचना हो रही है. लेकिन इस युवा टीम ने इतिहास रचा. एक दिवसीय विश्वकप के छह महीने बाद दक्षिण अफ्रीका में टी-20 विश्वकप हुआ, जिसमें धोनी की कप्तानी में भारत विश्व चैंपियन बन गया.
'उम्रदराज' सितारों को रिप्लेस करना चाहते थे धोनी
धोनी को टीम में बढ़ती उम्र के सितारे दिखते थे, जैसे सचिन, सहवाग, गंभीर. उन्होंने 2011 में इंग्लैंड से मैच हारने के बाद ये साफ-साफ कह दिया था कि सीनियर खिलाड़ियों को रिप्लेस करने की जरूरत है और इसके लिए युवा खिलाड़ियों को बेहतर बनाना होगा. उन्होंने कहा था कि टीम के सीनियर खिलाड़ी करीब 15 सालों से टीम में हैं. उन्होंने कहा था हमें अभी से युवा खिलाड़ियों की ग्रूमिंग शुरू कर देनी चाहिए. ये एक चलती रहने वाली प्रक्रिया है. धोनी ने उस दिन ये तो साफ कर दिया था सीनियर खिलाड़ियों की वजह से टीम का प्रदर्शन थोड़ा धीमा है और युवा खिलाड़ियों की ग्रूमिंग की बात कर के ये भी साफ कर दिया था कि वह ऐसे सीनियर खिलाड़ियों से निजात पाना चाहते हैं जिनकी रन बनाने की रफ्तार बहुत ही धीमी है.
क्रिकेट के भगवान को भी टोक दिया
बात 2008 की सीबी सीरीज की है, जिसमें सचिन तेंडुलकर ने अच्छा नहीं खेला. तब महेंद्र सिंह धोनी से सीनियर-जूनियर का लिहाज छोड़ते हुए एक कप्तान की भूमिका निभाई और बोले कि सीनियर खिलाड़ियों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और नाम के अनुरूप खेलना होगा. उसके अगले ही मैच में सचिन का प्रदर्शन बेहतर हो गया. अब जिस शख्स ने क्रिकेट के भगवान को भी सिर्फ इसलिए टोक दिया क्योंकि टीम का प्रदर्शन नहीं गिरना चाहिए और टीम की हार नहीं होनी चाहिए, तो खुद उसकी वजह से टीम को हारते हुए कौन देखना चाहेगा.
2012 में धोनी ने सचिन, सहवाग और गंभीर के प्रदर्शन पर उंगली उठाई थी. उन्होंने कहा था कि सीनियर खिलाड़ियों की फील्डिंग वैसे तो ठीक है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े मैदानों पर विरोधी टीम को करीब 20 रन अधिक बनाने में मदद मिल जाती है. सचिन की फील्डिंग को उनके उम्र के हिसाब से ठीक ठाक कहते हुए उन्होंने कहा था- सचिन 39 के हैं और उनकी फील्डिंग ठीक है, थ्रो भी अच्छा है, लेकिन गंभीर 30 के होने के बावजूद उतने फुर्तीले नहीं हैं. सबसे अधिक दिक्कत उन्होंने वीरेंद्र सहवाग की फील्डिंग के साथ बताई थी. और इसके बाद सहवाग और गंभीर धीरे-धीरे टीम से बाहर ही हो गए. सचिन ने भी समझ लिया था कि अब उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए और 2013 में उन्होंने भी 200वां टेस्ट मैच खेलने के बाद संन्यास ले लिया.
सचिन-सचिन की जगह धोनी-धोनी फिर कोहली-कोहली
पहले क्रिकेट स्टेडियम में सचिन-सचिन के नारें गूंजते थे. जब उन्होंने संन्यास लिया और बाकी अन्य सीनियर खिलाड़ियों को भी ड्रॉप किया गया तो धोनी की आलोचनाओं का दौर शुरू हुआ, लेकिन टी-20 की जीत ने धोनी को हीरो बना दिया. धीरे-धीरे लोग ये भूल गए कि धोनी ने ही उनके चहेते क्रिकेटर्स को बाहर का रास्ता दिखाया, क्योंकि अब उनकी जुबां पर धोनी-धोनी आ चुका था. इतना शांत स्वभाव कि लोगों ने उन्हें कैप्टन कूल का नाम दे दिया. अब धोनी का दौर भी चला गया समझिए, क्योंकि अब कोहली-कोहली के नारे लगने शुरू हो गए हैं. वैसे भी, धोनी ने विश्वकप के बाद से कोई मैच खेला नहीं है, तो फिर किसी के घर में बैठे रहने के लिए उसके नाम के नारे तो लग नहीं सकते हैं.
अब धोनी की बल्लेबाजी में भी वह बात नहीं रही, तभी तो टीम के प्रमुख चयनकर्ता एमएसके प्रसाद ने कह दिया है कि वह डोमेस्टिक क्रिकेट खेलकर खुद को साबित कर सकते हैं और टीम में वापसी कर सकते हैं, लेकिन ये अब मुमकिन नहीं लगता. लिहाजा, धोनी को अब समझ लेना चाहिए कि वह भी वो सीनियर खिलाड़ी हैं, जिसकी रणनीति और गाइडेंस तो टीम को चाहिए, लेकिन अब उनकी जगह किसी युवा खिलाड़ी को ही लेनी होगी.
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