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Updated: 20 सितम्बर, 2015 04:01 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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जिस देश में किसी स्टार क्रिकेटर के छींकने की खबर भी मीडिया की सुर्खियां बन जाती हो, उसी देश में जब कुछ बेघर बच्चों ने देश के लिए फुटबॉल वर्ल्ड कप का खिताब जीता तो किसी ने ध्यान तक नहीं दिया. इन बच्चों की कामयाबी की कहानी इसलिए भी बड़ी बन जाती है क्योंकि इन्होंने आर्थिक तंगी, गरीबी और सुविधाओं की कमी जैसी बाधाओं को मात देते हुए भी देश का नाम रोशन कर दिखाया.

बेघर बच्चों ने लहराया भारत का परचम
एम्सटर्डम में आयोजित हुए बेघर बच्चों के फुटबॉल टूर्नामेंट (होमलेस वर्ल्ड कप) में भारत के बेघर बच्चों ने शानदार खेल दिखाते हुए फिफ्थ-डिविजन टाइटल जिसे स्पोर्ट्सजेन कप के नाम से जाना जाता है, का खिताब जीत लिया. वहीं लड़कियां भी होमलेस वर्ल्ड कप के फर्स्ट डिविजन के फाइनल में पहुंच गईं. इन बच्चों ने 48 देशों के इस वर्ल्ड कप में शानदार प्रदर्शन करते हुए पूरी दुनिया के सामने भारतीय प्रतिभा का लोहा मनवाया.

क्या है होमलेस वर्ल्ड कप
12 सितंबर को शुरू हुआ होमलेस वर्ल्ड कप एक वैश्विक फुटबॉल टूर्नामेंट है, जिसमें समाज के शोषित और बेघर बच्चे भाग लेते हैं. इस टूर्नामेंट में भाग लेने वाले वाले ज्यादातर युवा स्लम बस्तियों के या किसी प्राकृतिक आपदा के कारण विस्थापित हुए तथा सेक्स वर्कर्स के बच्चें होते हैं. भारत ने इस बार होमलेस वर्ल्ड कप के सातवें संस्करण में भाग लिया. होमलेस फुटबॉल वर्ल्ड कप से 74 देश जुड़े हैं, जिनमें से इस साल 48 देशों ने इसमें भाग लिया. इस वर्ल्ड कप को आयोजित करने का मकसद है कि दुनिया में कोई भी बेघर न रहे. भारत में बेघर बच्चों के लिए इस खेल का संचालन नागपुर स्थित एक संस्था करती है. जोकि अभावग्रस्त बच्चों को उनकी प्रतिभा दिखाने का मौका देती है और उनके बीच से ही बेस्ट खिलाड़ियों को चुनकर होमलेस वर्ल्ड कप में भाग लेने के लिए भेजती है.

इस वर्ल्ड के नियम थोड़ा अलग है. इसमें भाग लेने वाली टीमों के सभी खिलाड़ी पुरुष हो सकते हैं या महिलाएं या फिर महिला और पुरुष दोनों को मिलाकर भी टीम बन सकती है. मैच में किसी भी समय एक गोलकीपर और तीन आउटफील्ड खिलाड़ियों समेत कुल चार खिलाड़ी खेल सकते हैं. इसमें होने वाले मैचों में प्रत्येक टीम के लिए 7-7 मिनट के दो हाफ होते हैं और प्रत्येक हाफ के बीच में एक-एक मिनट का ब्रेक होता है. एक टीम एक दिन में एक से ज्यादा मैच खेलती है.

इन चैंपियंस को गरीबी भी नहीं रोक पाई
भारतीय लड़कों की टीम ने इस वर्ल्ड कप में पहली बार भाग ले रही ग्रेनाडा की टीम को हराकर स्पोर्ट्सजेन कप का खिताब जीता. 8 भारतीय लड़कों की इस टीम ने क्वॉर्टर फाइनल में बेल्जियम (3-2) और सेमीफाइनल में इजरायल (4-2) को हराया. इन बेघर और अभावग्रस्त बच्चों ने दिखा दिया कि असली प्रतिभा पैसों या सुविधाओं की मोहताज नहीं होती है. कड़ी मेहनत, प्रतिभा और जज्बे की बदौलत आप हर उस ऊंचाई को छू सकते हैं, जिसके लिए अक्सर अभाव न होने का रोना रोया जाता है. इन चैंपियंस की प्रतिभा और उनके जीत के जज्बे को सलाम!

इन विजेताओं की तरफ देश ने ध्यान ही नहीं दिया
इन बच्चों की शानदार कामयाबी की तरफ इस देश ने ध्यान ही नहीं दिया. हर छोटी-बड़ी खबर तक अपनी पहुंच होने का दावा करने वाले मीडिया ने भी इस खबर से अपनी आंखें मूंदें लीं. देश को गौरवान्वित करने वाले जिन बच्चों को देश से वाहवाही और शाबाशी मिलने की उम्मीद थी, उसी देश ने उन्हें ठीक से बधाई भी नहीं दी. शायद खेलों के प्रति इसी रवैये के कारण ही हम ओलंपिक जैसे मंचों पर सबसे फिसड्डी साबित होते हैं और बाकी हर मामले में चीन से अपनी तुलना करने वाला हमारा देश खेलों के मामलें में उससे 100 साल पीछे नजर आता है. प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने के लिए सुविधाएं देना तो छोड़िए अगर हम दुनिया के सामने देश का परचम लहराने वाले इन बच्चों को सम्मान भी न दे पाएं तो खेलों की महाशक्ति बनने और चीन तथा अमेरिका को टक्कर देने का ख्वाब देखना तो छोड़ ही दीजिए. 

लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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