भारतीय महिला टीम को पहचान की नहीं परवाह की जरुरत है
मिताली, हरमनप्रीत और झूलन के पास सिर्फ अपना खेलने का टैलेंट ही है. ये वो क्रिकेटर हैं जिन्होंने पुरुषों के स्वामित्व वाली दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए भरपूर लड़ाई लड़ी और अंत में विजयी भी हुईं. वो ग्लैमरस नहीं हो पाएंगी.
-
Total Shares
8 जून को महिला न्यूजीलैंड टीम ने क्रिकेट इतिहास के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए 50 ओवर में धमाकेदार 490/4 का स्कोर खड़ा कर दिया. दो दिन बाद ही उन्होंने फिर से 400 से ज्यादा रन स्कोर डाला. न्यूजीलैंड ने आयरलैंड के खिलाफ खेले गए ये दोनों मैच बड़ी ही आसानी से जीत लिए.
लेकिन न्यूजीलैंड टीम का ये प्रदर्शन कुछ कहता है. सालों से आलोचकों और विरोधी महिला क्रिकेट में पुरुषों की तरह तेज और ताबड़तोड़ खेल की कमी की ओर इशारा करते आ रहे हैं. हालांकि ये सब बोलने के पहले उन्होंने इस सच्चाई को बड़ी ही आसानी से भुला दिया कि एकदिवसीय क्रिकेट इतिहास में पहला दोहरा शतक बेलिंडा क्लार्क ने 1997 में ही बना दिया था.
दो लगातार मैचों में 400 से उपर रन... महिला क्रिकेट में ताकत तो है
महिला क्रिकेट में ताकत की कमी होती है? दो मैचों में 400 से ज्यादा स्कोर! इसे क्या कहेंगे.
उधर बांग्लादेश ने महिला एशिया कप में भारत को हराकर सभी को चकित कर दिया. इसके पहले भारत ने एशिया कप में एक भी मैच नहीं हारा था और छह बार चैंपियन रहा है. वो बांग्लादेश कभी नहीं हारे थे! लेकिन बांग्लादेश भी इतिहास को फिर से लिखने के लिए तैयार था और एक ही हफ्ते में दो बार भारत को हराया. विश्व रैंकिंग में भारत चौथे स्थान पर है और बांग्लादेश नौवां.
ऐसे में वो आलोचक जो सोचते थे कि ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और भारत के अलावा महिला क्रिकेट में किसी तरह की कोई प्रतिस्पर्धा ही नहीं है, उन्हें करारा जवाब मिला है. सच्चाई ये है कि महिला क्रिकेट, खिलाड़ियों की क्षमता और कौशल के अलावा अन्य कारणों से भी अपनी प्रासंगिकता के लिए संघर्ष ही करता रहेगा.
2017 के विश्व कप में भारतीय महिला टीम ने असाधारण प्रदर्शन किया और हर बाधा को पार करते हुए फाइनल में पहुंच गई. हालांकि फाइनल में उन्हें इंग्लैंड के हाथों हार का सामना करना पड़ा.
अंतरराष्ट्रीय टी-20 में 2000 रन बनाने वाली पहली खिलाड़ी बनीं
स्मृति मंधाना, हरमनप्रीत कौर, पूनम राउत और वेद कृष्णमूर्ति का नाम हर घर में गूंजने लगा. भारतीय क्रिकेट टीम की रीढ़ रही मिताली राज और झूलन गोस्वामी को सालों बाद अपनी पहचान मिली, वो इज्जत मिली जो मिलनी चाहिए थी. उनके शानदार प्रदर्शन के लिए लोगों ने उन्हें पहचाना. आज मिताली महिला वनडे में सर्वाधिक रन बनाने वालों में से है. झूलन विकेट लेने वालो में प्रमुख हैं. ये सितारें हैं, टीम की नायक हैं और किंवदंतियां हैं. लेकिन फिर भी, उन्हें उनके प्रदर्शनों के कारण पहचाने में कितना समय लगा?
हम में से कितने लोगों को ये याद है, या पता है कि वर्ल्ड कप के बाद भारत ने सात महीने तक एक भी अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेला? इस बात की परवाह कौन करता है कि आईपीएल शुरु होने के कुछ घंटे पहले महिला क्रिकेट टीम एक प्रदर्शनी टी -20 मैच खेलने के लिए इकट्ठी हुई थी? कौन परवाह करता है कि इनके लिए बाजार में प्रचार और ब्रांड उपलब्ध नहीं हैं? इस बात की परवाह कौन करता है कि कोई इसकी परवाह नहीं करता है?
जल्द ही मिताली और झुलन के जीवन पर फिल्में बनाई जाएगी. लेकिन क्या इतना ही काफी है? भारत के खेल प्रशंसक भावनाओं के आधार पर प्रतिक्रिया करते हैं. महिला विश्व कप का लाइव प्रसारण किया गया था और इस बार हो हल्ला भी हुआ. बीसीसीआई के नए अनुबंधों में महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण बदलाव किए. उनकी फीस बढ़ाई. ज्यादातर महिला क्रिकेटरों का मानना है कि उनकी फीस बढ़ाने के लिए उनके खेल को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य होना होगा. लेकिन क्या एकमात्र मुद्दा पैसा ही है?
प्रशंसक की पसंद का क्या? पूरी दुनिया भर में बाजार महिला के क्रिकेटरों को कैसे देखता है? भारत के पुरुष बैडमिंटन खिलाड़ियों की दुर्दशा एक उदाहरण हैं. भले ही किदंबी श्रीकांत ने साइना नेहवाल और पीवी सिंधु की तरह ओलंपिक पदक नहीं जीते हैं, लेकिन वह बैडमिंटन में सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में से एक हैं. लेकिन श्रीकांत ने साथी महिला खिलाड़ियों की तरह तवज्जो की मांग नहीं की.
आज ऋषभ पंत, झूलन से ज्यादा कमाता है. शायद हरमनप्रीत कौर की तुलना में शुबमान गिल हर घर में जाना जाने वाला नाम है.
भारत के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली खिलाड़ी हैं
जब तक मिताली और उनकी टीम को प्रोत्साहित करने के लिए फैंस की संख्या नहीं बढ़ेगी तब तक, ब्रॉडकास्टर्स और प्रायोजक का उनके प्रति लगाव ठंडा ही रहेगा. एशिया कप में भारत पर बांग्लादेश की शानदार जीत एक खुशी मनाने वाला पल है. लेकिन फिर भी, हम विश्व टी -20 में एमएस धोनी की टीम द्वारा बांग्लादेश की टीम के हारने पर बात करते रहेंगे.
वहां पावर है, फिटनेस पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है और कम से कम ब्रॉडकास्टर्स अब महिला क्रिकेट को ज्यादा बढ़ावा दे रहे हैं. लेकिन क्या उनका मैच देखने के लिए दर्शक होंगे? क्या दर्शक एक क्रिकेट मैच देखने के लिए उसी तरह आएंगे बजैसे राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के फाइनल में साइना बनाम सिंधु को देखने के लिए आते हैं?
क्या यह सब ग्लैमर से ही आता है? साइना, सिंधु और सानिया मिर्जा जैसी भारत की कुछ अभिजात वर्ग की एथलीट अपने खेलने के कौशल के आलावा भी बहुत कुछ लाते हैं. लेकिन मिताली, हरमनप्रीत और झूलन के पास सिर्फ अपना खेलने का टैलेंट ही है. आपको झूलन कभी किसी डिजाइनर कपड़ों के प्रोमोशन के लिए रैंप चलती हुई नहीं दिखेंगी. और न ही हरमनप्रीत आपको किसी पत्रिका कवर पर दिखेंगी. ये वो क्रिकेटर हैं जिन्होंने पुरुषों के स्वामित्व वाली दुनिया में अपनी जगह बनाने के लिए भरपूर लड़ाई लड़ी और अंत में विजयी भी हुईं. वो ग्लैमरस नहीं हो पाएंगी.
रिकॉर्ड तोड़ने और इतिहास दोहराने के बावजूद महिलाओं के क्रिकेट का लंबा सफर तय करना है. और भारत के खेल प्रशंसकों को उन्हें खुली बांहों से अपनाने की जरुरत है. इस सच्चाई को मानते हुए कि बाकी खेलों के साथ तो ग्लैमर आता है पर क्रिकेट में नहीं.
अब अपना रवैया बदलने का समय है.
ये भी पढ़ें-
आपकी राय