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Updated: 20 मई, 2022 11:43 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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निकहत जरीन (कुछ लोग निक्हत जरीन भी लिख रहे हैं). कितना ख़ूबसूरत नाम है. इनके नाम का मतलब है खुशबू. खुशबू का मतलब फ़ैलने में होता है. उसे शीशी में बंद तो किसी भी सूरत में किया ही नहीं जा सकता. करना भी नहीं चाहिए. क्योंकि खुशबू फैला नहीं तो व्यर्थ है. निकहत खुशबू हैं और फ़ैल गईं. उनकी राशि वृश्चिक है. भारतीय ज्योतिष परंपरा में वृश्चिक राशि का एक गुण यह बताया गया है कि ऐसे लोगों पर तनाव का असर रहता है. और जो तनावग्रस्त होता है उसके चेहरे पर तेज नहीं होता. तेज बलिष्ठ भुजाएं भी दे सकती हैं उसके लिए लेखक, अभिनेता या नेता भी बनना जरूरी नहीं. बॉक्सर भी बना जा सकता.  

खैर. पहले निकहत का फोटो देख लीजिए. और गौर से देखिए. कोई परेशानी, डर, आत्मविश्वास या स्वाभिमान में तनिक भी कमी नहीं दिखेगी जो अफवाह वृश्चिक को लेकर थी. तनाव का तिनका भी नहीं है. चेहरे पर जो तिनका दिखेगा वह पसीने का है और 70 साल में निकहत के साथ देश की मेहनत का भी है. यह उस देश का पसीना है जिसने अपना खून जलाकर बादल बनाए और बादलों ने उसकी जमीन पर पानी बरसाया है. गर्व से उठा माथा, जोश में तनी भुजाएं और दहाड़ मारता उनका चेहरा असल में भारत की शेरनी का ही चेहरा होना चाहिए, जो बाकी बेटियों और समूचे देश को बताने के लिए काफी है कि भारत कभी गलत नहीं हो सकता. कभी तुमने उनकी क्षमता को नहीं देखा तो दोष तुम्हारा था उनका नहीं.

nikhat zareenनिकहत जरीन. यह फोटो उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर साझा किया है. हमने साभार वहीं से जुथाया है.

निकहत दुनिया से कह रही हैं यहां जीतकर दिखाओ. आप सुन नहीं पा रहे, मगर वह यह भी कह रही हैं हम भारत का वही इतिहास लिखेंगे, फिर से लिखेंगे और बहुत उम्दा लिखेंगे. और अबकी ऐसा लिखेंगे कि आने वाली पीढ़ियों को इतिहास की भूल भुलैया में भटकते हुए गुजरना नहीं पड़ेगा. क्योंकि वह इतिहास शब्दों का नहीं होगा जिसे रटने की जरूरत पड़ेगी. वह कह रही हैं- हम तो दुनिया की आंखों के सामने ही इतिहास लिखेंगे, ऐसा इतिहास कि पीढ़ियां बार-बार हजार बार देखकर प्रेरणा हासिल करेंगी.

आतंकी जवाहिरी के गाल पर तमाचा है निकहत की जीत

निकहत जरीन ने 52 किलो कैटेगरी में वर्ल्ड बॉक्सिंग चैम्पियनशिप का गोल्ड जीता. तूफानी गोल्ड कह लीजिए. थाईलैंड की जिटपॉन्ग जुटामस को 5-0 से करारी मात दी. निकहत जैसे जमानेभर को ताबड़तोड़ पंच मार रही थीं. पश्चिम की शो कॉल्ड महिलाओं के जबड़े पर पंच मार रही थीं जो भारतीय महिलाओं की क्षमता पर सवाल कर रही थीं. जैसे निकहत के पंच की मार अल कायदा के आतंकी अयमान अल जवाहिरी के लिए थी और उसे बता रही थी- "भारत की यह बेटी तुझ जैसों को क्यों नहीं दिखती. इस बेटी में कमियां हैं क्या. भारत में पैदा होते ही तुमसे ज्यादा बेहतर इंसान बन गई थी, धार्मिक तो खैर तुमसे बेहतर तो हूं ही." मुस्कान की तरह यह भी हमारी बेटी है. आईटी सेल्स को चाहिए कि जवाहिरी को एक मेल लिखें कि कुछ करिए. भारत क्या कर रहा है यह सब.

जवाहिरी कहीं दूर बैठा जलभुन रहा होगा. कितना बेहतर संयोग बन गया. असल में लगता है जैसे निकहत ने जीत हासिल की उस आतंकी को चिढ़ाने के लिए की है. और वह भारत की असंख्य बेटियों को बेंचमार्क दे रही हैं- "चलो रे लड़कियों ये करके दिखाओ."  जवाहिरी का जवाब तो क्या ही आएगा. उसका अपना भूगोल है. इतिहास भी है. लेकिन वे जो जवाहिरी के भूगोल और इतिहास से नहीं हैं क्या उन्हें भी निकहत की तस्वीर में भारत के  भविष्य का गौरव और जोश नजर नहीं आ रहा. निकहत के नाम को तो कम से कम एक हफ्ते तक ट्विटर और फेसबुक की टॉप ट्रेंडिंग में रहना था. कहीं लोग इस संकोच में तो नहीं फंसे रह गए कि पहली बाजी यूपी के गेरुआ बाबा योगी आदित्यनाथ ने उन्हें बधाई देकर मार ली.

hizab rowहिजाब विवाद में इसी तस्वीर को दुनियाभर में खूब ट्रेंड बना दिया गया था और कैम्पेन चलाए गए थे.

भारत को आपने नहीं, उसकी बेटियों ने बचाकर रखा है

अब निकहत का नाम ट्रेंड कराएंगे तो लोगों को लगेगा कि योगी के चोले में रंग गए क्या. आजकल इसी बात का डर ज्यादा रहता है. कोई भी किसी को भी कहीं भी पेटेंट करा सकता है. निकहत पर इतनी ठंडी प्रतिक्रिया. सुस्ती. उसके पंचों की ताकत के लिए डेढ़ सौ करोड़ आबादी के पास डेढ़ करोड़ "शाबास" के भी शब्द नहीं निकलें.  चलो कोई बात नहीं. तमाम निकहतों ने चूल्हे, बाथरूम और बैठक सजाते संवारते बर्तन धोते मांजते जिंदगी खपा दी. ना शाबाशी की इच्छा जताई ना वो मिली कभी. अभी तुम्हारी वाहवाही का वो इंतज़ार ही कहां कर रही हैं. बस अपनी धुन में बढ़ें जा रही हैं. तुम्हें लगता होगा कि शेषनाग की तरह भारत का बोझ तुमने सिर पर लादा हुआ है, और अपना सिर हटा लिया तो उसे अरब सागर में डूबने से कोई बचा नहीं सकता. ऐसा नहीं है. भारत के जहाज की पतवार तो निकहतों के हाथ में रही है, तब भी जब वे घर के अंदर थीं और अब भी जब वे घर के बाहर हैं.

तुमसे शाबासी की उम्मीद भी निकहतों को नहीं है. क्योंकि उन्होंने सदियों से तुम्हारी समझौतापरस्ती को देखा है. कायरता, लालच और शर्म में कैसे 45 डिग्री झुक जाते हो. भारत में ना जाने कितनी बेटियों ने सपनों को मायके की ड्योढी में गाड़कर सुसराल की ड्योढी से एक अनजान दुनिया में प्रवेश किया है. बावजूद उन्होंने निजी सपनों से अलग बच्चों में भारत का ही भविष्य देखा. धीरे-धीरे ही सही, अब उनके बच्चे अपनी-अपनी सीमा में माताओं के सपने पूरा करने की कोशिश करते दिख रहे हैं. उसे पूरा भी कर रहे हैं. और अपनी नई पीढ़ी को नया लक्ष्य भी दे रहे हैं.

गौतम रुकते नहीं हैं, निकहत यही बता रही हैं उन्हें सुनिए  

शुरुआत निकहत की राशि से हुई थी तो उसका अंत भी उसी से कर देना चाहिए. गौतम जब पैदा हुए राज ज्योतिष ने कहा- या बहुत बड़ा राजा बनेगा या बहुत बड़ा संत. इसके सामने कोई नहीं टिकेगा. राजा तक तो पिता शुद्धोधन को ठीक लगा, लेकिन आज भी कोई पिता क्रांतिकारी अपने घर में कहां देख पाता है. पिता को लगा उनका फूल जैसा बेटा संत बन गया ये तो गड़बड़ बात होगी. बड़े-बड़े ज्योतिषियों को बुलाया. सब ने वही दोहराया- "यह जो भी बनेगा इससे श्रेष्ठ कुछ नहीं होगा. राजा या संत," पिता ने संतई रोकने के लिए क्या नहीं किया. गौतम को तो यशोधरा का सौन्दर्य और राहुल की ममता भी नहीं रोक पाई. निकल पड़े खुशबू बिखेरने.

...तो कुल मिलाकर भारत में भी श्रीलंका की बर्बादी जैसी कामना करने वालों भारत कहां कभी ढहा था, अब तो वह हासिल करने निकल पड़ा है. निकहत से ठीक पहले बैडमिंटन में महाशक्ति बना और वह भी तय लक्ष्य से 10 साल पहले हासिल किया. पता नहीं वैशाखनंदनों को कब समझ में आएगा.

लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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