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Updated: 27 नवम्बर, 2015 04:28 PM
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जंग में हमेशा जीत मायने नहीं रखती. देखने वालों की नजर इस पर भी रहती है कि आपने जीत हासिल कैसे की. इंडियन फैंस टीम को जीतते हुए जरूर देखना चाहते हैं लेकिन वैसी नहीं जो हमने मोहाली में हासिल की और अब नागपुर में. रिकॉर्ड बुक्स में भले ही इसे भारत की जीत के तौर पर लिखा जाएगा लेकिन क्रिकेट हार रहा है.

दक्षिण अफ्रीकी टीम सितंबर के आखिरी हफ्ते में भारत दौरे पर आई. इसके बाद उसने न केवल तीन टी-20 मैचों की सीरीज में हमें शिकस्त दी बल्कि वनडे श्रृंखला भी 3-2 से अपने नाम करने में कामयाब रहा. कोई हमारे ही देश में आकर हमें पटखनी देता रहे, यह भला कैसे बर्दाश्त होता. विराट कोहली टेस्ट टीम के नए-नए कप्तान बने हैं. कई बार कह चुके हैं कि उन्हें जीत से कम कुछ बर्दाश्त नहीं. लेकिन क्‍या जीत की इस बेसब्री के कारण ही ऐसी खराब पिचें तैयार कराई गईं. नागपुर में जो पिच बनाई गई है, उसकी असलियत सबको पता है. सुनील गावस्कर जैसा व्यक्ति मैच के पहले ही दिन अगर कह दे कि पिच अभी से टूट रही है और उसे 'क्रीम' लगाने की जरूरत है.

2006 के बाद दक्षिण अफ्रीका पहली बार विदेशी जमीन पर कोई टेस्ट सीरीज हारा है. इस शानदार रिकार्ड के बावजूद एक सच यह भी है कि दक्षिण अफ्रीका पिछले 15 वर्षों में भारतीय जमीन पर कोई टेस्ट सीरीज नहीं जीत सका है. 2008 और 2010 के दौरे में दक्षिण अफ्रीका सीरीज में 1-1 से बराबर करने में कामयाब रहा था.

जीत के फेर में मर रहा क्रिकेट

टी-20 और फिर वनडे के मुकाबले टेस्ट मैचों में पिच हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. मैच पांच दिनों का होता है और इसलिए हर दिन पिच का मिजाज बदलता जाता है. यही टेस्ट मैचों की चुनौती भी है और रोमांच भी. लेकिन लगता है कि अब जीत के फेर में सब उस रोमांच को मारने पर तुले हैं. भारत को टी-20 और वनडे सीरीज में हार का सामना करना पड़ा. जाहिर है, जान बचाने के लिए टेस्ट सीरीज में जीत तो जरूरी थी. मुंबई में पांचवे वनडे में टीम इंडिया को मिली हार के बाद रवि शास्त्री और पिच क्यूरेटर के बीच विवाद की खबरें आई थी. वह अपने आप में प्रमाण था कि टीम मैनेजमेंट अब प्रदर्शन से ज्यादा पिच पर ध्यान देने लगी है.

बहरहाल, टेस्ट सीरीज के लिए ऐसी पिचें तैयार हुईं जो बेजान थी और केवल स्पिन गेंदबाजों के काम की थी. आखिरकार दक्षिण अफ्रीका को तो घुटने टेकने ही थे. लेकिन यह चलन भ्रामक है. जब हम मुकाबला करते हैं तो एक स्पेश प्रतिद्वंद्वी टीम को भी देना ही चाहिए. लेकिन इस सोच को लेकर पिछले कुछ वर्षों में आक्रामक अंदाज में बदलाव हुए हैं. केवल भारत नहीं सभी देशों में ऐसी पिचें तैयार होने लगी हैं जो केवल मेजबान खिलाड़ियों के मुताबिक हो. इसी साल इंग्लैंड में आयोजित हुए ऐशेज श्रृंखला का जो हश्र हुआ वह भी इसी ओर इशारा करता है. सभी मैच पांच दिन से पहले ही खत्म हो गए. दो मैचों का फैसला तो तीन दिनों में हो गया.

इसका तो रास्ता यही है कि या तो सभी टीमों को अपनी मनमर्जी पिच तैयार करने की छूट दी जाए या ICC कम से कम एक स्‍टैंडर्ड कायदा तो लागू कर ही दे.

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